“चित्र लेखा” “कुंडलिया” मंदिर मंदिर मन फिरे, प्रेम पिपासे होंठ बिना प्रेम मन मानवा, सूखे अदरख सोंठ सूखे अदरख सोंठ, सत्व गुण तत्व पिरोए रसना चखे स्वाद, नैन लग झर झर रोए ले ले गौतम ज्ञान, सजा ले मन के अंदर पूर्ण कहाँ इंसान, कहाँ बिन प्रेमी मंदिर॥ महातम मिश्र, गौतम
“कुंडलिया” आओ चलें डगर बढ़ी, शीतल चाँद प्रकाश रजनी अपने पथ चली, शांत हुआ आकाश शांत हुआ आकाश, निरंतर शोर सुना के शीत ग्रीष्म आभास, सुहानी छटा सजा के गौतम अनुपम चाँद, देख शोभा सुख पाओ मंजिल पर है राह, सगे साथी मग आओ॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” गर्मी त्रण सौ पैसठी, वर्ष एक उपहार कुछ नर्मी कुछ सर्दियाँ, कुछ चुनाव का भार कुछ चुनाव का भार, उठाती शोषित जनता होते सब गुमराह, जाति धर्म संग चलता गौतम मेरी मान, गलत यह स्वार्थी धर्मी देश बहुत महान, दरिंदों के मन गर्मी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” सुंदरी की सुंदरता, अर्पण करती फूल नयन रम्यता झील की, मोहक पल अनुकूल मोहक पल अनुकूल, खींचता है आकर्षण यही प्रकृति विज्ञान, सृष्टि करे प्रत्यार्पण गौतम यह सौगात, नगीना शोहे मुंदरी कोमल कर करताल, अर्घ जल पुष्प सुंदरी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” खिचड़ी ही लोहड़ी कहीं, पर्व मकर संक्रांति काले तिल में गुड़ मिला, पथ्य सर्व सुख शांति पथ्य सर्व सुख शांति, जलाए तम विकार के मीठा गन्ना जूस, पूस कचरस पी जम के थिरके गौतम पाँव, कभी नहि तवियत बिगड़ी धुंधा तिलवा भाव, फसल नव लाई खिचड़ी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” हिंदी बिंदी शालिनी, मेरा हिंद महान वाणी वीणा सादगी, माने सकल जहान माने सकल जहान, हिंदी की दरियादिली सब करते गुणगान, श्रीफल औषधि गुन विली गौतम कवि रसखान, सुशोभित माथे बिंदी रस छंद अलंकार, समास सुसंकृत हिंदी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” पाई पाई काट के, राखी चिल्लर जोड़ किल्लत की थैली लिए, उम्मीदों के मोड़ उम्मीदों के मोड़, बड़ी मुश्किल से मुड़ते भरे न भूखे पेट, कहाँ से नोट निकलते गए गौतम बिखराय, गुलक्का नोट पराई नहीं निगलते माल, जहां दुख पाई पाई॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कुंडलिया” कुहरे की चादर तनी, ठंड बढ़ी बेजोड़ तपते सूरज ढ़क गए, सूझ सड़क नहि मोड़ सूझ सड़क नहि मोड़, गाडियाँ भरें तिजोरी झरझर बहते नीर, नैन दहकाय निगोरी कह गौतम सुन भाय, चले कत निहुरे निहुरे सिकुड़ी रेखा हाथ, घने छाए हैं कुहरे॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
विनम्र श्रद्धांजलि आदरणीया स्वर्गीया अम्मा जयललिता जी को...... “कुंडलिया”जीवन जीते हैं सभी, कुछ होते अनमोल वही तराना लय वही, रख देते दिल खोल रख देते दिल खोल, झूम उठती है दुनिया आज रुवासी बोल, सुनाये बज हरमुनिया कह गौतम कविराय, अश्रु बहि जाय अनीवन अम्मा कस विसरा
“कुंडलिया” कार्तिक मासी पुर्णिमा, तीरथ गंग महान पूर्ण चंद्रमा खिल उठा, पुण्य प्रयाग नहान पुण्य प्रयाग नहान, कथा त्रिपुरारी महिमा त्रिपुटि दैत्य निदान, विजयी है शिव गरिमा कह गौतम चितलाय, न होगी तंगी आर्थिक तुलसी दिया जलाय, महिना भर भर कार्तिक॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी