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मेरा इश्क़ मेरा दर्द मेरा रोग लिखता हूँज़ीवन के सारे अनुभवों का योग लिखता हूँसंयोग से संयोग हुआ इस कदर मेराक़ि बिछड़न में अब तलक मैं वियोग लिखता हूँ
इश्क़ है अभिव्यंजना है, तुम नहीं हो दर्द है आलिंगना है, तुम नहीं हो ! कब तलक मैं अश्क़ से गम को कुरेदूँशब्द है संवेदना है, तुम नहीं हो ! मैं वही सबकुछ वही फ़िर क्या है बदला क्यों हृदय में वेदना है, तुम नहीं हो ! आज़ डूबा हूँ समन्दर के सफ़ऱ
आज़ फ़िर उस मोड़ पे देखा तुम्हें था रूबरूविस्मित चकित इस ओर था मैं उस किनारे तुम ख़ड़ी थीं !मन हुआ क़ि पूछ लूँ तुमसे तुम्हारा हाल मैं परमौन थे संवाद और उस मौन में बातें बड़ी थीं !!सोचा तुम्हारी चाह में जो कभी बेला सी महकीं...जो तुम्हारी सप्तवर्णी छाँव में कोयल सी चहकीं...उन मधुर कलियों के कंटक में बदलने की
सच सच बतलाओ...क्या तुमको तकलीफ़ नहीं होती होगी ...है याद तुम्हें या भूल गयी हो बीती उन स्मृतियों कोया भूल गयी हो मेरी उन आश्वस्ति भरी उम्मीदों कोतुम कहती थीं ना क्या हम जग के तूफ़ाँ में बह जायेंगेया मर्यादा के सागर में बहते बहते खो जायेंगेफ़िर वो बातें जो चुप तुमको मुझको घायल कर जाती थींऔर हर मंज़िल माँ
अब कहाँ रौशनी कैसी परछाईंयाँबस अंधेरों के मेले हैं तनहाइयाँ ...!खोए नग़मे सा अब ढूँढता हूँ तुम्हेंछोड़कर यूँ मुझे गुम हुए तुम कहाँ ...!तुम बिना है अधूरा सा संसार सबख़ाली ख़ाली सा है ज़िन्दगी का मकाँ ...!है तुम्हारे बिना हर तरफ़ तीरगी कैसी दीपावली कैसा रौशन जहाँ ...!सोचता हूँ फ़क़त देखकर ये चमकजल उठे काश फ़ि
क़तरा क़तरा इश्क़ मुझसे रूठता रहाहर ख़्वाब निंगाहों में मेरा टूटता रहा ...!कश्ती लहर के संग मेरी डूबती रहीमेरे हाथ से दामन जो तेरा छूटता रहा ...!!
गरम थे रुख़ बहुत अबतक महीना सर्द है साहबज़मी है धूल चेहरे पर या शीशा गर्द है साहब ...करूँ अल्फ़ाज़ में कैसेे बयाँ चाहत का नज़रानाभले मुस्कान है लब पर बहुत पर दर्द है साहब ........💔.....
खिलीं हैं रौनकें बुझता सा शामियाना हैनई रंगत में भी ग़मगीन आशियाना है...अभी तो दर्द-ए-सब मेरी तड़प के गुजरी हैअभी नए रंग के दर्द-ए-गमों को आना है...रुकी रुकी सी है तन्हा ये ज़िन्दगी मेरीन जाने कब तलक साँसों का आना-जाना है...किसी ने आज़ फ़िर पूछी है हृदय की हालतलहू छलका है और अन्दाज़ शायराना है...नया यौवन
ग़िला शिक़वा करूँ कैसे मोहब्बत की इनायत कादिल-ए-बेताब की हर क़श्मकश किस्सा शिकायत काकिसी बीमार को जैसे अखरता हो बदन का ज्वरलहर की चोट से जैसे सिहरता हो कोई सागरकिसी अमरत्व की ख़्वाहिश में जैसे भाव मरता होक़ि जैसे फ़र्श पऱ ग़िरकर कोई शीशा बिखरता होक़ि टूटा हो परिंदा और पंखों का पता ना होबटाँ अस्तित्व हो ऐसे
आज़ फ़िर अहसास में टूटन का मंज़र आ गया...जब तेरी यादों की आँधी का बवण्डर आ गया...!मैंने तन्हाई को अपनी फ़िर से इक आवाज़ दी...बस मेरी पलकों में सै
मुन्तज़िर, ये दिन नहीं ढलते मेरे ... तन्हा रातों में मुझे नींद कहाँ आती है...!अब तो बता दो मुझे कुछ इल्म-ए-बशर ज़िन्दगी ज़ख़्म से नासूर बनी जाती है...!!...................✍️💔✍️..................
तुम वाणी की समरसता थेतुम थे संसद की एक तान...तुम राष्ट्रगीत थे भारत कातुम सवा अरब का राष्ट्रगान..! होगा तुम जैसा धीर कहाँयह घाव नहीं भर पाएगा...इतिहास अगर ख़ुद भी चाहेतुमको ना दोहरा पाएगा..!तुम स्वर्णमयी ग
किसी उजड़े हुए गुलशन को जैसे साख दे दी हो...किसी गुजरे हुए लम्हें की जैसे राख़ दे दी हो...हृदय की कश्मकश आग़ोश में थामे हुए पल-पलकिसी उम्मीद के आँशू को जैसे प्यास दे दी हो...कभी हर पल जहाँ रहती थी बस यादों की बीनाई...अचानक थम गई कुछ पल मुक़म्मल दर्द-ए-तन्हाई...असम्भव है मग़र फ़िर भी अनोखा सा नज़ारा है...कि
जवाँ आँखों का मंज़र खो गया हैहर एक अहसास खंज़र हो गया है...तमन्ना थी खिले बाग़-ए-चमन कीमग़र दिल एक बंज़र हो गया है...तृप्ति की इक बूँद पाने की ललक मेंसमूचा मन समन्दर हो गया है...न जाने कौन सा मोती लुटा है बड़ा सुनसान अन्दर हो गया है....!..............✍💔✍..…..........