“कुंडलिया”मम्मा ललक दुलार में नहीं कोई विवाद। तेरी छवि अनुसार मैं पा लूँ सुंदर चाँद.. पा लूँ सुंदर चाँद निडर चढ़ जाऊँ सीढ़ी। है तेरा संस्कार उगाऊँ अगली पीढ़ी॥ कह गौतम कविराय भरोषा तेरा अम्मा। रखती मन विश्वास हमारी प्यारी मम्मा॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”पढ़ते-पढ़ते सो गया भर आँखों में नींद। शिर पर कितना भार है लगता बालक बींद॥लगता बालक बींद उठाए पुस्तक भारी। झुकी भार से पीठ हँसाए मीठी गारी॥कह गौतम कविराय आँख के नंबर बढ़ते। अभी उम्र नादान गरज पर पोथी पढ़ते॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”बादल घिरा आकाश में डरा रहा है मोहिं। दिल दरवाजा खोल के जतन करूँ कस तोहिं॥ जतन करूँ कस तोहिं चाँदनी चाँद चकोरी। खिला हुआ है रूप भिगाए बूँद निगोरी॥ कह गौतम कविराय हो रहा मौसम पागल। उमड़-घुमड़ कर आज गिराता बिजली बादल॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”चलते- चलते राह में जब मिलती पहचान।देख अचानक प्रेम को हो जाते हैरान॥ हो जाते हैरान मौसमी आँधी उड़ती। उठ जाते हैं हाथ निगाहें जब प्रिय पड़ती॥ कह गौतम कविराय दिल लिए प्रेमी पलते। कर देते न्योछार त्याग मन लेकर चलते॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”पलड़ा जब समतल हुआ न्याय तराजू तोल पहले अपने आप को फिर दूजे को बोलफिर दूजे को बोल खोल रे बंद किवाड़ी उछल न जाए देख छुपी है चतुर बिलाड़ीकह गौतम कविराय झपट्टा मारे तगड़ा कर लो मनन विचार झुके न न्याय का पलड़ा॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”पाती प्रेम की लिख रहे चित्र शब्द ले हाथ।अति सुंदरता भर दिये हरि अनाथ के नाथ।।हरि अनाथ के नाथ साथ तरु विचरत प्राणी।सकल जगत परिवार मानते पशु बिनु वाणी।।कह गौतम कविराय सुनो जब कोयल गाती।मैना करे दुलार पपीहा लिखता पाती॥-१लचकें कोमल डालियाँ अपने अपने साख।उड़ती नभ तक प
“कुंडलिया”भरता नृत्य मयूर मन ललक पुलक कर बागफहराए उस पंख को जिसमें रंग व राग जिसमे रंग व राग ढ़ेल मुसुकाए तकि-तकिहो जाता है चूर नूर झकझोरत थकि-थकिकह गौतम कविराय अदाकारी सुख करता खुश हो जाता खंड दंड पावों में भरता॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” गागर छलके री सखी पनघट पानी प्यासआतुर पाँव धरूँ कहाँ लगी सजन से आसलगी सजन से आस पास कब उनके जाऊँ उपसे श्रम कण बिन्दु पसीना पलक दिखाऊँकह गौतम कविराय आज भर लूँगी सागर पकड़ प्यार की डोर भरूँगी अपनी गागर॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”टकटक की आवाज ले चलती सूई तीन मानों कहती सुन सखा समय हुआ कब दीनसमय हुआ कब दीन रात अरु दिवस प्रणेता जो करता है मान समय उसको सुख देताकह गौतम कविराय न सूरज करता बकबकचलता अपनी चाल प्रखर गति लेकर टकटक॥ महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”इंद्र धनुष की यह प्रभा मन को लेती मोह हरियाली अपनी धरा लोग हुये निर्मोह लोग हुये निर्मोह मसल देते हैं कलियाँ तोड़ रहें हैं फूल फेंक देते हैं गलियाँ कह गौतम कविराय व्यथा कब पाये निंद्र नगर नगर पाषाण उगे क्यों छलिया इंद्र॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”रानी बैठी रूपिणी लेकर पींछी साज बादल को रँगने चली मानों घर का राज मानों घर का राज नाज रंगों पर करती नित नूतन सुविचार आकृति उलझी रहती कह गौतम कविराय यौवना प्यासी पानी दिल के जीते जीत जीत दिल हारी रानी॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपु
“कुंडलिया”पाँखेँ ले उड़ती फिरूँ छतरी है आकाश बेंड़ी मेरे पाँव में फिर भी करू प्रयास फिर भी करूँ प्रयास आस मन भरती रहती सकल वेदना भूल तूल को अपना कहती रे गौतम नादान दिखा मत विजयी आँखें हाथ धरे तलवार फड़कती मेरी पाँखेँ॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”मैया का पूजन करें, निशदिन आठो याम सूर्य उपासन जल मही, छठ माँ तेरे नाम छठ माँ तेरे नाम, धाम की महिमा भारी माँग भरें सिंदूर, पूरती चौका नारी कह गौतम कविराय, सकल फल पाए छैयाअर्घ करे दिन रात, आज के दिन छठ मैया॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया”अपनी गति सूरज चला, मानव अपनी राह ढ़लता दिन हर रोज है, शाम पथिक की चाह शाम पथिक की चाह, अनेकों दृश्य झलकते दिनकर आए हाथ, चाँदनी चाँद मलकते “गौतम” छवि दिनमान, वक्त पर जलती तपनीपकड़ तनिक अभिमान, शुद्ध कर नीयत अपनी महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" पानी भीगे बाढ़ में, छतरी बरसे धार कैसे तुझे जतन करूँ, रे जीवन जुझार रे जीवन जुझार, पाँव किस नाव बिठाऊँ जन जन माथे बोझ, रोज कस पाल बँधाऊँ 'कह गौतम' कविराय, मिला क्या कोई शानी मोटे पुल अरु बाँध, रोक ले बहता पानी।। महातम मिश्र,
आज पावन शिक्षक दिवस, 05-09-2017 पर पूज्यनीय गुरुवर वृंद जनो को सादर चरण स्पर्श...... "कुंडलिया" मुंशी जी जिस दिन मिले, मिला सकल संसार पंडित जी गुरु पद कमल, वंदहुँ बारंबार वंदहुँ बारंबार, शिक्षक ने अँगुली पकड़ी क ख सम्यक संज्ञान, निखरती पटरी लकड़ी गौतम ज्ञान अपार, महिमा गुरु शिक्षा बंशी नैया के पतवार,
"कुंडलिया" जाओ तुझको दे दिया, खुला गगन अहसास वंधन रिश्तों का भला, पंख काहिं वनवास पंख काहिं वनवास, भला क्यों तुझको बाँधूँ ऊसर परती खेत, अकारण बैला नाँधूँ कह 'गौतम' कविराय, परिंदे तुम हर्षाओ वंधन किसे सुहाय, उड़ो मगन जियो जाओ।। महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” माता नमन करूँ तुझे, कहलाऊँ मैं पूत पीड़ा प्रतिपल दे रहा, जैसे एक कपूत जैसे एक कपूत, रूप प्रति हर ले जाए नाता के अनुरूप, नयन नक्श छवि छाए कह गौतम कविराय, दुष्ट दुराग्रह भाता करहु क्षमा दे ज्ञान, भटके पूत हैं माता॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” चाहत अपनों से रखें, नाहक घेरे गैर साथी अपने पाँव हैं, हिला डुला के तैर हिला डुला के तैर, मीन बिन पाँव मचलती गहरे जल विश्राम, न छिछले धार उछलती गौतम मांझी मान, नाव नहि होती आहत नाविक की पहचान, जान ले तल की चाहत॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” कलशा पूजन मातु का, सस्थापन प्रथमेय कंकू चंदन अरु जयी, नवल शृंगार धरेय नवल शृंगार धरेय, मातु चरन नित्य वंदन नवनव दिन नवरात्र, नाचते माँ के नंदन गौतम गण अनुराग, विनय अनुनय भर मनसा श्रद्धा शुद्ध पराग, अलंकृत घर घर कलशा॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी