“कुंडलिया”
खिचड़ी ही लोहड़ी कहीं, पर्व मकर संक्रांति
काले तिल में गुड़ मिला, पथ्य सर्व सुख शांति
पथ्य सर्व सुख शांति, जलाए तम विकार के
मीठा गन्ना जूस, पूस कचरस पी जम के
थिरके गौतम पाँव, कभी नहि तवियत बिगड़ी
धुंधा तिलवा भाव, फसल नव लाई खिचड़ी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी