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शृंगार रस

9 मार्च 2022

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"तू बस तू"
सांझ की बेला में मिलते है दो दिल जब
रथ रति का मेरी साँस साँस चलता है
कामदेव सी ललक जगाएं
तू बस तू 
इस तन की जरूरत होता है।

बाती सी चाहत में प्रीत का तेल कौन सिंचे तुम बिन....
नज़र से नज़र के टकराते
तिखर जब उठता है जमुना की लहरों में 
ताज की परछाई सा नाद एक बजता है।

दिल की धरा पर तू बरसे जब याद बन
प्यास का सैलाब मेरे तन मन से बहता है....
अश्कों की आग उठे अँखियन की पलकों पर 
नभ से चुराकर तारक के वृंद पिया लोचन तू भरता है।

बिखरी लटों को बाँधूँ में जब जब
जूही की कलियों से कबरी संवारे तू
सूनापन बिखरे जब मन की गलियों में 
चुन चुन कर खुशियों की लडियाँ तू भरता है।




"मैं अधूरी हूँ"
मैं अधूरी हूँ, अपूर्ण हूँ तुम जो मेरी किस्मत में नहीं.. 
तुमको सोचना जस्मिन की खुशबू को महसूस करना
या यूँ कहो
उम्मीद का दीया हाथ में लिए लकीरों से दोस्ती करना...तकदीर से लड़ना

तुम मेरे लिए दुनिया की सबसे अनमोल खुशी हो, मेरी चाहत, मेरा प्यार हो
हाँ तुम्हें महसूस करना जैसे मेरा हसीन नग्में का गुनगुनाना...
पर में सोचना और गुनगुनाना नहीं चाहती  मुझे पाना है तुम्हें...
मिलोगे ना?
 
मेरी चाहत जूझ रही है, तमन्ना मचल रही है तुम्हें पाने 
सुना है इस जन्म में किसी ओर ने तुम्हें मांग लिया है
तो क्या हुआ मेरी दुआ अर्श पर पड़ी अर्जी सी इंतज़ार लिए खड़ी है...
मैं तैयार हूँ कई जन्मों तक इंतज़ार में जलने के लिए....

लिखना तो होगा ईश्वर को किसी जन्म में मेरी लकीरों में तुम्हें 
उसके बाद ही मैं संपूर्ण कहलाऊँगी 
बस तुम मेरा शृंगार बनकर रहना 
मैं तुम पर फ़ना हो जाऊँगी...
#भावु
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