घिसी हुई चप्पल
एक पुरुष की हो या महिला की
सिर्फ और सिर्फ
जिंदगी से जूझती कठिनाइयों और संघर्षों की
केवल और केवल
खामोशी से, दास्तां ही बयां करती है ।।
जो हर रोज एक नयी उम्मीद
आंखों और होंठों पर हल्की सी मुस्कान लिए
दिल में कई अनसुलझे सवाल साथ लिए
निकल पड़ते हैं एक नया अहसास लिए ।।
ना ही खुद की खबर है ना मंजिल का पता है
इनकी तो जिंदगी फटे हाल में गुजरा
हर पल एक नया जुआं है ।।
बीत जाती है उम्र सबके फ़र्ज़ निभाने में
जाने-अंजाने के कई कर्ज चुकाने में
हमारी हर सांस इनकी ही कर्जदार है
हर अहसानों के हम ही तो तलबगार हैं ।।
आज नहीं तो कल हमको अपना कर्ज़ चुकाना है
चप्पल घिसकर ये फ़र्ज़ निभाना है
समय बड़ा बलवान है भईया
कल हमें भी ये यही दिन दिखलाता है ।।