कहने को बहुत कुछ था,
पर कह ना सका,
मैं डरता जो था,
अगर कह देता तो,
बँधे होते बंधन मे हम दोनो
वर्तमान में तुम होती,
भविष्य तुमसे जुड़ा होता,
बड़े अंतराल के बाद तुम मिली
और अवसर भी मिला,
सब कुछ व्यक्त करने को,
पर तुम भी बंधन में हो
और मैं भि
30 सितम्बर 2015
कम शब्दों में आपने बड़ी बात कह दी, राजीव जी ! गागर में सागर है आपकी कविता 'कहने को बहुत कुछ था'। जावेद अख्तर साहब की वो नज़्म याद आ गई, 'मैं और मेरी तनहाई.....' बहुत खूब !
1 अक्टूबर 2015