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लोग कहते हैं

16 जून 2023

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रचनाएँ
तूं चाही,मैं रीता
5.0
"तूं चाही,मैं रीता"यह मेरी सातवीं तथा शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली। छठवीं काव्य संग्रह है।जब तक यह लिखी जा रही है तब तक के लिये पाठकों के लिए नि:शुल्क शब्द इन पर उपलब्ध रहेगी लेकिन पूर्ण हो जाने के बाद यह सशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। आनलाइन लेखन मैंने सबसे पहले योरकोट्स पर शुरु की उसके बाद शब्द इन पर अब तक मेरी पांच कविता संग्रह आ चुकी हैं। मेरी रचनाएं सामाजिक संवेदनाओं को उकेरती हैं जो एक मेरी मानस नायिका से केन्द्रित होती हैं।इन रचनाओं में किसी से रचना का मिलना मात्र संयोग है। आशा है आप पाठक गण इसे पढ़कर अपना सुझाव देगें।
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टूट कर

6 जून 2023
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अपनी ही,उम्मीदों से,जब- आदमी हारता है,तब वह-अन्दर तक,टूटकर!बिखर जाता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

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घाव

7 जून 2023
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मेरे घाव!बहुत-गहरे हैं,इन्हें-कुरेदो मत।यह-मेरे अपनों केदिये हुए हैं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

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डरता हूं

12 जून 2023
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तुम्हेंभले ही मैंपा न सकालेकिनतुम्हें खोने सेबहुत डरता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

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रहती हो,पास पास

12 जून 2023
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तुम-जब होती हो,साथहर पल-आसपास होती हो,और-मेरे, पास से जाते ही,तमाम-वादों को भूल जाती हो।क्या?ऐसा नहीं हो सकता, कि-यह- भूलने वाली कला, तुम-मुझे भी सीखा दो ।क्योंकि-जब नहीं होती हो पास,तब-याद

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आशियाना

13 जून 2023
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बड़ी-तन्मयता से,बनायी थी,तुमने-आशियाना,मेरे जहां में।लेकिन-जब रहने का, समय आया,तुमनेअपना,ठीकाना ही- बदल ली।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

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तुम ही तुम

14 जून 2023
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शहनाई की-गूंज और,आवाजाही-लगी हुई है।नाच गाना,वेदोच्चारण,ढोल ताशे-और नगाड़ों के,थापों के बीच-चल रहे हैं।सब व्यस्त हैं,शादी के- माहौल में,और तुम भी।मांगलिक बेला के,कोलाहल में-मेरे अन्दर,सिर्फ!तुम ह

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जिंदगी का गणित

15 जून 2023
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मैंने-जिंदगी के,गणित में-जोड़,घटाकर,गुणा- भाग करके,जब देखा-तब!हर बार-उत्तर में,सिर्फ-तुम मिली।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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लोग कहते हैं

16 जून 2023
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लोग!कहते हैं कि-दिल पर,काबू रखें।लेकिन-कैसे?यह तो,मेरी!सुनता ही नहीं,केवल-उसकी ही,बात करता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

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हल्दी

17 जून 2023
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हल्दी लगने से,पहले ही-मन पर,हल्दी की छींटें,लगने लगीं,अब तो तेरे।तभी तो,अब- पता नहीं क्यों?जब, तुम-नजरअंदाज, करती हो मुझे,तब मुझपर-इसका असर,नहीं पड़ता।अब, तुम-व्यस्त रहो,औरों में-और मैं,खुश

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न जरुरी रहा...

18 जून 2023
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जब-चेहरे पर,मलिन!उदासी थी,तब-जरुरी रहा,मैं तो-तेरे लिए।होठों पर,मुस्कान!आने लगे,जब से-तब से,मैं जरुरी सेजरुरत भर रह गया।अब, जब-तुम!खिलखिला रही हो,तब, मैं-तेरे लिएन जरुरी रहा,और, न ही,तेरी जरुरत र

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आनंदातिरेक

19 जून 2023
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आखिर!वह सब-मेरे लिए,तेरा-नज़र अंदाजी था,या-आनंदातीरेक!मुझे,नहीं पता।लेकिन-यह सब,तब-तिरोहित हो गया,जब-तपती दुपहरी में,तुम! खड़ी मिली,मुझे- विदा करने के लिए ।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशार

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अजीब दास्तां

20 जून 2023
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है न?अजीब दास्तां,जिसके-न तो शुरु का पता,और न ही-अंत की खबर।तुम्हें-पाने की कोशिश,नहीं रही,कभी भी मेरी,मैं तो-हरपल! तुम्हें खो न दूं,इसी से डरता रहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

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हमसफ़र

21 जून 2023
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जैसे ही,तुम हारी,अपनी आंखें!मुझसे;मैंने भी तो-सोंख लिया,उसकी-नमीं सारी।तेरा-दिल क्या हारा,मैं बन गया-तेरा,हमसफ़र।जब,तेरी बांहें,मेरे कंधों पर पड़ीं,मैंने, उनमें-हौसलों की, उड़ान भरी।तुमदेह क्या हारीमै

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आज फिर....

