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क्यों...?

ममता चंद्रा

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"क्यों".....एक छोटा सा शब्द है। जो पढ़ने जितना छोटा है जानने में उससे कही ज्यादा बड़ा है। इंसान की ज़िंदगी शुरू होने के बाद इंसान बस क्यों में ही उलझ कर रह जाता है। कुछ क्यों के जवाब सही मायने में और सही समय पर मिल जाते हैं। लेकिन हर किसी की ज़िंदगी में एक क्यों ऐसा होता है जिसका जवाब जानने में पूरी जिंदगी निकल जाती है। या यूं कहें कि कभी कभी इंसान ख़त्म हो जाता है लेकिन क्यों ख़त्म नहीं होता। तो इस किताब में कुछ ऐसे ही क्यों के बारे में लिखने की कोशिश की है। जिनका जवाब या तो हैं नहीं या फिर हम ढूंढना ही नहीं चाहते। 

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