मौत के बादल घने हैं दिल के कमरे डर रहे हैं। अब शिफाखाना में भी बस, मान रुपयों को मिले हैं। मुल्क ख़तरों से घिरा है आफिसर घर में घुसे हैं। इस महामारी में भी धन लूटने में सब लगेहैं। सड़कों पर जो लोग रहते, मास्क के दम ही बचे हैं। ( डॉ संजय दानी )
12 फ़ॉलोअर्स
144 किताबें