जवाँ आँखों का मंज़र खो गया है
हर एक अहसास खंज़र हो गया है...
तमन्ना थी खिले बाग़-ए-चमन की
मग़र दिल एक बंज़र हो गया है...
तृप्ति की इक बूँद पाने की ललक में
समूचा मन समन्दर हो गया है...
न जाने कौन सा मोती लुटा है
बड़ा सुनसान अन्दर हो गया है....!
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