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कहने को बहुत कुछ था

30 सितम्बर 2015

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कहने को बहुत कुछ था, पर कह ना सका, मैं डरता जो था, अगर कह देता तो, बँधे होते बंधन मे हम दोनो वर्तमान में तुम होती, भविष्य तुमसे जुड़ा होता, बड़े अंतराल के बाद तुम मिली और अवसर भी मिला, सब कुछ व्यक्त करने को, पर तुम भी बंधन में हो और मैं भि

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ओम प्रकाश शर्मा

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कम शब्दों में आपने बड़ी बात कह दी, राजीव जी ! गागर में सागर है आपकी कविता 'कहने को बहुत कुछ था'। जावेद अख्तर साहब की वो नज़्म याद आ गई, 'मैं और मेरी तनहाई.....' बहुत खूब !

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