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शृंगार रस

11 मार्च 2022

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1'खुद को मेरे नाम कर गई'
तितलियों के शहर से छलके हो सुनहरी सारे रंग जैसे दुनिया ही मेरी रंगीन हो गई, मिली नज़र महबूब से ऐसे घायल दिल के तार कर गई।

उफ्फ़ ये आलम मदहोशी का बयाँ क्या करूँ लफ़्ज़ों में इसे, ज़ुबाँ सिल गई पैर थम गए देखा उसने कुछ ऐसी चाहत से तीर आर-पार कर गई।

धड़कन भागी नैंन हंस दिए अदा ही उसकी जादूगरी थी, इश्क दे जाए दावत जिसको दिल वो काबू में कैसे रहे मन को बाग-बाग कर गई।

संदली उसकी जिस्म की खुशबू रोम-रोम बगियन सी कर गई, जानलेवा थी साहब की शौख़ी हम हंसते हंसते दिल हार दिए वो कुछ ऐसे हलाल कर गई।

करार दिल का लूट ले गई रातों में यादों की कसक भर गई, साँवली सी एक शौक़ हसीना पहली प्रीत का जाम पिलाकर खुद को मेरे नाम कर गई। 

फ़किर था दिल कोरा सूखा बिन सूरज के आसमान सा, अपने उर के प्रेम घट से चार बूँद चाहत की चुराकर प्रेम सुधा मुझ पर बरसाकर जीने की सौगात दे गई।




2 'आ गुफ़्तगु कर'
आ रख दे मेरे साथी काँधे पर मेरे तू अपना क्लेश भरा बोझ़िल सर, ले ले मेरी तू खुशियाँ सारी अपने हर गम तू मेरे नाम कर..

ज़िंदगी को थोड़ी हल्के में ले, आ गुफ़्तगु कर ले हम थोड़ी, आ जान मेरी हम सपने देखें वादियों में हो एक अपना घर..

खुशियों की बारिश हो जहाँ दु:ख की वहाँ परछाई न हो, तू मेरी मुस्कान पे मर मिट, मैं तेरी अदाओं पर जाऊँ वारी..

हौले हौले तू गम नासाज़ कर आँचल है मेरा पनाह तुम्हारी, कमीज़ तेरा मेरे अश्कों का घर, आ वादा कर ले एक दूजे से हम मरकर भी ना बिछड़ेंगे कभी..

माहिया तू मेरी ज़िंदगी मेरी साँसों की लय है टूटा गर तू मेरी मौत जानाँ निश्चित है, मैं बरस जाऊँ बूँद बूँद तू महक जा मिट्टी सा इसी में इश्क की जीत है..

एक करम कर होठों पर अपने हंसी तू मल मंज़ूर नहीं मुझे तेरी उदासी, खुद को यूँ मायूस न कर, मेरी गोद को सुकून का शामियाना समझ..

कीमत बोल तेरी हंसी की क्या लेगा, खाल उतार दूँ मेरे तन की या जान वार दूँ तुम्हारी चाहत पर मैं, या बोल पर तेरे अपनी हंसी वार दूँ..

मैं सर चढ़ा लूँ तेरी सारी उदासी बन जा तू मेरी खुशियों का मालिक, तेरे सदके मैं फ़ना हो जाऊँ मुझे कोई गम नहीं, तेरी खुशी के बदले मेरी कोई जुस्तजू नहीं..



3 'दगाबाज़ मोह'
एक गाड़ी रुकी थी मेरे घर की दहलीज़ पर, मैं छत पे खड़ी थी..

कामदेव की प्रतिकृति से तुम, हाँ तुम गाड़ी से उतरे, उतरते ही इस उर की परतों को चीर कर सीधे मेरी रूह में समा गए..

आहहह ये एहसास जो पहले कभी नहीं हुआ आज मार ही गए,  
मेरी आँखें तुम्हारी शख़्सीयत की कायल हो चुकी, मैं नखशिख तुम्हारी हो चुकी थी, उस लम्हें की कसक जानलेवा थी साहब...

शिद्दत से चाहा मैंने कि तुम उपर देखो मेरी नज़र से नज़र तुम्हारी मिले और तुम मुझे हमसफ़र चुनो..
 
मैं कश्मकश में थी मेरे दिल की गलियों से उठ रहे बवंडर तुम तक कैसे पहुँचे, 
अचानक चले गए तुम बाजु वाले घर की दहलीज़ लाँघे..

