अध्याय 1: हॉली का रहस्य
धूप धधक रही थी। जंगल में गर्मी असहनीय थी। मीरा अपने दोस्तों राजेश और सुमन के साथ छायादार जगह ढूंढ रही थी।
"यहाँ आओ, इस पेड़ के नीचे बैठो।" राजेश ने कहा।
वे तीनों पेड़ के नीचे बैठ गए। मीरा ने पानी पीते हुए कहा, "आप दोनों को हॉली के बारे में पता है?"
"हां, वह जंगल में कहीं छुपा हुआ बड़ा सा मकान है जिसे कोई देखता भी नहीं।" सुमन ने जवाब दिया।
"स्थानीय लोगों का कहना है कि रात में वहां अजीब सी आवाजें और रोशनियाँ दिखती हैं। कोई भी वहां जाने से डरता है।" राजेश ने जोड़ा।
"मुझे लगता है कि वहां कोई रहस्य है जो हमें सुलझाना होगा।" मीरा ने उत्साह से कहा।
"तुम पागल हो! वहां जाना बेहद खतरनाक है।" सुमन ने चिंता से कहा।
"डरो मत, मैं हूं ना साथ में। चलो आज हम वहां जाकर देखते हैं कि क्या है।" मीरा ने दोस्तों को राज़ी कर लिया।
शाम हो चली थी जब वे तीनों हॉली की ओर निकल पड़े। जंगल अंधेरा हो चला था। कुछ ही देर में वे हॉली के पास पहुंच गए।
हॉली बड़ा सा और खोखला दिख रहा था। खिड़कियां टूटी हुई और दरवाजे झूठे थे। जंगली झाड़ियां मकान में घुस आई थी।
"भयानक लग रहा है।" सुमन डरे हुए थे।
"चलो अंदर देखते हैं।" मीरा ने कहा और सावधानी से अंदर चली गई। राजेश और सुमन भी उसके पीछे-पीछे चले गए।
हॉली के अंदर सन्नाटा था। कुछ भी नहीं दिख रहा था। तभी ऊपर से कोई आवाज सुनाई दी। सबके रोंगटे खड़े हो गए।
"क्या हुआ? कोई है क्या ऊपर?" मीरा ने पूछा। कोई जवाब नहीं मिला।
अगले ही पल कुछ गिरता हुआ दिखाई दिया। सबने डर के मारे चिल्लाकर भागना शुरू कर दिया। लेकिन जब वे बाहर निकले तो पता चला कि कुछ नहीं गिरा था।
"शायद हमें भूतों ने डराने की कोशिश की।" मीरा ने हंसते हुए कहा।
"अब हमें यहां से जाना चाहिए। रात हो चली है।" राजेश ने कहा।
सबमिलकर वापस घर की ओर रवाना हुए। मीरा को अभी भी हॉली का रहस्य सुलझना था।