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शृंगार रस

10 मार्च 2022

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1 अपनी रूह को तबाह मत करो 

यूँ अपनी रूह को तबाह मत करो, कसकर पकड़ो मेरी चाहत को और
हल्का सा दबाव दे दो हमारे रिश्ते की गिरह को 
ये वक्र सा वादा मुझे अखरता है..

'मैं हाँ मैं' तुम्हारी दुनिया रचना चाहती हूँ जिसमें तुम्हारी आँखों में रोशनाई भरते उस चरम तक ले जाना चाहती हूँ, 
जो तुम्हें भीतर तक खुश रखें..

तुम्हारे गालों पर अपने लबों से गिरते शहद की बारिश करने जा रही हूँ 
आँखें मूँदे महसूस करो, 
एक सुरीले स्पंदन की लड़ी उठेगी अपने दिल के तारों में..

तुम भावुक हो अपनी भावनाओं को मेरे अब्र से तन की सुगंधित त्वचा की परतों पर रख दो इसे लावारिश नहीं छोडूँगी, 
नखशिख मेरे हर अंगो में मलते ख़ुमार जगाऊँगी..

बह जाओ मेरे उन्माद की रंगत संग गुनगुनाते एक महफ़िल बसती है मेरे भीतर खुशियों की, 
क्या तुम महसूस करना चाहोगे ज़िंदगी की हर रानाईयों को जिसे मैंने पी रखी है..

जिस्म की भूख को कैद कर दो इन्कार की संदूक में, मन के भावों को उत्तेजित करो सुगंधित मेरी साँसों में अपनी साँसों का संगम रचकर,
नखशिख मेरे अंदर बस जाओ..

मैं उस अर्श की चौखट तक तुम्हें ले जाऊँ  जहाँ कुबूल होती है नेमतें ईश्वर का स्मरण करते खुद को मेरी आगोश में सौंप दो,
जितना तुमने मुझे जाना है उससे कई गुना अनंत हूँ मैं.. 
#भावु



2 एक नाम
 दो साँसों के बीच का फासला भरता है एक नाम, 
सिहरते लबों से पल पल बहता है एक नाम 
धड़कन की तान पर चलता है एक नाम.!

 इबादत में उठे हाथ संग आँखों से बहते अश्कों से उभरता है एक नाम.! 

उस नाम की कायल है ज़िंदगी मौत से भी कर लूँ सौदा जो मिल जाए वो नाम.!

क्या हो तुम, कौन हो तुम ? क्यूँ मुझे इतना प्यारा है तुम्हारा नाम.!

जुनूँ की हद से आगे परिधि लाँघ लूँ 
बेबाक सी मुखर बोल दूँ.! 

चिल्ला चिल्ला कर बताऊँ दुनिया को कितना प्यारा है एक नाम.!

दिलो दिमाग में बोया है मैंने एक तुम्हारा प्यारा सा नाम
मेरा वजूद जिससे कायम है,
मेरे जीने की वजह जो वजह है वो है एक अनमोल सा तुम्हारा नाम.!

सुना किसीने क्या?
लो अभी अभी तो दिल ने दोहराया है मेरे पिया का नाम।



3 "कभी भूला तो न दोगे मुझे"
फ़िरोज़ी मेरे सपने बुनते है एक वितान अपने अरमानों के धागों संग तुम्हारी  किस्मत की तुरपाई करते, तुम्हारी आगोश में टूटे मेरे तन की कश्मकश कहती है कहो कभी भूला तो न दोगे मुझे...

कहकशाँ को गवाह रखते तुम्हारी हथेलियों ने थामा है मेरी लकीरों को इश्क की आराधना करते मानकर चली मैं अपना खुदा तुम्हें इबादत अधूरी छोड़ कर
कहो कभी भूला तो न दोगे मुझे... 

सौंपा है मैंने खुद को तुम्हारी पलकों की छाँव तले रखकर अपने स्पंदनों को  तुम्हारी गर्म साँसों की रवानी में अपने  जिस्म की खुशबू को बहा कर खो दिया अपने वजूद को बेपरवाही के आलम में कहो कभी भूला तो न दोगे मुझे... 

दिल की गहराई से चाहूँ तुमको तुमसे मिली फुर्कत जो कभी मर ही जाऊँगी सनम जोड़ा है जो रिश्ता शिद्दत से ताउम्र तुम तोड़ना न कभी किसी ओर के बहकावे में आकर कहो कभी भूला तो न दोगे मुझे..

