ज्ञानी से ज्ञानी लड़े ज्ञान सवाया होय । ज्ञानी से मूरख लड़े तुरत लड़ाई होय।। माया मोह में फंसे कुछ साधू-संन्यासिनों , स्वयंभू माँ की अवतार राधा-कृष्ण के देश में कुछ लोग ऋषी-मुनियों के सदियों पुराने नुस्खों, रचना, प्राकृतिक खोजों पर पेटेंट , कॉपी राइट का एकाधिकार प्राप्त कर ज्ञान को अंधेरी कोटरी में फिर से बंद करने में लगे है। ताकि कोई भी एकलवय राजकुमारों के सामने फिर से तन कर न खड़ा हो । निश्चित ही यह उनका हल्दी, चन्दन, नीम, योग, आसन आदि सदियों पुराने ज्ञान को कानूनी दाँव पेंच में फंसा दुनिया के गरीब से गरीब को लाभ से वंचित करने का कुल्सित प्रयास है। आज संगीत, जड़ी-बूटी परम्परा गत ज्ञान आदि पर पेटेंट, कॉपी राइट की तलवार लटक रही है।
हद तो यह भी है कि चतुर लोग उद्घोष, गर्जना, सिंहनाद , नारों, स्लोगनों आदि पर जो प्रारम्भ से ही हमारी सस्कृति, धर्म , समाज व देश का एक अटूट हिस्सा रहें है तथा जिन नारों का सामजिक, आर्थिक, देश की आजादी , एकता व अखंडता, राजनैतिक महत्व है, पर भी कॉपी राइट चाहते है।
देश प्रेम में डूबे हिन्दुस्तान -जिंदाबाद , भारत माता की -जय , वन्दे मातरम जैसे नारों को जब 125 करोड़ भारतीयों की टीम इंडिया लगाती है व सुनती है तो दिल में देश प्रेम हिलौरे मारने लगता है । दिल में जोश भर देता है। भला ऐसे नारों को किस कॉपी राइट क़ानून में बंद किया जा सकता है।
यह उद्घोष, नारे, सिंहनाद हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। धार्मिक, सामाजिक ,राजनैतिक स्तर पर नारों को समय-समय पर गढ़ा जाता है। हिन्दू धर्म में सामूहिक प्रार्थना में उद्घोष प्रार्थना के अटूट अंग है। जैसे धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सदभावना हो , विश्व का कल्याण हो। जय श्री राम ! हर हर महादेव!! आदि-आदि । अन्य धर्मों के सिँहनाद पर नजर डाले तो – “बोले सो निहाल, सत श्री अकाल “। “नारा-ऎ-तदबीर, अल्लाहू अकबर। जैसे पवित्र उद्घोष कानों में गूँज जाते है।
नेता भी समय-समय पर नारे, उद्घोष गढते है जैसे - “सबका साथ,-सबका विकास”, “गरीबी हटाओं” । “ हाथी नहीं महेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है“आदि। समाज चेतना के लिए भी नारों को गढ़ा जाता है जैसे–“दुल्हन ही दहेज़ है” , “बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं “आदि- आदि।
कुछ नारे समाज, देश में अपने आप मशहूर हो जाते है जैसे “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा “, “अंग्रेजों भारत छोड़ों”, “आजादी हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है “। कुछ नारों को जन-जन तक पहुचाने के लिए सरकार व नेताओं को पैसा खर्च करना पड़ता है। जैसे इन दिनों दिल्ली सरकार– “वो परेशान करते रहे, हम काम करते रहे” जैसे नारे पर ( पॉपुलर बनाने के लिए) टैक्स पेयर्स का हर माह करोड़ों खर्च कर रही है। आम आदमी को परेशानी में यह नारा निराशा में आशा का रक्त संचार करता दिखता है । उदाहरण के लिए – “शादी करने में भारी विरोध के बाद जब कोई विवाहित जोड़ा सफल होता है तो कह उठता है- “वो परेशान करते रहे हम काम करते रहे”।सेना दवरा आतंकियों को मार गिराने पर आम जनता भी इसी नारे को दोहराती है । C.A. जैसे प्रोफेशनल कोर्स में अनेकों बार फेल होने के बाद जब स्टूडेंट कामयाब होता है तो इसी मन्त्र को दोहराता है।आप माने या न माने मुझ गुरू घंटाल के चेले को यह नारा महाभारत काल से भी पुराना प्रतीत होता है। दुर्योधन को मार युधिश्ठर जब गद्दी पर बैठे तो वो भी इस मन्त्र से न बच पाये होयेगें । राक्षसों व रावण का वध कर जब रामचन्द्रजी अयोध्या में पहुंचे होंगे तो प्रजा भी उपरोक्त मुल मन्त्र के प्रभाव से न बच पायी होगी।
कुछ लोग इस बात पर विरोध दर्शा सकते है कि सदियों पुराने इस नारे, मन्त्र पर किसी पार्टी विशेष का कब्जा नहीं हो सकता। यह परम्परागत मजबूर व परेशान दिल से निकला नारा है। जब आदमी असफल प्रयास के बाद सफल होता है तो उसे उपरोक्त नारा दोहराना ही पड़ता है । एक विधान सभा में राशन दुकानदारों को धमकी देकर हर माह दो हजार की उगाही का स्टिंग सामने आने पर पीड़ित लोगों के दिल से भी अचानक यही आह निकली होगी । प्याज के आसमान छूते भाव, आम जन की पहुचं से दूर होती दाल , नेताओं का उदासीन रवैया देख जनता को भी इसी मन्त्र को दोहराना पड़ता है । स्पष्ट है यह परम्परागत नारा है इस पर किसी नेता या पार्टी विशेष को कॉपी राइट नहीं दिया जा सकता। पुरानी कहावत भी है- “गाड़ी चलती रहती है, कुत्ते भौकते रहते है “। यह नारा इसी कहावत का वर्जन लगता है। अरे! क्या लेकर बैठ गए ।आये थे हरी भजन को ओटन लगे कपास ।किसी हर्ट के लिए क्षमा।
देश आजादी के जश्म में डूबा है तो क्यों न एक बार फिर सिंहनाद करे- भारत माता की जय! वन्दे मातरम ! जयहिंद ! जयभारत !