मालवा का प्रसिद्ध भोजन। कोई भी खास मौका इसके बगैर खास नहीं होता। कई घरों में तो छुट्टी के दिन बाटी बनना अनिवार्य है। नई बहुओं को भी पहले दिन ही परिवार के इस स्वादिष्ट नियम के बारे में बता दिया जाता है। हर घर की पसंद बाटी करीब तीन दिन तक खराब भी नहीं होती है। ऐसे में यात्रा के दौरान भी लोग इसे साथ लेकर जाना पसंद करते हैं। गांव में जहां चूल्हे पर भोजन बनता है, वहां रोटी बनने के बाद बचे हुए आटे की दो-तीन बाटी तो चलते-फिरते बन जाती है। स्वाद में यह बाटी जितनी जायकेदार होती है, इसका इतिहास भी उतना ही रोचक है।
दाल बाटी जितना राजस्थान में पसंद किया जाता है उतना ही दाल बाफला के नाम से इंदौर-मालवा के इलाके में पसंद किया जाता है। यह राजस्थानी रेसिपी सर्दी के मौसम के लिए एक आदर्श डिश है,जो आपके शरीर को ठंड से तुरंत राहत दिला सकती है। जब भी कभी छुट्टी हो, घर में मेहमान हों, और आप गप शप में दिन बिता रहे हों तो दाल बाटी यानी दाल बाफला बनाईये। इसे बनाते समय आप बीच बीच में अपनी गप शप भी करते रहिये। रतलाम, उज्जैन, उदयपुर की कुछ दाल बाटी की दुकान तो बहुत प्रसिद्ध हैं।
दाल बाटी से जुड़ी खास बातें
आपको इन्हें बनाते समय बातचीत के लिये भरपूर समय मिलेगा और आप स्पेशल खाना भी तैयार कर सकेंगे। कुछ पुराने और कुछ चटोरे लोगों से जानकारी से पता चला कि बाटी का अविष्कार क्यों, कहाँ, कब और कैसे हुआ??
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बाटी मूलत: राजस्थान का पारंपरिक व्यंजन हैै। इसका इतिहास करीब 1300 साल पुराना है। 8वीं सदी में राजस्थान में बप्पा रावल ने मेवाड़ राजवंश की शुरुआत की। बप्पा रावल को मेवाड़ राजवंश का संस्थापक भी कहा जाता है। इस समय राजपूत सरदार अपने राज्यों का विस्तार कर रहे थे। इसके लिए युद्ध भी होते थे। इस दौरान ही बाटी बनने की शुरुआत हुई। दरअसल युद्ध के समय हजारों सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण काम होता था। कई बार सैनिक भूखे ही रह जाते थे। ऐसे ही एक बार एक सैनिक ने सुबह रोटी के लिए आटा गूंथा, लेकिन रोटी बनने से पहले युद्ध की घड़ी आ गई और सैनिक आटे की लोइयां रेगिस्तान की तपती रेत पर छोड़कर रणभूमि में चले गए। शाम को जब वे लौटे तो लोइयां गर्म रेत में दब चुकी थी, जब उन्हें रेत से बाहर से निकाला तो दिनभर सूर्य और रेत की तपन से वे पूरी तरह सिंक चुकी थी। थककर चूर हो चुके सैनिकों ने इसे खाकर देखा तो यह बहुत स्वादिष्ट लगी। इसे पूरी सेना ने आपस में बाटकर खाया। बस यहीं इसका अविष्कार हुआ और नाम मिला बाटी। इसके बाद बाटी युद्ध के दौरान खाया जाने वाला पसंदीदा भोजन बन गया। अब रोज सुबह सैनिक आटे की गोलियां बनाकर रेत में दबाकर चले जाते और शाम को लौटकर उन्हें चटनी, अचार और रणभूमि में उपलब्ध ऊंटनी व बकरी के दूध से बने दही के साथ खाते। इस भोजन से उन्हें ऊर्जा भी मिलती और समय भी बचता। इसके बाद धीरे-धीरे यह पकवान पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया और यह कंडों पर बनने लगा।
अकबर की रानी जोधाबाई के साथ बाटी मुगल साम्राज्य तक भी पहुंच गई। मुगल खानसामे बाटी को बाफकर (उबालकर) बनाने लगे। इसे नाम दिया बाफला। इसके बाद यह पकवान देशभर में प्रसिद्ध हुआ और आज भी है और कई तरीकों से बनाया जाता है।
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अब बात करते हैं दाल की।-- दक्षिण के कुछ व्यापारी मेवाड़ में रहने आए तो उन्होंने बाटी को दाल के साथ चूरकर खाना शुरू किया। यह जायका प्रसिद्ध हो गया और आज भी दाल बाटी का गठजोड़ बना हुआ है। उस दौरान पंचमेर दाल खाई जाती थी। यह पांच तरह की दाल चना, मूंग, उड़द, तुअर और मसूर से मिलकर बनाई जाती थी। इसमें सरसो के तेल या घी में तेज मसालों का तड़का होता था।
अब चूरमा की बारी आती है। यह मीठा पकवान अनजाने में ही बन गया। दरअसल एक बार मेवाड़ के गुहिलोत कबीले के रसोइये के हाथ से छूटकर बाटियां गन्ने के रस में गिरा गई। इससे बाटी नरम हो गई और स्वादिष्ट भी। इसके बाद से इसे गन्ने के रस में डुबोकर बनाया जाना लगा। मिश्री, इलायची और ढेर सारा घी भी इसमें डलने लगी। बाटी को चूरकर बनाने के कारण इसका नाम चूरमा पड़ा।
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ऐसे बनाएं बाटी --
आटा और सूजी को एक बर्तन में मिला कर 3 टेबिल स्पून घी, बेकिंग पाउडर, अजमायन और नमक मिला दीजिये. गुनगुने पानी की सहायता से आटे को चपाती के आटे से थोड़ा सा सख्त आटा गूथ लीजिये. आटे को 20 मिनिट के लिये ढककर रख दीजिये, ताकि आटा फूल कर सैट हो जाय. 20 मिनिट बाद इस आटे को तेल के हाथ से मसल कर चिकना कर लीजिये. गुथे आटे से थोड़ा आटा तोड़ कर मध्यम आकार के गोले बना लिजिये.
