सनातन (हिन्दू) धर्म में कामदेव, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से एक काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से संबंधित कई मूर्तियां हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। आपने अनेक कहानियाँ में कामदेव के बारे में सुना या पढ़ा होगा। पौराणिक काल की कई कहानियों में कामदेव का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में कामदेव के बारे में जहां कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि कि कामदेव का संबंध प्रेम और कामेच्छा से है। काम, वासना और रूप के देव ‘कामदेव’- हिंदू धर्मग्रंथों में जिन्हे प्रेम का देवता माना गया है, ‘कामदेव’ का अस्त्र धनुष है क्योंकि धनुष ही एक ऐसा अस्त्र है जिसमें स्थिरता और चंचलता दोनों ही होती है और रूप में भी यही गुण होता है। ‘कामदेव’ के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। लिंगी आकर्षण से बंधकर इंसान कामवासना में छटपटाने लगता है, पाप तक कर बैठता है, वर्तमान युग में कामवासना के वशीभूत होकर घर में पत्नी से छुपाकर अवैध संबंध रखकर पाप दर पाप करता जाता है, कामवासना के वशीभूत होकर अधिकारी आफिस में ही पाप करने लगता है,तात्पर्य यह है कि कामदेव के वशीभूत होकर हर पल काम वासना तक सीमित रह जाता है, वो सोचता है कि उसके पाप को कोई नही देख रहा है, किसी को उसके पाप का पता नही है, परन्तु समय आने पर उसके पाप का घडा फूूूूटत ही हैं। कामदेव से जुड़ी हर बात ऋग्वेद, अर्थववेद सहित अन्य शास्त्रों में मिलती है। कामदेव को उनकी कहानियों से ज्यादा जाना जाता है। कई लोग उन्हें अच्छी शादीशुदा जिंदगी पाने के लिए पूजते हैं। तो कोई अपनी महबूबा या प्रेमिका का प्यार पाने के लिए पूजता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि कामदेव, भगवान विष्ण और लक्ष्मी के अवतार के रूप में द्वापर युग में अवतरित श्रीकृष्ण और रुक्मणी के पुत्र माने जाते हैं। उन्हें ग्रीक के एरोस और क्यूपिड ऑफ वेस्टनर्स जैसे देवताओं सा बताया जाता है। कामदेव को ऐसे ग्रहों का स्वामी माना जाता है जो यौन इच्छाओं को बल देने वाले माने जाते हैं। ‘कामदेव’ के मित्र बसंत को माना गया है इसलिए ‘कामदेव’ का धनुष हमेशा पीला माना गया है। ‘कामदेव’ के पास एक खास तीर है, जो तीन कोनों को दर्शाता है, ये तीन कोने तीन लोक हैं, पहला कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। दूसरा कोना कर्म का प्रतीक है जो कि मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश (शिव) के आधीन है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। कामदेव’ के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है।कामदेव का एक लक्ष्य खुद काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। हाथी को ‘कामदेव’ का वाहन माना गया है। वैसे कुछ शास्त्रों में कामदेव को तोते पर बैठे हुए भी बताया गया है लेकिन शास्त्रों के पुजारी इसे सही नहीं मानते। कामदेव’ को ही लोग रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत के नामों से परिभाषित करते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार वैदिक धर्म ग्रंथों की कथाओं में कामदेव के नयन, भौं और माथे का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनके नयनों को बाण या तीर की संज्ञा दी गई है। शारीरिक रूप से नयनों का प्रतीकार्थ ठीक उनके शस्त्र तीर के समान माना गया है। उनकी भवों को कमान का संज्ञा दी गई है। ये शांत होती हैं, लेकिन इशारों में ही अपनी बात कह जाती हैं। इन्हें किसी संग या सहारे की भी आवश्यकता नहीं होती। कामदेव का माथा धनुष के समान है, जो अपने भीतर चंचलता समेटे होता है लेकिन यह पूरी तरह स्थिर होता है। सिर (माथा) पूरे शरीर का सर्वोच्च हिस्सा है, यह दिशा निर्देश देता है। पाश्चात्य संस्कृति के लोग भले ही प्रेम को वैलेनटाइन दिवस के रूप में मनाते हैं लेकिन बरसों से भारत में ‘कामदेव’ की पूजा होती आयी है। वैदिक (हिन्दू) धर्मग्रंथों में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता कहा जाता है। कामदेव के बाण ही नहीं, उनका ‘क्लीं मंत्र’ भी विपरीत लिंग के व्यक्ति को आकर्षित करता है। कामदेव के इस मंत्र का नित्य दिन जाप करने से न सिर्फ आपका साथी आपके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित होगा बल्कि आपकी प्रशंसा करने के साथ-साथ वह आपको अपनी प्राथमिकता भी बना लेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह रति नाम की देवी से हुआ था, जो प्रेम और आकर्षण की देवी मानी जाती है। कुछ कथाओं में यह भी उल्लिखित है कि कामदेव स्वयं ब्रह्माजी के पुत्र हैं और इनका संबंध भगवान शिव से भी है। कुछ जगह पर धर्म की पत्नी श्रद्धा से इनका आविर्भाव हुआ माना जाता है। कामदेव को सुनहरे पंखों से युक्त एक सुंदर नवयुवक की तरह प्रदर्शित किया गया है जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं। ये तोते के रथ पर मकर (एक प्रकार की मछली) के चिह्न से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं। वैसे कुछ शास्त्रों में हाथी पर बैठे हुए भी बताया गया है। वसंत ऋतु के देवता कामदेव की पूजा वसंत पंचमी की जाती है। उनके कई नाम है जिममें से मदन की प्रसिद्ध है। असम में है उनका खास मंदिर। मदन-कामदेव मंदिर को ‘असम का खजुराहो’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर घने जंगलों के भीतर पेड़ों से छुपा हुआ है। कहते हैं कि भगवान शंकर द्वारा तृतीय नेत्र खोलने पर भस्म हो गए कामदेव का इस स्थान पर पुनर्जन्म तथा उनकी पत्नी रति के साथ पुन: मिलन हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ब्रह्माजी प्रजा वृद्धि की कामना से ध्यानमग्न थे। उसी समय उनके अंश से तेजस्वी पुत्र काम उत्पन्न हुआ और कहने लगा कि मेरे लिए क्या आज्ञा है? तब ब्रह्माजी बोले कि मैंने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापतियों को उत्पन्न किया था किंतु वे सृष्टि रचना में समर्थ नहीं हुए इसलिए मैं तुम्हें इस कार्य की आज्ञा देता हूं। यह सुन कामदेव वहां से विदा होकर अदृश्य हो गए।