सुनाई तो नहीं देता बाहर ये कोलाहल जो है
दिल का जो भी कहना है उस पर दिमाग हावी है
व्यवहारिक तो अनुभव है बस, शेष सब किताबी है
अकेले में अकेला था , अकेला हूँ मैं महफ़िल में
भले जो दीखता है तुमको पर दिल की बात है दिल में
मैं हूँ ही क्या ये जाना तो विचारों का पुलिंदा था
दफ़न थे भाव दिल में ही नज़रों में सबके ज़िंदा था
अंदर तो मेरे लगता है कोई तो युद्ध जारी है
मेरी जो यह कहानी है क्या वही तुम्हारी है ....