मैं असमंजस लिए नीचे आई 
मन बोलता था जा ना, जाकर निचोड़ दे अपनी निर्मल प्रीत का आबशार अपनी पहली पसंद पे..

हिम्मत भी की बाजु वाले घर की दहलीज़ पार करते झाँक कर देखा 
तुम किसी ओर के हो चुके थे..

"मेरा मोह दगाबाज़ निकला"

हाए नज़र न लगे तुम्हें मेरी, भाल पर सगाई तिलक और तुम्हारी पनाह में बैठी पलक बहुत सोणी लग रही थी..

तुमने एक नज़र मुझे देखा भी...तुम्हें उस पल की कसम मुझे अपने ज़हन में तस्वीर सी बसा लेना सनम..
वरना पहचानोगे कैसे आख़िर जन्मों जन्म तक तुम्हें मेरा जो होना है.. 

"शायद इस जन्म में मेरी चाहत के सिक्के कम पड़ गए कहाँ खरीद पाई तुमसा अनमोल गौहर"

तुम्हें तो पता भी नहीं अगले जन्म तुम्हें पाने की आस में एक बुढ़ी बावरी ने ताजिंदगी कुँवारी काटी..

मना मत करना अगले जन्म दहलीज़ बदल लेना, 
कई जन्मों तक तुम्हारी बनने की ख़्वाहिश लिए एक 'वर्जिन' लड़की इबादत में हाथ उठाए तुम्हें तुमसे मांगती बैठी मिलेगी, 
कहाँ कोई दूसरा खुदा मेरा।



4 'मेरी आगोश में समा'
स्वर्ग का दरवाज़ा इंतज़ार कर रहा है  हल्का सा मुखर हो जाओ ये जो हया की एक परत ठहरी है दोनों के दरमियां हौले से हटा दो सनम.. 

मेरी आगोश की चौखट पर कदम रख दो, टहनी सी कमनीय अपनी काया को सौंप दो मेरी बाँहों को कश्ती समझकर..  

कबरी खोलकर गेसूओं को खुल्ला छोड़ दो ढ़क दो मेरे चेहरे को, जी चाहता है एक ख़ता कर लूँ गर इजाज़त हो..

मय से मीठी लबों की पंखुडियों को चूमने के तलबगार मेरे लबों को खुशी की हल्की सी झलक दे दो..

कुछ हुआ क्या? ये शीत सी सिसकी, गर्म सी आह और झुकी हुई पलकों से उठते शरारे मेरे एहसासों को जगा रहे है..

करीब आओ तुम्हारी गर्दन पर एक मोहर मल दूँ, ये जिस्म की संदली सुगंध मेरे इश्क की बेतरबी बढ़ा रही जानाँ.. 

हुश्न की शौख़ी है या आग का दरिया कोई  पूष की ठंड़ी शाम में भी रोम-रोम बैसाखी बयार सी तप्त लू भर गई..

अपनी नाभि पर बरसती मेरी चाहत की बारिश में नहाते कहो कैसा लग रहा है, शायद जन्नत की हक़ीक़त इस मखमली स्पंदन से कम तो नहीं होगी।



"जज़्बात एक लड़की के"
कायनात पर भोर की पहली किरण के दस्तक देते ही तुम आन बसते हो मेरे ख़यालों में पहला ख़याल बनकर..

महसूस करो मैं चूमती हूँ तुम्हारे लबों पर ठहरी अलसाई सी हंसी की धनक को,
सुनो... 
मुझे वो बनना है जिससे शुरुआत तुम अपने दिन की करते हो...

तुम्हारे चेहरे को अपनी हथेलियों में भरकर करीब से ओर करीब से निहारना चाहती हूँ, 
तुम्हारे कानों के करीब अपने लबों पर पड़े बेताब पाँच शब्द बार-बार दोहराना चाहती हूँ "मुझे तुमसे बेइन्तहाँ इश्क है".....

वो सुनकर तुम्हारे प्रतिसाद के इंतज़ार में कुछ पल झुलसना चाहती हूँ,
दिन ब दिन तुम्हारे लिए मेरी तिश्नगी बढ़ती जा रही है...

तुम्हारी भूख में तड़पते दिल की और सारी कामनाएं मृत:प्राय होते गल चुकी है,
तुम मेरी ज़िंदगी का अनमोल हिस्सा हो...

मेरी तमन्नाओं का बाज़ार बड़ा छोटा है
तुम्हें छूना, तुम्हें चखना, तुम्हें पाने की ख़्वाहिश में तिल तिल मरना that's it 

मैं हर सुबह भूख से बिलखते उठती हूँ, हाँ तुम्हारी भूख मैं तड़पते ख़यालों में दावत देते हर रोज़ तुम्हें बुलाती हूँ...
 