आप चाहें तो इसके अन्दर मटर की पिठ्ठी, आलू की पिठ्ठी, पनीर की पिठ्ठी या मेवे की पिट्ठी बनाकर भर सकते हैं
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बाटियाँ 2 तरीके से बनाई जाती हैं।
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बाटी को पानी में उबालकर बनाना (इनको बाफले भी बोलते हैं) ---
1 लीटर पानी भगोने में भर कर गैस पर गरम करने के लिये रख दीजिये और जब पानी में उबाल आ जाय तब ये गोले उबलते पानी में डाल दीजिये. 15 मिनिट तक इन गोलों को उबालिये।
पानी से उबले हुये गोले निकाल कर प्लेट में रखिये और अब इनको तन्दूर या ओवन में ब्राउन होने तक सेक लीजिये. सेकी हुई बाटियों को पिघले हुये घी में डुबा कर निकालिये. तैयार बाटियाँ प्याले या प्लेट में रखिये.
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बाटी को बिना उबाले बनाना--
इस तरीके से बाटी उबाले बिना ही बनायीं जाती हैं. तन्दूर को गरम कीजिये, तन्दूर में आटे के गोले सिकने के लिये रखिये, इन गोलों को तन्दूर में पलट पलट कर सेकें. बाटियाँ फटने लगेंगी और ब्राउन हो जायेंगी. सिकी बाटी ओवन से निकाल कर प्लेट में रख लीजिये. बचे हुये घी को पिघला कर रख लीजिये. सेकी हुई बाटियों को फोड़ कर घी में डुबा कर निकाल कर प्लेट या प्याले में लगाइये.
दोनों तरह की बाटियां अच्छी होतीं है. आप इनमें से किसी भी तरीके से बाटी बनाइये और बताइये कि आपको कौन सी तरह से बनी बाटी ज्यादा अच्छी लगी.
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ऐसे बनाएं बाटी के साथ खाने के लिये मिक्स दाल--
अरहर की दाल - 100 ग्राम ( आधा कप )
मूंग की दाल - 50 ग्राम ( 1/4 कप )
चना की दाल - 50 ग्राम ( 1/4 कप )
घी- 2 टेबिल स्पून
हींग - 1-2 पिन्च
जीरा- 1 छोटी चम्मच
हल्दी पाउडर- आधा छोटी चम्मच
धनियाँ पाउडर - एक छोटी चम्मच
लाल मिर्च पाउडर - आधा छोटी चम्मच
टमाटर - 2 - 3
हरी मिर्च- 1-2
अदरक - 2 इंच लम्बा टुकड़ा
गरम मसाला - एक चौथाई छोटी चम्मच
हरा धनियाँ - छोटी आधा कटोरी ( बारीक कटा हुआ )
नमक स्वादानुसार ( एक छोटी चम्मच )
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विधि--
दालों को 1 घंटा पहले धो कर पानी में भिगो दीजिये.
भीगी हुई दालों को कुकर में, दुगने पानी ( 2 कप पानी) डालकर और नमक डाल कर पकने के लिये गैस पर रख दीजिये. एक सीटी आने के बाद 2-3 मिनिट तक धीमी गैस पर पकायें. गैस बन्द कर दीजिये.
टमाटर, हरी मिर्च और 1 इंच अदरक का टुकड़ा मिक्सी से बारीक पीस लीजिये.
कढ़ाई में 2 टेबिल स्पून घी डाल कर गरम करें. हींग और जीरा डाल दें. जीरा भुनने के बाद हल्दी पाउडर और धनियाँ पाउडर डालें. 2-3 बार चमचे से चलायें और पिसा हुआ टमाटर का मिश्रण, लाल मिर्च पाउडर और 1 इंच लम्बे अदरक को बारीक काट कर डाल दें. मसाले को तब तक भूनें जब तक कि मसाले के ऊपर तेल न तैरने लगे, ये मसाला कुकर में पकी हुई दाल में मिला दीजिये आवश्यकतानुसार पानी (दाल को आप जितना पतला चाहें) मिला दीजिये, उबाल आने पर गरम मसाला डालिये और नमक को टेस्ट करके आवश्यकतानुसार थोडा़ सा और डाल दीजिये. आधा हरा धनियाँ डाल कर मिला दीजिये. दाल तैयार हो गयी है. दाल को प्याले में निकालिये और बचे हुये हरे धनिये और घी डाल कर सजाये। दाल और बाटियाँ तैयार है. गरमा गरम दाल बाटी परोसिये और खाइये।