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लूट का माल

6 अक्टूबर 2023

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लूट का माल

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(1)

सर्द मौसम था परन्तु एक ख़ुशगवार शाम थी वो। लेकिन शहर में गर्म अफवाहों ने फिज़ा में इतना तनाव भर दिया था कि किसी का ध्यान मौसम की ओर नहीं था। साइकिल के पैडल पर जोर-जोर से पैर मारकर वो जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच जाना चाहता था। चौराहे पर खड़े होने वाले पुलिस वालों ने उसको हल्के-फुल्के दंगों के शुरू होने की खबर दे दी थी। दुकान पर मौजूद सारे ग्राहकों को उसने जल्दी से जल्दी अपने-अपने घरों को लौटने को कहा और कुछ आवश्यक सामान निकालने के बाद उसने लकड़ी की उस गुमटी के पल्लों को बंद करके उस पर ताला जड़ दिया। आज बुधवार का दिन था जिस दिन कुछ खास ग्राहक नहीं रहते थे उसकी उस गुमटीनुमा दुकान पर लेकिन उस दिन ग्राहकों की संख्या किसी और बुधवार के मुकाबले अधिक थी। वह इस चक्कर में आकाशवाणी के समाचार भी नहीं सुन पाया था। ट्रांजिस्टर की बैटरी ख़त्म हो चुकी थी पर ग्राहकों की अधिकता के चक्कर में वो बैटरी लेने की फुर्सत भी नहीं निकाल पाया। वैसे भी जब वो अपने काम में मशगूल हो जाता था तो देश-दुनिया की खबर नहीं रहती थी। कभी-कभी तो वह खाना भी नहीं खा पाता था जैसे आज भी सुबह घर से दो ब्रेड के स्लाइस को तवे पर सेंककर नमक डालकर चाय के साथ गटकने के अलावा सिर्फ अपनी गुमटी पर पहुँचने वाली तरसेम की चाय के अलावा और कुछ उसके पेट में नहीं गया था। तरसेम की दुकान से आने वाले एक बिहारी किशोर ने उसको चाय रखते हुए कहा था कि पी लो नहीं तो तरसेम से शिकायत करोगे कि लड़का चाय ठण्डी करके लाया था। पी लूँगा छोटू। तरसेम की दुकान के हर लड़के को वह इसी नाम से बुलाता था। तरसेम की दुकान पर लड़के टिकते ही नहीं थे। एक तो तनख्वाह कम देता था ऊपर से रगड़ के काम लेता था। अरे छोटू, बैटरी ला देगा मेरे ट्रांजिस्टर के लिए। छोटू को इतनी फुर्सत कहाँ थी। उसे आज साइकिल कुछ भारी चलती हुई नजर आ रही थी। परन्तु अपना पूरा जोर लगाकर वह उसे लगातार पैडल मार रहा था।  तभी एक कड़क आवाज ने उसे रोका। उसका दिल धक्क से हो गया। उसने उधर देखा जिधर से आवाज आई थी तो पाया कि वह एक पुलिसवाला था। उधर से कहाँ जा रहा है, पता नहीं है क्या हो रहा है उधर, दंगाई हर तरफ लूटपाट कर रहे हैं। कहाँ जाना है। मुझे तो अपने घर जाना है रोज इसी रास्ते से जाता हूँ। जाता होगा पर आज मत जाना उस तरफ से। वैसे किधर घर है तुम्हारा। ठीक है मैं रास्ता बदल कर निकल जाता हूँ। उसने अपनी साइकिल दाहिनी ओर मोड़ दी। अब उसकी चिंता बढ़ गई थी। उसे अपनी पत्नी की फ़िक्र हुई। पता नहीं आज ऐसा क्या हुआ कि अचानक दंगे चालू हो गए। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था परन्तु अब वह जल्दी से जल्दी से अपने घर पहुँच जाना चाहता था। वह साइकिल पर पूरे जोर से पैडल मारने लगा। अभी कुछ दूर ही चला होगा कि उसे लोगों की भीड़ दिखाई दी। वह साइकिल से उतर कर पैदल चलकर जायजा लेने के लिए डरते-डरते भीड़ के पास पहुँचा। उसे सभी की आँखों में क्रोध भरी ज्वाला सी नजर आ रही थी। उसने अन्दाजा लगाया कि ये उसके जैसे ही रोज अपनी रोजी की तलाश में निकले या छोटी-मोटी दुकान चला कर शाम को घर लौटने वाले मेहनतकश लोग हैं। परन्तु यह सब एक जगह इकट्ठे क्यों हैं। उसके मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुला रहा था पर उन लोगों पर उसे इतना तो भरोसा था कि इनसे कोई खतरा नहीं है। लिहाज़ा उसने एक व्यक्ति के पास पहुँचकर पूँछा कि भईया क्या हुआ है। हर तरफ इतनी अफरा-तफरी क्यों है। कैसे दंगे हो गए हैं। पुलिसवाले बता रहे थे और कह रहे थे कि जल्दी से अपने घर जाओ। अरे भाई तुम्हें नहीं पता कि प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई है और लोग इस वजह से क्रोध से भरे हुए हैं।  पता चला कि दिल्ली में बहुत ही ज्यादा आग भड़क चुकी है दंगों की और यहाँ भी कई मोहल्लों में आग लग चुकी है। लोग दुकानों को लूट रहे हैं, संपत्ति को आग के हवाले कर रहे हैं। और अब तो ये भी खबर है कि हत्यायें भी की जा रहीं हैं। तभी एक बहुत तेज धमाका हुआ। सब लोगों की निगाहें उसी तरफ़ मुड़ गईं और पलक झपकते ही लोग उस ओर दौड़ पड़े। वो भी जल्दी से अपनी साइकिल का पैडल मारता हुआ जल्दी से उस तरफ चल दिया। ये तो रँगा जी का बंगला है। क्या ये आवाज रँगा जी के बंगले से आई थी, उसने अपने मन में विचार किया। भीड़ के बीच से निकल कर उसने देखा तो पाया कि उसका शक सही था। लोग उत्तेजक नारे लगा रहे थे और बंगले के अन्दर से कुछ लोग मौके का फायदा उठाकर टेलीविजन, फ्रिज, वी०सी०डी० प्लेयर, रेडियो, बर्तन, अलमारियाँ लूट-लूट कर तेजी से निकल भागते जा रहे थे। एक आदमी जो उसी मोहल्ले में अपनी गुंडागर्दी के लिए मशहूर था, अपने हाथों में जेवर और नकदी लेकर तेजी से निकला और उसकी साइकिल से टकरा गया। केशव और उसमें हल्का फुल्का परिचय था, क्योंकि उसकी गली के छोर पर तीसरे मकान में रहता था। वह केशव की शराफ़त की कद्र करता था इसलिए उसके मन में केशव के लिए एक सम्मान का भाव हुआ करता है। अरे बड़े भाई आप यहाँ। माहौल सही नहीं है। आप जल्दी से घर पहुँचो। उस गुण्डे ने केशव को चेताया। पर, क्या हुआ है भईया यहाँ। तुम शरीफ लोग साला, साला ऊपर के माले की लाइट हमेशा डिम करके क्यों रखते हो? उसने केशव से मजाक करते हुए कहा। अरे साला इन लोगों को तो काबू करना बहुत मुश्किल था। नाकों चने चबाने पड़े तब काबू में आया था। इन सालों के पास लाइसेंसी हथियार जमा थे। कबसे हम लोग इन लोगों के घर में घुसना चाह रहे थे पर इतनी फायरिंग की इन सालों ने कि नामुमकिन लग रहा था। बेचारा समीर, उसे तो सीधे छाती में गोली लगी आकर। उस आदमी ने एक तरफ इशारा किया। अरे ये क्या? उसने देखा वहां एक आदमी की लाश पड़ी थी, जिसका खून बहकर उसकी