मैं तुम्हारी उपस्थिति को हर रोज महसूस करती हूँ, क्या मेरी आह तुम्हें बेकल करती है कभी?????
मेरे दिल पर पड़ी तुम्हारी यादों की अनुस्मारक है मेरी आहें...
 
तुम्हारे जिस्म से लिपटी सिगार की नशीली महक में नहाना है मुझे, 
अपनी आँखों में प्रतिबिंबित प्यार को टकटकी लगाकर देखना
मुस्कुराती मेरी रूह महसूस होगी... 

जो कहती है मुझे अनंत काल तक तुम्हारी आगोश में अपनी ज़िंदगी बितानी है। क्या मेरे इकरार से अनुबंध जोड़ती इज़हार ए इश्क की मोहर लगेगी तुम्हारी ओर से...


6 'मेरी आँखें भर आईं'
तुझे एक  नज़र भर देखने से क्यूँ कतराई, 
इसी भूल पर है आज मेरी आँखें भर आई।

दीवानी है  बड़ी  दुनिया  तेरी हर अदा की, 
तूने जब मुस्कुराके  देखा तो मैं क्यूँ शर्माई।

मैं धरा की धूल सी कहाँ काबिल तुम्हारी, 
तू आसमां का चाँद है ये सोचकर घबराई।

क्या बताऊँ  पशेमां हूँ अपनी नादानी पर,
मांगा जब मुझको तूने मुझसे क्यूँ लज्जाई।

तूने खुदा मुझे माना क्यूँ अन्जानी रही मैं, 
उसी एक बात पर मुझसे है मेरी रुसवाई। 

क्या बताऊँ दिल तेरा कितना है दिवाना,
आहें भरता है जब जब बहती है पुरवाई। 

आजा फिर से  एक बार  इकरार मुझे है,
थाम ले मुझको बन जा तू मेरा रहनुमाई।

जाऊँगी नहीं अब दूर  तुमसे जुड़ी रहूँगी,
मनुहार पे  मान जा  अब तो ओ हरजाई। 

वफ़ा पर ऐतबार करके गुस्सा थूँक भी दो,
तोडूँगी दिल नहीं  तेरा लो ये कसम उठाई।



7 'क्या जानें वो क्या था'
वो क्या था गली के मोड़ पर तुझको एक नज़र देखने पर दिल की अंजुमन में खलबली का मचना..

क्या था वो मंदिर की चौखट पर तुम्हारे काँधे से मेरे कंधे का टकराना उस पर मेरी नज़रों का झुक जाना..
 
क्या जानें वो क्या था मेरी गलियों से बेमतलब तुम्हारा बार-बार रुख़ करना खिड़की से तुम्हें झाँकते मेरे लबों पर हंसी  का ठहरना..

एक दिन तुम्हारे दीदार न होने पर दिल का तड़पना और उस पर नैंनों से चार बूँद टपकना क्या था..

वो क्या था बातों-बातों में तुम्हारे नाम का ज़िक्र करते हया में पलकों का झुकना उस पर तुम्हारा तंज कसते मेरे एहसासों को छेड़ना..

जानें वो क्या था तुम्हारे प्रति चाहत से सराबोर बहते स्पंदनों को मेरा बेख़ौफ़ ज़माने के आगे उकेरना..

वो क्या था बार-बार तेरे इश्क में मेरी मोहब्बत का बिकना उस पर तुम्हारा फ़िदा होते आँख मारना..
 
लो फिर एक बार और तुम्हारी अदाओं पर मेरी प्रीत को बिकते देखकर कहो वो क्या था मेरी हथेलियों को तुम्हारा चुमना..

क्या था वो मेरी हर तकलीफ़ पर तुम्हारे अश्कों का पिघलना उस पर तुम्हारे अश्कों को मेरी पलकों पर मेरा थामना..

"न तुमने जाना न मैंने वो प्यार था या कुछ और था क्या जानें वो क्या था"
 
मेरी बिदाई पर तुम्हारा चुपके से एक कोने में खड़े नैंन भिगोना क्या था, 
उस पर मेरे दिल में उठते शोलों से लड़कर मन करता था दुनिया भूलाकर तुमसे लिपट जाऊँ.. 

कोई तो कहो वो क्या था???

शायद तू लकीरों में नहीं था 
मिला जो एक ओर जन्म तुझे अपने हक में लिखवा के आऊँगी..

