मुन्तज़िर, ये दिन नहीं ढलते मेरे ...
तन्हा रातों में मुझे नींद कहाँ आती है...!
अब तो बता दो मुझे कुछ इल्म-ए-बशर
ज़िन्दगी ज़ख़्म से नासूर बनी जाती है...!!
...................✍️💔✍️..................
22 अप्रैल 2018
मुन्तज़िर, ये दिन नहीं ढलते मेरे ...
तन्हा रातों में मुझे नींद कहाँ आती है...!
अब तो बता दो मुझे कुछ इल्म-ए-बशर
ज़िन्दगी ज़ख़्म से नासूर बनी जाती है...!!
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