shabd-logo

ईश्वर

hindi articles, stories and books related to ishwar


भजु मन चरन कँवल अविनासी। जेताइ दीसे धरण-गगन-बिच, तेताई सब उठि जासी। कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हे, कहा लिये करवत कासी। इस देही का गरब न करना, माटी मैं मिल जासी। यो संसार चहर की बाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी

तोती मैना राधे कृष्ण बोल। तोती मैना राधे कृष्ण बोल॥ध्रु०॥ येकही तोती धुंडत आई। लकट किया अनी मोल॥तोती मै०॥१॥ दाना खावे तोती पानी पीवे। पिंजरमें करत कल्लोळ॥ तो०॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरण

कुबजानें जादु डारा। मोहे लीयो शाम हमारारे॥ कुबजा०॥ध्रु०॥ दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा। तलपतरे जीव हमरारे॥ कुब०॥१॥ निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो। जाय पिवे जल खारारे॥ कु०॥२॥ इत गोकुल उत मथुरा नगरी। छोड

जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं॥ध्रु०॥ येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥ कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥ कैसा०॥२॥ येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥ है मीरा दरसनकुं प्य

काना चालो मारा घेर कामछे। सुंदर तारूं नामछे॥ध्रु०॥ मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। राधा गौळण मारूं नामछे॥१॥ आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे। पाछला मंदिर सामसुमछे॥२॥ मोर मुगुट पितांबर सोभे। गला मोतनकी मालछे

मैं तो तेरे भजन भरोसे अबिनासी॥ मैतो०॥ध्रु०॥ तीरथ बरतते कछु नहीं कीनो। बन फिरे हैं उदासी॥ मैंतो० तेरे॥१॥ जंतर मंतर कछु नहीं जानूं। बेद पठो नहीं कासी॥ मैतो० तेरे॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भई चरणकी

मैं तो तेरे भजन भरोसे अबिनासी॥ मैतो०॥ध्रु०॥ तीरथ बरतते कछु नहीं कीनो। बन फिरे हैं उदासी॥ मैंतो० तेरे॥१॥ जंतर मंतर कछु नहीं जानूं। बेद पठो नहीं कासी॥ मैतो० तेरे॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भई चरणकी

मोरी आंगनमों मुरली बजावेरे। खिलावना देवूंगी॥ध्रु०॥ नाच नाच मोरे मन मोहन। मधुर गीत सुनावुंगी॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरन बल जाऊंगी॥३॥

बागनमों नंदलाल चलोरी॥ अहालिरी॥ध्रु॥ चंपा चमेली दवना मरवा। झूक आई टमडाल॥च०॥१॥ बागमों जाये दरसन पाये। बिच ठाडे मदन गोपाल॥च०॥२॥ मीराके प्रभू गिरिधर नागर। वांके नयन विसाल॥च०॥३॥

लाज रखो तुम मेरी प्रभूजी। लाज रखो तुम मेरी॥ध्रु०॥ जब बैरीने कबरी पकरी। तबही मान मरोरी॥ प्रभुजी०॥१॥ मैं गरीब तुम करुनासागर। दुष्ट करत बलजोरी॥ प्रभुजी०॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुम पिता मैं छोरी॥

बन्सी तूं कवन गुमान भरी॥ध्रु०॥ आपने तनपर छेदपरंये बालाते बिछरी॥१॥ जात पात हूं तोरी मय जानूं तूं बनकी लकरी॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर राधासे झगरी बन्सी॥३॥

चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी। भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥ याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥ याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर न

पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या॥ध्रु०॥ तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥ पपैय्या०॥१॥ तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥ पपैय्या०॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥ पपैय्या०

हरि तुम कायकू प्रीत लगाई॥ध्रु०॥ प्रीत लगाई पर दुःख दीनो। कैशी लाज न आई॥ ह०॥१॥ गोकुल छांड मथुराकु जावूं। वामें कौन बढाई॥ ह०॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुमकूं नंद दुवाई॥ हरि०॥३॥

दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥ गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥ परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥ ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों। मारे रंगकी पिचकारी॥३॥

मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा। मेरे चित्त नंद लालछे॥ध्रु०॥१॥ ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥ मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला मोतनके माल छे॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तु

राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी। ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी॥१॥ ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी। हरहर बांसकी पेरी॥२॥ घडी एक मुखमें घडी एक करमें। घडी एक अधर धरी॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर ना

माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥ कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥ कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥ ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लियों बंजंता ढोल॥ मा०॥३॥ मीरा

शाम मुरली बजाई कुंजनमों॥ध्रु०॥ रामकली गुजरी गांधारी। लाल बिलावल भयरोमों॥१॥ मुरली सुनत मोरी सुदबुद खोई। भूल पडी घरदारोमों॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। वारी जाऊं तोरो चरननमों॥३॥

किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥ जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥ मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥

संबंधित टैग्स

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए