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वीर सिंह सिकरवार

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पुस्तक के भाग

1

मान है हिंदी|

10 मार्च 2015
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मान है हिंदी ,शान है हिंदी मेरी अनोखी पहचान है हिंदी। हिंदी बिना न जीवन संभव , क्योंकि मेरे शरीर के प्राण हैं हिंदी ।। हिंदी प्रेम की भाषा,अप्नत्व की भाषा,स्वाभिमान की भाषा,दिलो को जोडने वाली भाषा और सबसे ऊपर माँ की भाषा अर्थात मात्रभाषा है| हमारी पहचान हिंदी से है, देश की शान हिंदी से है,जीवन का आरंभ हिंदी से है|ये वही हिंदी है जो जब संयुक्त राष्ट्र में गूंजी तो पूरा विश्व नत्मस्तक हुआ| ये वही हिंदी है जिसने हमे हिन्दुस्तानी होने का गौरव दिया| मेरे लिये हिंदी न केवल भाषा है अपितु जीवन रक्त है,मेरा मान है,मेरा स्वाभिमान है| परंतु आज के समय में हिंदी की स्तिथि देख दुख होता है। दुख होता है जब हिंदी के प्रति लोगो की घृणित भावनाए देखता हूँ, दुख होता है जब देखता हुँ की मात्रभाषा आज प्रतिबंध की भाषा बन गयी है | प्रतिबंध की भाषा सुनने में अजीब लगता है परंतु ये ही कटू सत्य है जिन विध्यालयो में भविष्य निर्माण होता है ,आज वही हिन्दी प्रतिबन्धित है ।ओर भी कई घटनाए हैं जिन्हे देख लगता है की मात्रभाषा मात्र-भाषा बन रह गयीहै। मेरा तो बस इतना ही कहना है की हिंदी को अपना कर देखिये जितना प्रेम अप्नत्व इस भाषा में है विश्व की किसी ओर भाषा में नही। अब तो गूगल भी हिंदी कि आगे नत्मस्तक है। विश्व के कई देश हमारी भाषा की मह्त्ता जान अपने पाठयक्रमो में इसे अनिवार्यता दे रहे हैं ।फिर क्युँ हम हिंदी को उपेझित कर रहे हैं हिंदी हमारी पहचान है ओर पहचान के बिना मनुष्य पशु के समान है। गौरवान्वित हो जब हिंदी बोले ,धन्य हो जब हिंदी बोले हिंदी को जिये,हिंदी के आकर्षण को महसूस करे। हिंदी हैं हम कहने से ही काम नही चलेगा, अपितु हमे गर्व होना चाहिये की वाकई में हिंदी हैं हम। हिंदी मातरम!

2

मैं देश का युवा आज क्रोध से भरकर बोल रहा हूँ|

11 मार्च 2015
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