कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियसब कुछ है धोखा कुछ कहीं नही हैहै हर कोई खोया ये मुझको यकीं हैना है आसमां ना ही कोई ज़मीं हैदिखता है झूठ है हक़ीकत नही है||उपर है गगन पर क्यो उसकी छावं नही है?है सबको यहाँ दर्द मगर क्यो घाव नही है?मै भी सो रहा हूँ, तू भी सो रहा हैये दिवा स्वपन ही और कुछ भी नही है||मैने बनाया