पूछना न पड़े ये सवाल की वो क्या था? इतनी शिद्दत से तुझे चाहूँगी 
खुदा खुद कहेगा ये प्यार था कुछ और नहीं तुझे अपना बना के मानूँगी। 




8 'तुम्हारी याद में'
पूष की शीत सुलगती रात में कभी मैं जागूँ तुम्हारी याद में और तुम्हें भी नींद ना आए।
 
उस आलम में तुम भी सुलगना संग मेरे, 
इश्क की अंगीठी जलाई थी जब साथ मिलकर।

यादों की बौछार में नहाते भिगेंगे भी संग संग, मैं मुस्कुराऊँगी हर उस लम्हें को याद करके तुम नखशिख जो मेरे तन की आभा से थे खेले।

सिगार के धुएं संग तुम भेजना उस लम्हों की तपिश मैं उर में बसे अरमान शेकूँगी उस आग से खेले, उस पलछिन की कसम जो तुम संग बीते उन लम्हों को मैं ज़िंदगी कहती हूँ।

जीनी है ताउम्र मुझे बार-बार लगातार वही कशिश, पनाह जो मेरे अहसास को तुम्हारी चाहत की मिले।

सुन रहे को क्या सदाएं मेरी क्यूँ हरदम दिल में उफ़ान तेरी यादों का उठे, चले आओ ना कहीं से अचानक, ये धूप सी ज़िंदगी तुम्हारी आगोश की छाँव को तरसे।



9 'साथ मेरे साथी का'
मैं हर रोज़ भिगती हूँ एक सुकून की बारिश में,
चाहत की चरम उनकी बरसती है जब मेरे तप्त एहसासों पर 
कहाँ काबू में खुद को रख पाती हूँ.. 

उष्ण है उनकी बादामी आँखों की रंगत बहते है आबशार प्रेम से सराबोर, 
जो पिघलाते मेरे वजूद को बहा ले जाते है कहाँ होश में रह पाती हूँ.. 

चीज़ है वो नशीली कोई या मैखाने की अलमारी, मदहोशी की टशर है उनकी हंसी में बस पीते ही बहक जाती हूँ.. 

करीब खिंचते उठाते है जब बाँसुरी सी मेरी काया को, मैं लज्जाते उनके प्यासे होठों से लगते ही मचल जाती हूँ..  

बाँहों की बंदीश उनकी मुझे कायनात की हर चीज़ से अज़िज है,
वल्लाह क्या जादू है उनकी आगोश की छाँह तले महफ़ूज़ सी खुद को पाती हूँ..

चल सकती हूँ बिना मंज़िल के रास्तों पर मीलों बशर्ते साथ मेरे साथी का हो, जिनके कदमों की मिट्टी को मैं सर चढ़ा लेती हूँ। 



10 'कसम तेरी नथनी की कसम'
तेरी नथनी की कसम धड़कन से बहते झरनों की लहरों पर सवार है तुम्हारे नाम की रवानी जाना। 

ए दिलरुबा ज़रा चिलमन तो गिरा रुख़सार पर, बेमौत मर जाएगा तलबगार तेरा दीदार का मारा।

यूँ बेपरवाह न बनों इल्म ही नहीं तुम्हें तुम क्या हो, उपरवाले ने फुर्सत में बनाकर मेरी लकीरों में सजाया बेनमून उपहार हो।

हुश्न की शौख़ीयों की क्या मिसाल दूँ, 
दामिनी सी अंगड़ाई लेते उठती है जब तू मेरे रोम-रोम में बेपनाह घंटियां बजे। 

उफ्फ़ ये गरदन पर ठहरे तिल का जादू
मेरे चैनों करार का दुश्मन है,
चूडियों की झनकार जैसे प्रेम के नग्में गाती पुकार है। 

लबों से टपकती शहद सी मीठी हंसी पर वार दूँ अपनी चाहत का खजाना, 
कहो तुम्हारी खूबसूरत अदाओं को गज़ल में ढ़ालूँ या लिख दूँ नज़्म का नज़राना।

पहली बारिश की बूँदों सी पाक मेरी माशुका, तुमसा पूरी कायनात में कोई होगा कहाँ 
तुम्हारे नखरिले नैंनों की संदूक में समा जाऊँ सदा के लिए
और लिख दूँ अपनी ज़िंदगी तुम्हारे नाम ताउम्र के लिए।
भावना ठाकर बेंगुलूरु #भावु
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शृंगार रस

9 मार्च 2022
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