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कुदरत का कहर

3 सितम्बर 2022

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कुदरत कहर बरपाती है,
दुनिया वीरान हो जाती है।
चहुंओर सैलाब सा उमड़ता,
जिंदगी नहीं कहीं दिखती है।।

कुदरत का कहर देखो,
आंधी तूफान में समाई।
टूटे झोपड़ी और महल,
जन जन को ये रुलाई।।

कुदरत का कहर देखो,
पहाड़ टूट कर बिखर रहे।
सैलाब उमड़ रहा चहुंओर,
जन जन कैसे बिखर रहे।।

शांत कहर जब होता है,
जिंदगी वीरान सी दिखती।
भूख प्यास से हो बेहाल,
त्रासदी जीवन की दिखती।।

कुदरत के कहर से जीवन,
सुकून जिंदगी का छीन जाता।
त्रस्त हो जाता है जनजीवन,
भूचाल जीवन में आ जाता।।
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प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सही लिखा

4 सितम्बर 2022

anupama verma

anupama verma

4 सितम्बर 2022

Thank you 💐

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रचनाएँ
काव्यांजलि
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कविताओं के विभिन्न स्वरूपों का संग्रह
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कागज़ का टुकड़ा

1 सितम्बर 2022
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कागज़ का टुकड़ा जिस पर,कलम,स्याही, दवात का पहरा।शब्दों का प्रयोग जहां तक,मनस्थिति आंकलन का पहरा।।कागज़ का टुकड़ा जिस पर,लेखनी से विचार सजाते।भावों और विचारों का मंथन,प्रयासों से अपना लेखन सजाते।।कागज़

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मिट्टी के खिलौने देखो,होते हैं ये कितने सुन्दर।सुन्दर और सलोने खिलौने,होती है मूरत कितनी सुन्दर।।मिट्टी के खिलौने देखो,बनते हैं कच्ची मिट्टी से।कच्ची मिट्टी को सांचे में,ढाल के मूरत ये मिट्टी से।

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कुदरत का कहर

3 सितम्बर 2022
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कुदरत कहर बरपाती है,दुनिया वीरान हो जाती है।चहुंओर सैलाब सा उमड़ता,जिंदगी नहीं कहीं दिखती है।।कुदरत का कहर देखो,आंधी तूफान में समाई।टूटे झोपड़ी और महल,जन जन को ये रुलाई।।कुदरत का कहर देखो,पहाड़ टूट कर

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समय का पहिया घूमता,निरंतर होता है गतिमान।कल, आज और कल में,निरंतर रहता है गतिमान।।हर समय जिंदगी में तुम,मुस्कराते रहो सदा ही ऐसे।जो छूट जाए ऐसे यूं पीछे,कोई गम भी न हो ऐसे।।समय का पहिया को ऐ

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ह से हिंदी ह से हम,भारत के वासी हैं हम।ह से हिन्दू ह से हिन्दुस्तान,खिली रहे चेहरे पे मुस्कान।।हिन्दी से संस्कार हमारे,हिन्दी से हमारी संस्कृति।हिन्दी से से है आत्मसम्मान,हिंदी से हमारी अभिव्यक्ति।।हि

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