अब कहाँ रौशनी कैसी परछाईंयाँ
बस अंधेरों के मेले हैं तनहाइयाँ ...!
खोए नग़मे सा अब ढूँढता हूँ तुम्हें
छोड़कर यूँ मुझे गुम हुए तुम कहाँ ...!
तुम बिना है अधूरा सा संसार सब
ख़ाली ख़ाली सा है ज़िन्दगी का मकाँ ...!
है तुम्हारे बिना हर तरफ़ तीरगी
कैसी दीपावली कैसा रौशन जहाँ ...!
सोचता हूँ फ़क़त देखकर ये चमक
जल उठे काश फ़िर ये बुझा आशियाँ ...!!