22 जून 2023
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बदलाव-कुछ ऐसा हो गया,अब-अपने ही घर के, कमरे-पड़ोसी के दरवाजे हो गये।-ओंकार नाथ त्रिपाठी, गोरखपुर, उप्र। (चित्र:साभार)

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जब... उड़ान पर थी

23 जून 2023
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जब-तुम उड़ान पर थी,अपनी- खुशीयों के।तब-मेरी भी खुशीयां,परवान-चढ़ रही थीं,और,वो फूल कर कुप्पा भी हो रही थीं।जानती हो-इन्हीं!खुशीयों के,तिनके तिनके के लिए, मैंने-अपनी सारी खुशियां,गिरवी!&

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याद मत कर!

24 जून 2023
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मत कर,याद !मुझे तूं,इसे-पांव की,बेड़ी मत समझ।मुझको, कोई याद करे,इसकी-मेरे हाथों में ,देखा हूं-लकीर ही नहीं है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

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आज -अचानक

25 जून 2023
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आज-अचानक!वर्षों पहले की,वह बात-याद आ गयी,जो तुमने-अचानक,मिलने पर,पूछ लिया था-'आप !उधर जा रही हो?'मैंने-हां कह कर,सिर हिला दी थी,फिर-तुमने कहा था-कहीं भी जाना,पर-आगरा मत जाना।मैं पूछ पड़ी थी,क्यूं?तुम

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न तुम, तुम रही

26 जून 2023
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तुम-डूबी रही,मौज मस्ती के संग,अपनी खुशीयों में,मैं-परेशान गमों से,जूझता रहा अपने,दुखों में डूबा।तुम-मुझे संवेदित!न कर सकी,शायद व्यस्तता वश।मैं भी-जुड़ न सका,तुमसे,अपनी-टुटन के कारण।ऐसे में-पहले जैसी,स

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सपने

27 जून 2023
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मैंने-सपने देखे,उनके लिए,उन्हें!जिया और-पूरा भी किया।लेकिन-अब तो,उन्हें-कौन कहे,वो सपने ही-सपना हो गये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उत्तरप्रदेश। (चित्र:साभा

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रकीब

28 जून 2023
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अपने-रकीब का,नया-फोन मिलते ही,तुमने तो,सिर्फ!अपने फोन का, नम्बर बदले हैं,लेकिन-इसने तो मेरी,जिंदगी ही बदल कर रख दी है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उत्तर प्रदेश। &nbsp

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एक तुम हो

29 जून 2023
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लोग-वर्षों पुराने,नंम्बर चला रहे हैं,इस आशा में,कि-कहीं-किसी दिन,उसका-फोन आयेगा।और एक!तुम हो कि-अपना नम्बर ही,बदल दी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित

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तुम्हें कभी....

30 जून 2023
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आज-बर्षों बाद!पता नहीं क्यों?तेरी याद आ रही।बीते पल!जो गुजरे थे,साथ कभी,एक एक कर- आंखों के सामने,चलचित्र बनकर,उभरने लगे।याद हो आया,बारिश के दिनों में,लालटेन जलाकर-रात गये तक,झींगुरों की- झनझ

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...न मैं याद आऊं

1 जुलाई 2023
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चलो-कुछ तुम,भूलो!कुछ मैं भूलूं,।कुछ,सजा! तुम-मुझको दो,और-कुछ सजा, मैं-तुमको दूं।आधा-आधा,हिस्सा हो अपना, गुनाह तो-आखिर!हम- दोनों के हैं।ठान ली है,जब, तुमने-तब मैं भी,कोशिश!करता हूं।न तुम

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डर लगता है

3 जुलाई 2023
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कभी-तुम्हें खो न दूं,इसका,डर!सताये जाता था।अब तो-तेरा सामना,होने से-डर लगता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उत्तरप्रदेश। (चित्र:साभार)

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बतियाना रहा

3 जुलाई 2023
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आज-बदलता रहा, करवटें!सारी रात।आती रहीं-एक के बाद,एक एक करके,तेरे साथ-गुजरे पलों की, सारी यादें। मैं बतियाता रहा,तुमसे-उनींदी! आंखों में,ख्वाब लिए।चिड़ियों की,चंहचआहट के साथ,ध्यान टुटा,त

