अम्बेडकर जयन्ती, रामनवमी
की धूम व महावीर जयन्ती की तैयारियों के बीच देश में दिल्ली-सरकार के "ऑड-ईवन" फॉर्मूले की चर्चा है कि किस तरह “स्टिकरनुमा-डिवाइस” के
आविष्कार से "ऑड-ईवन" डेज में दिल्ली के एयर पॉल्यूशन लेवल को कम कर हवा को स्वच्छ व् सांस लेने योग्य बनाया जा रहा है। इस “स्टिकरनुमा-डिवाइस” पर पूरी तरह से दिल्ली-सरकार
का पेटेंट, एकाधिकार व् नियनत्रण है।
वैसे इस अमूल्य व बहुउपयोगी डिवाइस के काले बाजार में भी बिकने व् जाली
होने की खबर भी आयी है। अभी
हाल ही में हुए "स्याही से पुताई-जूते से धुलाई" कांड को लोग इसी कड़ी से जोड़ कर देख रहें है। दिल्ली-सरकार ने “स्टीकरनुमा-डिवाइस” का आविष्कार कर "मेक-इन-इडिया " व् “स्किल इंडिया” के क्षेत्र में एक नई जान फूंक दी है। इस डिवाइस को शीशे पर लगाने मात्र से ही "ऑड-ईवन" डेज में दिल्ली के एयर पॉल्यूशन, जड़ से खत्म हो जाता है। इसे
चलाने में किसी प्रकार का खर्च भी नहीं आता।
जैसा कि सभी जानते ही है कि जीवन के लिए जरूरी पांच तत्वों
-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, आकाश में से दिल्ली में
कुछ तत्व अपने नहीं है ।
जैसे जल जैसा महत्त्वपूर्ण तत्व हरियाणा पंजाब, UP, उत्तराखंड से
आता है। जब जल तत्व अपना नहीं तो फिर हवा जैसा तत्व दिल्ली का कैसे हो सकता है?
सर्दियों में हिमाचल, उत्तराखंड , कश्मीर
में जब भी बर्फ पड़ती है तो
इसका आनंद दिल्ली वाले यहां की ठंडी हवाओं में लेते है।
इस प्रकार दिल्ली की हवा में पॉल्यूशन के आंतरिक कारणों के साथ-साथ बाहरी
कारण भी मौजूद है। परिंदों
की तरह हवा को देश-प्रदेश के लिए पासपोर्ट, वीजा ,रोड परमिट या
फिर एंट्री टैक्स देने की
कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। पंजाब, राजस्थान या पकिस्तान की ओर से आयी धुल भरी हवा यहां कभी-कभी दम घोंटू वातावरण बना देती है। पंजाब
में पुआल का धुवाँ दिल्ली की हवा में सांस लेने में दिक्कत खड़ी कर देता है। जो दिल्ली में एयर पॉल्यूशन
का बाहरी कारण है।
इक्कीसवीं सदी में दिल्ली-सरकार की
"स्टिकरनुमा डिवाइस" कड़ी मेहनत, दिव्य दृष्टि, पक्के इरादे तथा "ऑड-ईवन की करोड़ों रूपये
की ब्रांडिंग को जाता है। आज “गब्बर- इज- बेक” में “गब्बर”
ब्रांड की तरह "ऑड- ईवन” फार्मूला वर्ल्ड में एक जाना पहचाना अरबों
रुपयों का ब्रांड बन गया है। जबकि गुड़गांव का नाम
बदलने पर , गुरुग्राम ब्रांड के लिए अरबों रुपया खर्च करना होगा।
बचपन में मैथ्स में पढ़े ऑड-ईवन नंबर्स का जीवन में और भी प्रभावशाली उपयोग हो सकता है, इसका ज्ञान दिल्ली में “ऑड-ईवन” फॉर्मूला लागू
होने पर हुआ। पता चला, जीवन तो ऑड-ईवन की संभावनाओं से भरा पड़ा है। पुरुष- “ऑड” है , तो स्त्री- “ईवन”। अर्थात एक-X है
तो दूसरा-Y। दो हाथ, दो पैर, दो किडनी, दो नथुने, दो ऑंखें , दो जबड़े,आदि-आदि।
मुझे दो-दो अंग “ऑड-ईवन” ब्रांड का ही प्रतीक ही नजर आते है। नॉस्टल (नथुने)
के “ऑड-ईवन” के सुन्दर
प्रयोग अर्थात चन्द्र स्वर व् सूर्य स्वर की लय सुर ताल
मिलाते हुए अर्थात “अनुलोम-विलोम” के अनूठे प्रयोग
व् प्रचार-प्रसार से एक बाबा ने तो अरबों रूपये का मायावी साम्राज्य ही खड़ा कर
लिया है। बाबा ने “ऑड-ईवन” की
प्रयोगशाला में “अनुलोम-विलोम”
ब्रांड तैयार कर सैकड़ों वर्ष से जमीं हिन्दुस्तान
यूनिलीवर जैसी मल्टीनेशनल कम्पनी को भी भ्रामरी व् ओंकार जप के साथ व्रज आसन में
बैठ, शशांक आसन करने को मजबूर कर दिया है। “ऑड-ईवन” का प्रभाव ही कुछ ऐसा है जिसके प्रभाव को 15th
April ,2015 को DMRC की दिलशाद गार्डन-रिठाला की रेड लाइन भी न रोक सकी ।
लगातार पांच घंटे तक “ऑड-ईवन” तकनीक अर्थात एक ही लाइन पर मेट्रो चलाकर,
DMRC को भी “ऑड-ईवन”
की उपयोगिता पर मुहर लगाकर, सलाम करना पड़ा।
परिणाम जो भी हो, दिल्ली को एयर पॉल्यूशन
से बस आजादी मिलनी ही चाहिए ,ठीक वैसे ही जैसे बलूचिस्तान ,
POK के बाशिंदों को पकिस्तान के जुल्मों सितम से। इस आजादी के
हवन कुंड में हिन्दुतान की 127 करोड़ लोगों की टीम
इंडिया “सबका साथ- सबका विकास” को मूल रूप देते हुए अपने-अपने हिस्से की आहूति देनी होगी ।
दिल्ली एयर पॉल्यूशन फ्री होनी ही चाहिए, चाहे वो “ऑड- ईवन" फॉर्मूले से हो , “स्टिकरनुमा
डिवाइस” से , पेड़ पोधे लगाकर या
फिर वैज्ञानिक कृतिम
उपाय करके। ताकि हवा में साँस लेते
हुए, अनुलोम-विलोम करते हुए वायु में बांसमति चावलों की भीनी-भीनी महक, गुलाब,
हार-सिंघार, चमेली के फूलों की मनमोहक खुशबू ,तन-मन में शांति प्रदान करे। आइये ! मादरे वतन को शीश नवाते हुए , जय हिन्द!
जय भारत ! का उद्घोष करें ।