गरम थे रुख़ बहुत अबतक महीना सर्द है साहब
ज़मी है धूल चेहरे पर या शीशा गर्द है साहब ...
करूँ अल्फ़ाज़ में कैसेे बयाँ चाहत का नज़राना
भले मुस्कान है लब पर बहुत पर दर्द है साहब ...
.....💔.....
24 नवम्बर 2017
गरम थे रुख़ बहुत अबतक महीना सर्द है साहब
ज़मी है धूल चेहरे पर या शीशा गर्द है साहब ...
करूँ अल्फ़ाज़ में कैसेे बयाँ चाहत का नज़राना
भले मुस्कान है लब पर बहुत पर दर्द है साहब ...
.....💔.....
अति सुन्दर. ......
29 नवम्बर 2017