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रुठा भी नहीं

6 जुलाई 2023
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मैं तो-तुमसे,कभी-ढ़ंग से,रुठा भी, नहीं।इस- डर से,कि, कहीं-तुम्हें!मैं- खो न दूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र: स

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आंसू

7 जुलाई 2023
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ये मेरे,आंसू!मेरी आंखों से,टपके हुए-पानी नहीं हैं,ये तो-मेरे अपनों द्वारा,दिये गये-नायाब!!तोहफे हैं,मेरी-वफ़ाओं के बदले।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र: साभार)

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नहीं पता

8 जुलाई 2023
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कब?घुटनों से,चलना छोड़कर,पैरों से दौड़ना सीखा?किशोर-वय से होकर,जवानी की दहलीज पर-जज्बातों के संग करी अठखेलियां।पढ़ाई!फिर नौकरी,और बेलौस विंदास-जिंदगी में धन संचय चिंता से मुक्त।शादी!पत्नी की अपूर्ण,जर

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मंजिल बदल दी

9 जुलाई 2023
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अब-न मैं,तेरा रास्ता, देखूं!और- न तुम मेरा।जैसे ही,तुमने-अपना! रास्ता बदली,मैंने भी,अपनी-मंजिल!बदल दी है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। &nbsp

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आभास

10 जुलाई 2023
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तेरी-उपस्थिति का,आभास!पाने के लिए, आभासी-दुनिया के यंत्र,फोन पर,तेरे-ह्वाट्सएप!की,डी पी,मैसेज!फेसबुक तथा,उसकी-स्टोरी पर,मेरी उंगलियां,सरकती रहती हैं,अनायास ही।मेरे पोस्ट पर,तेरा लाइक करना,मुझे-ते

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एक बात पूछूं

5 जुलाई 2023
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एक बात-पूछूं?जिसे-खोने से,डरता रहा,क्या?सच में!उसे-खो दिया मैंने।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभार)

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जीवन का अंदाज

11 जुलाई 2023
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एक- एक कर,मिलते रहे,लोग मुझको।कुछ पल,साथ रहें,फिर-चलते बने।यूं ही-आते गये,और-जाते रहे लोग।पता नहीं,यह-सिलसिला,क्यों-लगा रहा,मेरे साथ।मुझपर भी,इस-आवाजाही का,असर पड़ा।शुरुआत-पीड़ादायक,अनहद सा,लगा म

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दिन भर

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आज-दिन भर,अनायास ही नहीं,जानबूझकर;रह रहकर,कुछ-खोजती रहीं,मेरी उंगलियां ,फोन के-स्क्रीन पर,आभासी दुनिया में,तेरे आभास के, अहसास को।तुम!नहीं दिखी,कहीं भीमेरे दुखी पोस्ट में।जबकि-तुम!हंसती खिलखिलाती

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यादें

13 जुलाई 2023
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हवा का-झोंका बनी,तेरी यादें!भले ही-नहीं दिखतीं,आस पास;लेकिन-छू जाती हैं,मन को!अंदर तक।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र:साभार)

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आसान नहीं है

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लोगों की-उम्मीदों पर,हरपल!खरा उतरना,मां,बहन,भाई,पत्नी सहित- पूरे पारिवारिक,संबंधों को-न्यायपूर्ण ढ़ंग से,निभाना।अपने खुद को,पुत्र,पति तथा-भाई के- दायित्वों का वहन,करते समय,उनके-जज्बातों के,ह

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तुम आ जाना

17 जुलाई 2023
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मैं-बारिश का बूंद बना,बड़ी दूर से-चलकर आया हूं,छत पर-मिलने तुमआ जाना,कोई छाता-साथ में, मत लाना,सराबोर!भीगना मन भर तुम,देखो-ना ना, मत करना,मन की-उमस को, दूर करुंगा,तन मन में-शीतलता! मदमस्त भरुगा।© ओंका

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सुकून की शाम

17 जुलाई 2023
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उदासी भरी,राहों में-बंजारों सा,कटता रहा दिवस।रात योगिनी,बनकर दुबकी,विरहानल की-ज्यों शाम से ढ़ली।जीवन की-तपती, दुपहरी में,मन व्याकुल!तन थका बेचारा,पाकर-तेरी जुल्फों की छाया,देखो-शीतल मंद बयार मिली,और-ए

