गुण दोष के आकलन से निकलो बाहर
हो सके तो दो कदम तो मेरे साथ चलो
माना की कुछ कमी है ,कुछ खामियां है
संभव हो तो डाल हांथों में हाँथ चलो
सुख दुःख हैं सिक्के के दो पहलु भाँती
वक्त जैसा भी हो वो तो गुजर जाता है
रहे ये याद की ये भी तो सच्चाई है
समय पे साथ जो बस याद वही आता है
मुझे तो आसरा है उसका, अपनी जमती है
जो दूर कहीं बैठा कैलाश पर्वत पर
आमंत्रित किया है मैंने उसको अपने यहाँ
चर्चा चाय पे नहीं बेल के शरबत पर ....