अनुराधा बेनीवाल पहले एक घुमक्कड़ हैं, जिज्ञासु हैं, समाजों और देशों के विभाजनों के पार देखने में सक्षम एक संवेदनशील ‘सेल्फ़’ हैं, उसके बाद, और इस सबको मिलाकर, एक समर्थ लेखक हैं। हरियाणा के एक गाँव से निकली एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है, अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, तलाक़शुदा, परिवारशुदा, कहीं धूप की तरह खुली सड़कें-गलियाँ, कहीं भारत से भी ज़्यादा ‘बन्द समाज’। उनसे मुख़ातिब होते हुए उसे लगता है कि ये सब अलग हैं लेकिन सब ख़ास हैं। दुनिया इन सबके होने से ही सुन्दर है, क्योंकि सबकी अपनी अलहदा कहानी है। इनमें से किसी के भी नहीं होने से दुनिया से कुछ चला जाएगा। अलग-अलग तरह के लोगों से कटकर रहना नहीं, उनसे जुड़ना, उनको जोड़ना ही हमें बेहतर मनुष्य बनाता है; हमें हमारी आत्मा के पवित्र और श्रेष्ठ के पास ले जाता है। ऐसे में उस लड़की को लगता है—मेरे भीतर अब सिर्फ़ मैं नहीं हूँ, और भी अनेक लोग हैं। लोग, जो मुझमें हमेशा के लिए रह गए।
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