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प्रारब्ध

18 जुलाई 2023
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तेरे, मेरे-मन के सोच से,जो संबंध!उपजे हैं,वो न तो-प्रतिबंध है,न ही,कोई- अनुबंध हैं।ये, तो-हम दोनों में,छिपी हुई-उन तमाम, संवेदनाओं का,आलंब है;जो, हमें-एक दुसरे को,समझने का,संबल देती है।तभी त

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तेरे जाने के बाद

19 जुलाई 2023
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तेरे-जाने के बाद,अब!किसी से भी,रुकने के लिये,मिन्नतें नहीं करता।जो-जाना चाहता है,उसे!नहीं रोकता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र :

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बारिश

20 जुलाई 2023
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यह!बारिश निगोड़ी,नहीं-रहने देती चैन से।जब- नहीं बरसती है,तब! विछोह की उमस से,मुझे!बेचैन कर देती है।और-जब बरसती हैं,तब!तेरी यादों में, सराबोर!भीगोकर मुझे-व्याकुल कर देती हैं,मन में!तुमसे

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तनहा

22 जुलाई 2023
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मैं-तनहा!कहां हूं?हजारों-यादों की,दुनिया!बसी है,मेरे-दिल के अंदर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र:साभार)

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पनघट

24 जुलाई 2023
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आकाश!नीला हो चुका है,नभ में-लालिमा छा गयी है,सूरज!अस्त होने को है,दिन!अब ढलने को है,पक्षी!लौट रहे अपने घरों को,मैं-पनघट के किनारे, बैठा-तेरा!इंतजार कर रहा हूं ।अक्स!मेरा,जिसे मैं निहार रहा,इंतजार !करत

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इंतजार

25 जुलाई 2023
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मुझे-यह पता है,जब ,तुम- थक जाती हो,ऊब!जाती हो एकरसता से,खिन्न!हो जाती हो,यादों की-तारतम्यता के टूट जाने से।मधुर! संगीत भी- कर्कश लगने लगता है,टीवी,फोन,रील्स,कमेडी से- मन उचट जाता ह

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बारिश

26 जुलाई 2023
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बारिश!हो रही है,मन!करता है कि-खूब!भीगू जाकर बाहर।लेकिन-तुम नहीं हो,अब!मेरे पास जब-तब!चलो भीगते हैं,हम!एक दुसरे की यादों में।तुम!जहां हो,वहां भीगो, मैं यहीं-सराबोर हूं यादों में।© ओंकार नाथ त्रिपा

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आंगन में

27 जुलाई 2023
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जानती हो?मैं,अपने, जिन- ग़ज़लों को,संग्रहित! करता रहा,किताब की,शक्ल में,उसे-चंचल पुरबिनी हवा,उड़ा ले गयी-और, वह!आकाश के,हाथ लग गयी।जिसे पढ़ कर,वह! खूब रोया,जिसके-आंसुओं को, बा

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रात

28 जुलाई 2023
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कल की,रात!अपने साथ,ले आई,तेरे-सपने भी।नींद!आंख की, जगी रात भर,तुम्हें! देखती रही,बेचारी!© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर। (चित्र

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रुह

2 अगस्त 2023
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मैंने-स्पर्श किया,जब!तेरे शरीर को,तब-एक दुसरे के,आलिंगन में,वासना हो गये हम।तेरे-आत्मा को छूते ही,हम-आदर्श प्रेमी बन गये।जब-रूह को,हाथ लगाया,तब-फरिश्ता हो गये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गो

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हे चंदा!

3 अगस्त 2023
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हे चंदा!एक बात पूछूं?तूं-कैसा है रे?तेरी चांदनी! न तो-घूंघट काढ़ती है,न ही-परदानसीं होती है,सलीके से-दुपट्टा तक नहीं ओढ़ती।और तो और-वह तो, किसी की भी,हो लेती है।कभी, काले कलूटेग्रहण की,तो कभी-ईद

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एक बात पूछूं

5 अगस्त 2023
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एक बात-पूछूं?सच-सच! बताना मुझे।जब-सुबह-सुबह,चिड़ियों की,चंहचआहट!कानों में-तेरे पड़ती है।भोर की,लालिमा!आहिस्ता-आहिस्ता!तन को,तेरे- सहलाती है।पुरुवा हवा-अठखेलियां करती हैं,जब-जब,तेरी लटों से।प

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गुम हो जायें

7 अगस्त 2023
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आओ-चलो!गुम हो जायें,हम दोनों।समा जायें-एक दुसरे में,एक होकर!और बन जायें,दो जिस्म!एक जान।क्योंकि-एक जिस्म,दो जान में,मची रहती है,तूं...तूं..!मैं...मैं..!!इसीलिए-दूर रहें,इस-कुकुर झौंझौं से।© ओंकार नाथ

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