इश्क़ है अभिव्यंजना है, तुम नहीं हो
दर्द है आलिंगना है, तुम नहीं हो !
कब तलक मैं अश्क़ से गम को कुरेदूँ
शब्द है संवेदना है, तुम नहीं हो !
मैं वही सबकुछ वही फ़िर क्या है बदला
क्यों हृदय में वेदना है, तुम नहीं हो !
आज़ डूबा हूँ समन्दर के सफ़ऱ में
हर लहर इक देशना है, तुम नहीं हो !
और थे हालात जब थे साथ पर अब
आशाएँ हैं संभावना है, तुम नहीं हो !
व्यर्थ है कहना तुम्हें क़ातिल हृदय का
व्यर्थ सब आलोचना है, तुम नहीं हो !
संग जीने और मरने का जिकर था
मृत्यु क़ी संकल्पना है, तुम नहीं हो !!......
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..........🙏✍ कुमार आशू ✍🙏..........