बह्र- २१२२ २१२२ २१२२ २ काफ़िया- अर रदीफ़- दिया मैंने“गज़ल”क्या लिखा क्योंकर लिखा क्या भर दिया मैंनेकुछ समझ आया नहीं क्या डर दिया मैंनेआज भी लेकर कलम कुछ सोचता हूँ मैंवो खड़ी जिस द्वार पर क्या घर दिया मैंने।।हो सके तो माफ़ करना इन गुनाहों कोजब हवा में तीर थी क्यों शर दिया मैंन