जो पहल की मैंने वो सब अधूरे कार्य हैं
उनको पूर्ण करना अतयंत ही अनिवार्य है
क्यूंकि पेंडुलम की भाँती मन बस युहीं है डोलता
भूत के किस्से सुनाता, राज़ भविष्य के है खोलता
हो के नतमस्तक या फिर दंडवत प्रणाम कर
या फिर लगन से लग पूरा अधूरे काम कर
मन को करके मौन और रोक कर हर खलबली
चाहता हूँ देना मैं खुद को ही श्रद्धांजलि