खुशियाँ तो तूने बांटी हैं अक्सर,
खुशियाँ तो तूने बांटी हैं अक्सर,खुशियाँ तो तूने बांटी हैं अक्सर,
कभी खुद के लिए भी,
खुशियां ख़रीद के लाया कर।
ज़रूरतों का कभी पेट नहीं भरता,
कभी चंद सिक्के निकाल ,
खुद पर भी लुटाया कर।
तार है तू भी तो किसी सितार का,
कभी फ़ैला कर बांहें ,
इन हवाओं में गुनगुनाया कर।
दर्द तकलीफ़ें तो गाती है दुनियां,
बंद करके किताबें कभी,
खुशियों की खोज में निकल जाया कर।
ज़ख्म निखारती है रात की बरसातें,
छाता लगा खुशियों का,
तू सुबह की किरणों से जगमगाया कर।
मानाकि ज़िन्दगी कोई लतीफ़ा तो नहीं,
सजा यादों की महफिलें,
कभी बेवजह भी मुस्कुराया कर।
गर दे ये दुनिया तोहफ़े में कांटे,
निकल कर चाहरदीवारों से,
कभी बगीचों से मिलने जाया कर।
दुनिया का दस्तूर है हाथ छुड़ाना,
पकड़ हाथ ख्वाहिशों का,
तू हर मंज़िल पर चढ़ जाया कर।
महिमा राखी