ईन्सानी जिन्दगी को कुदरत ने अपने नियमों से उसके पूरे स्प्फ्र को मौसमों की तरह बाँट रखा हैं .क्योकि जिन्दगी एक मौसम की तरह होता हैं .कब उसके जीवन में बसंत भार कर दे की मनुष्य सब विपदाओं से मिले दुखित नासूर को भूलकर एक रंग - बिरंगी सपनों की दुनियां की मल्लिका बना दे .और कब यह हरा - भरा जीवन सुखी जीवन में आंधी तूफान लाकर उसके सुखो को तार तार करके सूखा पीला कर दे .सूरज की तपन उसके सपनों को आग लगा दे .अपनी उम्मीदों को जिन्दा रखने के लिए वह छत्र छाया तलाशता .अपनी लाचारी को पसीने के रूप में बहाता हुआ बेहाल हो जाता हैं .आँखों में उम्मीद की डोर बाधें दिन रात कभी अपने हाथों की लकीरें पड़ता ,तो कभी उंगलियो पर दिनों को .ईश्वर भरोसे छोड़ अपनेको जीवन निस्वार्थ भाव सा अव्व्सी आस में जीता हैं की कभी तो ऊपर वाले की क्रपा द्रष्टि होगी .उसके जीवन में भी हरियाली आएगी और एक दिन उसकी प्रार्थना रंग लाएगी .उसके बंजर हुए जीवन में सुखो की बोछार होगी ,जिससे उसके दुःख की धूल धूमिल पड़ जाती हैं .सब शिकायते धुंधली पड़ जाती हैं .चारो ओर खुशियों की सौगात दस्तक देती हुई सुनाई देती हैं .हर तरफ से फल फूल रहा जीवन में दूर - दूर तक चिंता का नही NMONNISHAANभी द्रष्टिगत नही होता हैं .अपनी ही दुनियां में ईतने मस्त हो जाता हैं की धरती पर पैर नही टिकते वह अपने को धरती का स्वर्ग का ईंद् समझने लगता हैं .कहते है की अति का अंत तो होता ही हैं सुख समर्धि होने पर भी वह बैचेनी अनुभव करता हैं .कुविचार उसका सुख चैन छीन लेते हैं .समय रहते ऊपर वाले की मेहरवानी सचेत कर देती हैं .समर्धि का घमंड चकनाचूर होकर ,सड़ करके सुविचार रूपी खाद बनाता हैं .पुराने समय को याद कर उसकी सिरहन सही मार्ग प्रशस्त करती हैं .सुख - दुःख की सर्दी- गर्मी मुट्ठी में बंद रेट की तरह फिसलता जाता हैं .जिन्दगी के अनेक उतार चदाव के दरमियाँ जिन्दगी गुजरती जाती हैं और हम रफ्ता - रफ्ता चलते जाते हैं .जेसे हर मौसम का अपना एक मिजाज होता हैं ,उसी तरह हमारा जीवन हैं .मौसमी भारो की तरह मानवीय पल ' कभी ख़ुशी ,कभी गम ' की तरह होते हैं .