मुंशी प्रेमचंद, कबीर, तुलसी, सूरदास, रहीम, मलिक मोहम्मद जायसी ,ग़ालिब, कालिदास, चाणक्य , अकबर , बीरबल , टोडरमल , जेम्सवाट जैसे चेहरे डिग्री से नहीं, काम से जाने जाते है। अच्छे से अच्छे स्कॉलर, PHD होल्डर इन नामों का लोहा लेते है। वैसे कहते भी है प्रतिभा क्सिी डिग्री की मोहताज नहीं होती। परन्तु अपने मुह मियां मिठ्ठू बनने वाली (अपनी प्रसंशा स्वयं करने वाले) दुनिया में आज व्यक्ति की पहचान शायद उसके काम की बजाय नाम के आगे लगने वाली डिग्री से होने लगी है। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री के फर्जी डिगी मामले में लिप्त पाये जाने के कारण ( मामला न्यायलय के विचाराधीन है ) देश में फर्जी व् असली डिग्री को लेकर घमासान मचा है । सब जगह असली नकली की जांच की मांग उठ रही है। भौतिक वादी युग में हितों को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक भी है।
एक साधे सब सधे ,की तर्ज पर धनवान, चतुर, चालाक प्रवृति के कुछ धन्ना सेठ ज्ञान को भी पैसे के बल पर खरीदने पर तुले है । डिग्री को एक व्यापार की वस्तु समझते है, जो धन से खरीदी जा सकती है। परन्तु अर्थशास्त्र में भी धन को परिभाषित किया गया है। किसी वस्तु को धन कहलाने के लिए में निम्न गुण होने आवशयक हें -
1- उपयोगिता का गुण
2- प्राप्ति में दुर्लभता का गुण
3- मूल्यवानता का गुण
4- हस्तांतरणता का गुण
5- सर्व स्वीकार्यता का गुण
उपरोक्त सभी गुणोँ वाली किसी भी वस्तु को धन की श्रेणी में रखा जा सकता है अर्थात खरीदा बेचा जा सकता है अब सवाल उठता है क्या कॉलेज की B.A. डिगी या LL.B. की डिग्री धन है ?
उत्तर है नहीं । कारण इन डिग्रियों को किसी भी व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं क्या जा सकता जिस कारण इनका खरीद व् बेच पाना संभव नहीं । अतः कॉलेज डिग्री धन नहीं है। हाँ इतना जरूर कह सकते है डिग्री धन भले ही न हो परन्तु धन कमाने का जरिया जरूर है। अतः धन से कम नहीं ।