शक नहीं रश्क है मुझे मेरे दीवाने के कई दीवाने ठहरे अपने दिल की संदूक में छिपाकर रख लूँ तुम्हें सिवा मेरे कोई ओर न देखे तुम्हें बस एक ही बात से डरती हूँ कहो कभी भूला तो न दोगे मुझे..




4 मैं बारिश से गुज़र रहा हूँ 
प्रेम गीतों से सराबोर आसमान से जैसे बरसती है बूँदें 
उसी तरह तुम्हारी आगोश से जुदा होते महसूस होता है
जैसे मैं बारिश से गुज़रा हूँ...

मेरे चारों ओर हवा में नाचने वाली हर्षित धुन सी तुम्हारी साँसों की महक
प्यार और उल्लास के खुशहाल छोटे आलाप सी मुझे धूप में बिताए बेहतर दिनों की याद दिलाती है..

लेकिन आज बारिश ठंडी है और हवा सर्द 
मेरे दिल में अब गाने नहीं है
आग है तुम्हारी दूरियों की
मेरे दिन बादल छाए रहेंगे और आसमान धूसर सा मटमैला..

अकेलापन मुझे घेर लेता है
मैं अपने एकांकी जीवन से त्रस्त हूँ 
कुछ समय पहले जब तुम्हारी प्रीत रुपी धूप ने मेरी आत्मा को भर दिया था
और मेरी हँसी ने तुम्हें सराबोर भर दिया था
उस हसीन पलों में हमने जोशीला प्यार किया था टूटकर लेकिन,
प्रेमियों की अंतरंगता
एक फ़िकी याददाश्त से ज्यादा कुछ नहीं...

तुम बारिश के तूफानों से प्यार करती थी, मुझे याद है
गड़गड़ाहट की गर्जना और बिजली की चमक को सुनना
प्रकृति की शक्ति को प्रसारित करना
तुम्हारी उन सारी क्रियाओं को आज भी दिल महसूस करता है पर,
मैं बहुत अयोग्य था न संभाल सका उन पलों की उर्जा को..

मेरा चेहरा अब बारिश से भीगता जरूर है पर आसमान से गिरती बूँदों से मैं तड़प उठता हूँ, 
अश्कों की बारिश मेरी साथी है 
धूप के उज्ज्वल दिनों की उम्मीद जरूर है
मैं अपने कॉलर को उन कठोर हवाओं की अठखेलियों से बचने के लिए घुमाता हूँ जो चलती है बेपरवाह जलाती..
 
मेरे भीतर से उठती आह भरी
एक प्यार की गूँज दूर चली जाती है तुम्हें ढूँढती,
जीवन के माध्यम से चल रही है मेरी एक मात्र परछाई
मैं मर चुका हूँ भीतर से..
#भावु




5 'चल उतरे दरिया पार'
है हरसू छैया प्रीत की लबरेज़ भरा घट छलक रहा, इंतज़ार किस बात का माशूक इकरार में ज़रा तू नैंन उठा..

"न तुम दाता न मैं याचक 
मोहब्बत में न मांगना न देना होता है"

अनसुनी धड़कन में उठती चिंगारी को चखकर समीप आ सीने पर सर रख चूमें प्रेम का हर अवलम्बन.. 

तय नहीं होती प्रेम की क्षितिज चले जहाँ तक हम तुम सनम लेकर हाथों में हाथ उस डगर पर चाहत की नींव रखी होती है..

बहती है एक ही मंदाकिनी दो उरों की धार से जिसमें बहते अँजुरी भर पीनी है इश्क की मदमस्त आग..

ललक नहीं, न अधिरता प्रीत की मखमली परवाज़ लिए हमें चलना है ताउम्र साथ..

सुध ले ले तू मेरी मैं तेरा छिनूँ चैनों करार एक दूजे के भीतर रहकर जी ले ज़िस्त हज़ार..

जुदा नहीं मुझसे तू नखशिख मौजूद रग-रग जान, नदिया मैं तू है सागर साजन संगम रच ले आज..

वेग है तुम्हारे चुम्बन में, मेरा आलिंगन धुँआधार, मिलती है चार आँखें जहाँ वहाँ रचता है स्वर्ग का द्वार..

वादे न इरादे न यकीन का यलगार, मानें तू मुझे खुदा अपना तू मेरा तारणहार 
सिद्ध करें चलो समर्पण उतरे इश्क का दरिया पार..




6 'रहने दो'
माना कि जादुई शाम के जलवों ने उन्मादित चाहत की चद्दर बिछा रखी है हमदोनों की उर धरा पर।

यूँ इतना करीब आके उरों की आग को न भड़काओ रहने दो प्रीत की प्रवाल को नर्मी की संदूक में ही रहने दो। 

मेरी गोरी त्वचा की परत पर न फ़ेरो अपनी ऊँगलियों की ललक चिंगारी को हल्की ही सही हवा न दो।

न बहको यूँ मेरी गेसूओं की खुशबू को साँसों में भरकर प्रणय का गान अभी ज़रा मद्धम गाओ। 

तिश्नगी को थोड़ा काबू में रखो, हाँ माना की मंज़ूर है हमें भी आपकी आगोश की गर्मी।

पर डरती हूँ वल्लाह तुम्हारी तलब को चूमकर ख़्वाहिशों की ललक हमें हद पार न ले जाए कहीं। 

तबाह कर देगी दिलों की बसाई बस्ती को बुरी है बहुत बुरी रवायतें ज़माने की दो प्रेमियों की नज़दीकीयाँ कहाँ भाती है। 

दबे एहसास को दिल की अंजुमन में दबे ही रहने दो रहने दो, चर्चे हमारे इश्क के सरेआम न हो जाए कहीं।




7 'याद'
रात की ठोड़ी पर बैठे चाँद का झिलमिलाना तुम्हारे रुख़सार की याद दे गया..
 
बिखरी लटों वाली लड़की चाँदनी में  नहाते तुम जब झांकती थी झील में, नखशिख स्वप्न परी सी लगती थी..

ये वादियों में गिरती चाँदनी की बूँदों से पिघलती कायनात की परतें 
पसीजती थी तुम्हारी हथेलियां मेरे हाथों की गर्मी में घुलकर उस लम्हें की याद दिलाती है..

कह दो अपनी यादों से थम जाए ख़्वाब बैठा है मेरी पलकों पर, तसव्वुर से मेरी दूर जाओ तो ज़रा नींद आए..

हंगामा न कर कुमुदिनी यूँ कल्पनाओं की क्षितिज पर बैठे, चाँदनी रात में तड़पते कोई खता न हमसे हो जाए.. 

यकीन करो इश्क है बेइन्तहाँ तुमसे फासलों पर दिल दहलता है 
चाँदनी रात में तुम्हारी याद आते ही आशिक के चैनों करार का जनाज़ा निकलता है।




8 "कभी सामने तो आ"
"जादू-नशा-मदहोशियां या कोई करिश्मा कुदरत का लिखूँ, कश्मकश में हूँ ताज सी हसीन मेरी महबूबा की तारीफ़ चंद शब्दों में कैसे लिखूँ"

गुम होती उसके संदली गेसूओं में हवाओं से बह रहे नग्मों की धुन पर मचलते मेरे अरमाँ को कैसे ढ़ालूँ लफ़्ज़ों में..

गुज़री थी कल रात मेरे सपनों से वो दबे पाँव, मैं भीगा हूँ नखशिख वो जमकर कुछ यूँ बरसी थी..
 
कस्तूरी मृग मरीचिका सी, नाजुक जिसके नैंन नक्श, अभी भी महक रही है वो मेरे जिस्म के भीतर खुशबू ही उसकी ज़र्दे सी थी.. 

काली आँखों के मैखाने की कम्माल पर टूटी कलम को जोडूँ कैसे, हुश्न नहीं वो आग है उसकी तपिश में तपना छोडूँ कैसे..

सिने से सरकते दुपट्टे की सिलवटो में अटके मेरे दिल की हालत न पूछो, हर साँसों पर धड़कते बांवरा मन बार-बार उछलता है.. 

ऊँगली के छल्ले पर अटकी आँखें वापस मोडूँ कैसे, चुम्बन को तरसे अधीर लबों की तड़प के आगे ज़िंदगी की हर तिश्नगी हारे..

कब तक ख़यालों में गुफ़्तगु होगी रूह में बसी लड़की कभी सामने तो आ, रुबरु की तलब का वर्णन अल्फाज़ों में कोई कैसे ढ़ाले।




9"इश्क यज्ञ है"
जब प्रेम किसीको किसीसे अनंत हो जाता है तब ज़िंदगी का मतलब लोबान सी पाक खुशबू है..

कायनात महक उठती है जब,
पावक उर से बहती प्रेम की अलकनंदा का निनाद गूँजते रव की तरह दो लबों की सुराही से छलक जाता है ..

इश्क उठता है आँखों में और तीर चलता है सिने में तब वो लम्हें हाँ वह लम्हें गुनगुना उठते है आरती अज़ानों से 
पुनित होते..

महबूब बन जाता है खुदा और इश्क इबादत लगता है, हरसू हर नज़ारा, हर ज़र्रे में माहताब का चेहरा दिखता है..
 
दो रूह में जब-जब इश्क पले उस हाल में अक्सर ये होता ,है सोच की सीमा के पार होते जब कारवाँ खयालों का चलता है..

हर धड़क पर आकर रुकता है हर धड़क में साहब अक्सर ही माशूक मुसलसल बहता है..

इश्क नहीं ये यज्ञ है समिध प्रेम के लगते है, दिल दीपदान कहलाता है, धूप बन चाहत जलती है हर पल धुआँ एक उठता है..





10'तुमसे ज़्यादा अज़िज कुछ तो नहीं'
उस अर्श तक चलना है मुझे तुम्हारा हाथ थामें मोक्ष की क्षितिज जहाँ आत्मा से मिलती है..

"कहो चल पाओगे मेरे सम्मान को अपना गुरुर बनाकर" 

मेरे फैसलों पर अपने विश्वास की नींव रखकर मेरी हंसी में अपने लबों की नमी रखोगे अगर हाँ तो, 
मैं सरताज समझकर तुम्हें पूजती रहूँगी..

सहरा या शूल सी न समझना फूलदल सी नाजुक हूँ ज़ख़्मों की आदी नहीं प्रेम से लदी हूँ, क्या सहज पाओगे सिप में मोती सी अगर हाँ तो, 
समेट लो मुझे सराबोर तुम्हारी हूँ 

मेरे हर कदम को अपने वजूद की छाँव देकर जो चलोगे तुम अगर हाँ तो, 
मैं हर धूप तुम्हारे हिस्से की ओढ़ लूँगी..
 
समझ सकोगे अनकही मेरी बातों के तथ्यों को मेरी आँखों की भाषा पर अपनी धड़कन का धड़कना पहचान पाओगे अगर हाँ तो, 
संपूर्ण समर्पित मुझे पाओगे..

जुदा नहीं मैं तुमसे आधा अंग हूँ 
पसीजते मेरे अहसासों की तपिश के संग अपने अहसासों को शेक पाओगे अगर हाँ तो,  
थामों हाथ मेरा चलो साथ-साथ चलें..

मुश्किल नहीं मुझे समझना हल्का सा हक और सम्मान की रिश्वत पर अपना सबकुछ वारने का हुनर जानती हूँ दे पाओ इतना? अगर हाँ तो, 
मैं ताउम्र नतमस्तक होकर जीना जानती हूँ..

अहं और अकड़ मुझमें भी है तुमसे भी ज़्यादा पर तुमसे ज़्यादा अज़िज नहीं, तुम्हारे आगे अपना सबकुछ हारना जानती हूँ मैं।
"कहो अब तो चलोगे न मेरे संग उस अर्श की चौखट तक? अगर हाँ तो मैं खुद को तुम्हें सौंपती हूँ"
भावना ठाकर 'भावु' (बेंगुलूरु)




11 "जिज्ञासा"
तुम्हारी आँखों में झांकते ही जिज्ञासा जन्म ले रही है, एक सफ़र काट लूँ उम्र का तुम्हारी आगोश में ये कह रही है...

एहसास चल पड़े है मेरे दिल की अंजुमन से निकलते तुम्हारी हथेलियों से मिलने, इश्क की चद्दर ओढ़ लूँ मन में संदली हवाएं बह रही है...

तुम्हारे स्पर्श की परिभाषा समझते मेरे अंगों में रागिनी बज रही है, छूकर देखो न  सिने में उठते उफ़ान में खलबली बढ़ रही है...

कहो तो अपना वजूद तुम्हारी चाहत को समर्पित कर दूँ, कैसे ठहरूँ, तुम्हारी आँखों में प्रीत अंगड़ाई ले रही है...

मद्धम बहती रात के शामियाने तले आओ मिल ले गले, गरदन पर ठहरे तिल  ने तुम्हें पाने की तलब जगा रखी है...

टपकती है शहद सी शबनम तुम्हारे होठों की परतों से मेरे लबों की तपिश उस आग को पिने मचल रही है...

जो तुम मेरी साँसो की रफ़्तार पर नृत्य करते मेरे सिने पर सर रख लो, मैं अपने लबों से उठती चिंगारियों को मुखर कर दूँ मेरी तमन्ना कह रही है..





12 'उत्कट प्रेम'
उत्कट प्रेम की परिभाषा क्या पता क्या होती होगी"
मैं जो करती आ रही हूँ उनसे शायद प्रेम है, हाँ प्रेम ही तो है...

हर दफ़ा हर पल मैं उन पे मरती रही भीतर ही भीतर चिंगारी सी जलती रही
प्रेम तितली है दिल शहद, 
हर फूल में उसका ही चेहरा तलाशती रही...
 
मैं उसकी आँखों पर अपनी जान न्योछावर करती रही 
हंसी की तरह उनके लबों पर ठहरती रही जैसे उसकी हर खुशियों की वजह मैं ही रही...

थक कर उसके चूर होने पर नखशिख मैं क्यूँ पसीजती रही
अपने हिस्से की हर सौगात उसके नाम ही करती रही...

देखे न महसूस किए कभी उसके दिल के एहसास मैंने फिर क्यूँ उसकी हर अनकही बातों का प्रतिभाव मैं देती रही...

सिगार की उसकी आदत पर मैं धुआँ बनकर उठती रही, राख भई न कोयला फिर भी मनमीत पर आफ़्रिन होती रही...

उसके हर गम को अपना कर अपने मथ्थे मडती रही,
उसका ज़िंदगी से हारना मुझे मंज़ूर नहीं अपने भीतर का हौसला उसकी रग-रग में भरती रही...

कितनी मासूम होती है चाहत 
उससे जुड़ी हर कहानी का मैं किरदार बनती रही
मुझे प्रेम है उसकी हर अदाओं से तभी तो उसकी नज़र अंदाज़गी भी सहती रही...

जब टकराई थी उस ज़ालिम की नज़रों से मेरी नज़र उस लम्हें का सज़दा ताउम्र  करती रही...
 
किसीने कहा मुझसे एक दिन जिस पर तू इतनी शिद्दत से मरती है उसकी सोच में भी तू दूर दूर तक नहीं....
 
हमने भी कह दिया तो क्या हुआ उसकी निगाहों में हम नहीं, 
रहता तो वह मेरे भीतर ही है, उससे दिल लगाने का हमें कोई गम नहीं... 




13 मजा तो तब है
मजा तो तब है जब
सारी पाबंदियों के ताले तोड़ कर 
किसी दिन खुली छत पर 
आसमान के शामियाने तले 
मिले हम-तुम 

जादुई रात में इश्क के 
तिलीस्मी सफ़र पर चले
आँखों से आँखें मिले 
दिल में शहनाई बजे 
धड़कन की धून पर 
दो दिलों का मिलन बने
तुम मेरी खुली पीठ पर 
लिखते रहना मोहब्बत 
 
मेरे बोल को अपनी चाहत की 
स्याही में घोल कर 
ढ़ेर सारा प्यार करते
साँसों की आवाज़ को 
संगीत बनाकर 
मेरे कानों में नग्में सुनाते 
गालों पर लबों की मोहर लगाते
 
शब भर सहलाते रहना 
मेरी पलकों पर ठहरे सपनों को
बोलो क्या पाबंदीयों से परे 
तुम आओगे मुझसे मिलने
इश्क बेमजा है बगैर खताओं के
तुम आओ ना कोई खता करें।




14 'स्पंदन'
रति से मेरे स्निग्ध स्पंदन को 
सहज कर रखा है तुमने 
सीपी में मोती के जैसे
आगोश में भरकर कामदेव से तुम
बरसते रहते हो
घूँट-घूँट पीते मेरी चाहत की अंजूरी 
जब-जब मेरे इश्क की सुराही से टपकी 
अगाध, अनमोल, अमिट सा समर्पण 
एक दूजे के प्रति 
कितनी गिरह से बँघे है सदियों से 
हर जन्म देते आगाज़ मोहब्बत की गूँज से
मिलते है कहीं न कहीं
तुम्हारे प्यार की प्यासी 
ढूँढ लेती है मेरी नासिका तुम्हें 
साँसें पहचान लेती है
तुम्हारे तन की चंदन सी गंध से अकुलाती 
नागमणि के जैसे लिपटी रहती हूँ तुमसे
तुम पनाह देते हो मेरे प्यार को
पत्तियों पर ओस के जैसी 
मैं निश्चिंत सी समर्पित सौंपकर खुद को तुम्हें आँखें मूँद लेती हूँ,
शिव-उमा सा अपना प्यार बस महसूसो 
उर में भरकर अनंत जन्म जन्मांतर तक॥
भावु।
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रचनाएँ
"शृंगार रस"
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प्यार इश्क मोहब्बत की परिभाषा
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स्पंदन

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