खिलीं हैं रौनकें बुझता सा शामियाना है
नई रंगत में भी ग़मगीन आशियाना है...
अभी तो दर्द-ए-सब मेरी तड़प के गुजरी है
अभी नए रंग के दर्द-ए-गमों को आना है...
रुकी रुकी सी है तन्हा ये ज़िन्दगी मेरी
न जाने कब तलक साँसों का आना-जाना है...
किसी ने आज़ फ़िर पूछी है हृदय की हालत
लहू छलका है और अन्दाज़ शायराना है...
नया यौवन नयी हसरत मुबारक हों तुम्हें
मेरा क्या है मेरा गुजरा हुआ ज़माना है...
जीत लो और तख़्त-ओ-ताज़ मग़र याद रहे
कल फ़िर इसी मिट्टी में ही मिल जाना है...!