पितृ सदा रहते हैं आपके आस-पास। मृत्यु के पश्चात हमारा और मृत आत्मा का संबंध-विच्छेद केवल दैहिक स्तर पर होता है, आत्मिक स्तर पर नहीं। जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनकी आत्मा अपनी निर्धारित आयु तक भटकती रहती है। हमारे पूर्वजों को, पितरों को जब मृत्यु उपरांत भी शांति नहीं मिलती और वे इसी लोक में भटकते रहते हैं, तो हमें पितृ दोष लगता है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ दोष के कुप्रभाव से बचने के लिए अशांत जीवन का उपाय श्राद्ध है तथा इससे बचने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जिनमें श्राद्ध, तर्पण व तीर्थ यात्राएं आदि तो हैं ही साथ ही विभिन्न प्रकार की साधनाएं एवं प्रयोग किए जाते हैं जिनके संपन्न करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
मृत आत्मा की शांति
श्राद्ध बारह प्रकार के होते हैं। हम मृत आत्मा की शांति-तर्पण दान देकर उनका आशीर्वाद और कृपा प्राप्त कर सकते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म से संतुष्ट होकर पितर हमें आयु, पुत्र, यश, वैभव, समृद्धि देते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है। श्राद्ध के पिण्डों को गाय, कौवा अथवा अग्रि या पानी में छोड़ दें। पितृ दोष हो तो गृह एवं देवता भी काम नहीं करते तथा एेसे जातक का जीवन शापित एवं अशांत हो जाता है। जो व्यक्ति माता-पिता का वार्षिक श्राद्ध नहीं करता उसे घोर नरक की प्राप्ति होती है और उसका जन्म शुक्र योनि में होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना में, विष से अथवा शस्त्र से हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए। जिन व्यक्तियों को अपने माता-पिता की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, एेसे व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। नवमी के दिन अपनी मृत मां, दादी, परदादी इत्यादि का श्राद्ध करना चाहिए।
जब मृत्यु के बाद मृत आत्माओं की इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती तो उनकी आत्मा अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव दिखाती है, जिसके कारण अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। इसे पितृदोष कहा जाता है। इस दोष के कारण दुर्भाग्य में भी वृद्धि होती है। पितृ दोष एक ऐसा दोष है जो अधिकतर कुंडली में होता है। इस प्रकार का दोष होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोग पितृदोषों से मुक्ति हेतु हरिद्वार अौर नासिक आदि स्थानों पर जाते हैं। जानिए पितृदोष से संबंधित कुछ बातें-
* किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात जब परिजन उसकी अंतिम इच्छाअों की पूर्ति नहीं करते तो उसकी मृत आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है।
* जब मृत व्यक्ति के अधूरे कार्य पूरे नहीं किए जाते तो उसकी आत्मा परिवार पर अप्रत्यक्ष रुप से कार्यों को पूरा करने के लिए दबाब डालती है। जिसके कारण परिवार में कई बार अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। यही पितृदोष होता है।
* पितृदोष से मुक्ति हेतु श्राद्धपक्ष अौर हर महीने की अमावस्या पर पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान अौर तर्पण करें।
* कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते।
तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते।
अर्थात: कर्मलोप की वजह से जो पूर्वज मृत्यु के बाद प्रेत योनि में चले जाते हैं। उनके श्राप से पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती है। प्रेत योनि में पितर को कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। यदि उनका श्राद न किया जाए तो वे हमें नुक्सान पहुंचाते हैं। पितरों का श्राद करने से समस्याएं स्वयं समाप्त हो जाती हैं।
* शास्त्रों के अनुसार
"पुत्राम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति"
अर्थात: जिनके पुत्र नहीं होते उन्हें मरोणोपरांत मुक्ति नहीं मिलती। पुत्र द्वारा किए श्राद कर्म से ही मृत व्यक्ति को पुत नामक नर्क से मुक्ति मिलती है इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।