साइकिल के पहियों के नीचे तक आ गया था। उसको उलटी होते-होते बची। जल्दी से वह वहाँ से खिसककर सड़क के दूसरी तरफ पहुँच गया। सड़क काफ़ी  चौड़ी थी और उसके बाद वहाँ एक खाली प्लाट था जिसमें बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ उग आईं थीं। उसने लोगों को कहते सुना कि कैसे उस घर को छत समेत गैस सिलेंडरों में आग लगाकर उड़ा दिया गया था क्योंकि गोलियाँ ख़त्म होने के बाद रँगा परिवार के लोगों ने जीने के रास्ते पर ताला लगाकर अपने-आप को उपरी मंजिलों पर बंद कर लिया था और वह वहाँ पुलिस के आने का इंतज़ार करने लगे। परन्तु पुलिस तो अभी तक नहीं पहुँच पाई थी। नीचे की मन्जिल से जिसको जो मिला वो उठाकर ले आया था। उसे उस घर के लोगों के लिए बहुत करुणा के भाव उभर आये थे। हालात तो बहुत ज्यादा बिगड़ चुके हैं, उसे अपनी दूकान की भी चिंता हुई। उसकी तो दुकान ही गोविन्द नगर मैं है। अब खर्चा कैसे चलेगा। वह तो रोज कमाता और रोज खाता है। भीड़ से अलग होकर वह सड़क के दूसरी ओर जाकर खड़ा हो गया। वहीँ से दूर खड़े होकर उस घर से उठती हुई आग की लपटों को देखता अपने विचारों में खोया हुआ ही था कि उसे यकायक महसूश हुआ कि उसकी कमर के नीचे किसी चीज ने उसे कसकर जकड़ लिया था। उसने नीचे झुककर देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। नवदीप तुम। केशव ने आश्चर्य के साथ कहा।

(2)

केशव की साइकिल का टायर अचानक खड़खड़ाने लगा। वह झट से साइकिल खड़ी करके उतर गया। ओफ्फो! इसको भी यहीं ये रोग लगना था। इस सड़क पर तो दूर-दूर तक कोई साइकिल की दुकान या पंचरवाला भी नहीं। साइकिल पर लादे भारी-भरी झोलों को उसने नीचे उतर कर रख दिया और अपने जैसे किसी दुसरे साइकिल वाले या रिक्शेवाले का इंतज़ार करने लगा। दरअसल आज वह अपने घर से दुकान के लिए जरुरत का बहुत सारा सामान लेकर जा रहा था। साइकिल के टायर में कोई छोटा सा छेद होगा जिससे धीरे-धीरे हवा निकल गई। उसके रास्ते में इस सड़क पर पैसेवालों के बड़े-बड़े बंगले थे। मोहल्ला अभी नया ही बस रहा था जिसकी वजह से बहुत सारे प्लाट खाली भी पड़े थे।  उसने एक बार सब तरफ अपनी निगाह दौड़ाई पर उसे कहीं पर भी कोई दिखाई नहीं दिया। तभी एक छोटा सा बच्चा साइकिल चलाता हुआ उसके पास आया। केशव ने उस बच्चे को गौर से देखा। उसके सर पर बंधे छोटे से रुमाल से ढके जूड़े को देखकर अंदाजा लगाना सहज था कि वह कौन है। केशव उसको देखकर मुस्कुराया तो वह बच्चा वहाँ से भाग गया। केशव ने देखा कि वह जहाँ खड़ा है, सड़क की दूसरी तरफ रँगा जी के बंगले में वह बच्चा घुस गया। केशव को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। एक रिक्शावाला उधर से गुजरा तो वह साइकिल के साथ उसके सामान और उसे ले जाने के इतने पैसे माँग रहा था कि केशव के बूते से बाहर की बात थी। इस गली में आ-आकर तो इन रिक्शेवालों के भी दिमाग ख़राब हो गए हैं। चार कदम जाना है। मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है। कैसे मुँह फाड़कर पैसे माँग रहा था। कोई क़ायदा कानून है या नहीं। केशव लगातार धीमे-धीमे बड़बड़ाये जा रहा था।  तभी वही बच्चा फिर प्रकट हुआ। अंकल, उस बच्चे ने धीमे से कहा। यह लीजिये। केशव ने देखा कि उस बच्चे के हाथ में एक साइकिल में हवा भरने वाला पम्प था। आप इससे अपनी साइकिल में हवा भर लीजिये। केशव को इस गली में किसी से भी इस तरह की मदद की उम्मीद नहीं थी। वह बच्चा उसे ईश्वर का रूप लगा। काफी देर से वह अपने इष्ट श्रीराम जी को मन ही मन कोई मदद भेजने की गुहार ही तो कर रहा था। “वीरा अपनी साइकिल में इसी से हवा भरता है, आप भी भर लो”, उस बच्चे ने अपनी मीठी आवाज में केशव से कहा। केशव ने उस बच्चे के हाथ से पम्प लेकर अपनी साइकिल के टायर में हवा भरने लगा। वह बच्चा एक बहुत ही उत्सुक मन का स्वामी था। पम्प से हवा भरने के दौरान केशव के हाथों की नशें फूलती और पिचकतीं तो बच्चा पूछता कि अंकल आपके हाथ में ये क्या हो रहा है? वीरा जब हवा भरता है तो उसके हाथों में तो नहीं होता फिर आपके क्यों हो रहा है? आपके झोले में क्या है? आप कहाँ जा रहे हो? साइकिल तो बच्चे चलाते हैं, तो आप क्यों चला रहे हो? आप स्कूटर या कार से क्यों नहीं आते-जाते हो? केशव को वह बच्चा वैसे ही बहुत प्यारा लग रहा था और अपनी भोली-भाली बातों से तो उसने जैसे उसका दिल ही जीत लिया था। अंकल जी उधर मत जाना, उधर झाड़ियों में बड़े-बड़े साँप हैं। वो आपको काट सकते हैं। क्या नाम है तुम्हारा बच्चे? केशव के इस प्रश्न का कोई जबाब नहीं दिया उस बच्चे ने और केशव के हाथ से पम्प लेकर तेजी से सड़क पार करता हुआ अपने घर में चला गया। केशव थोड़ी देर तक मंत्रमुग्ध होकर उस तरफ ही देखता रह गया। केशव को आज समझ आया कि कान्हा जी कैसे पूरे गोकुल को मोहित करते होंगे। केशव को उस बच्चे में बालकृष्ण का रूप ही दिख रहा था। जो भी हो केशव उस बच्चे से पूरी तरह मोहित हो चुका था। केशव ने अपनी साइकिल पर सारा सामान लादकर पैडल मारना शुरू कर दिया। आज तो बहुत देर हो गई उसने धीरे से बुदबुदाया। शाम को घर लौटकर अपनी पत्नी अनुपमा को सारी घटना कह सुनाई। उसने भी बहुत रस और आनंद के साथ सुना और उस बच्चे की बातों पर दोनों हँसते रहे देर तक। तभी हँसते-हँसते अनुपमा की आँखों में आँसू छलक आये और उसे एक दौरा सा पड़ गया। केशव ने तुरंत अनुपमा को सहारा देकर एक दवा की गोली खिलाई। थोड़ी देर में सामान्य होने के बाद उसका रोने का दौर शुरू हो गया। केशव जानता था कि अब कुछ नहीं किया जा सकता है इस अवस्था में। उससे देखा नहीं जा रहा था। ऐसे में उसकी मदद बिजली की सप्लाई ने की। बिजली चली गई थी और घुप्प अँधेरा हो गया था। अँधेरा होने पर भी रौशनी के लिए उसने ढिबरी नहीं जलाई। क्या करता आखिर वह रौशनी का? केशव को अनुपमा की आँखों में आये आँसुओं को आज भी देखने की हिम्मत नहीं होती थी। इस अँधेरे से उसे मदद मिल रही थी। शायद उसकी आँखों में भी आँसू थे परन्तु ये बात या तो केशव को पता थी या उस अन्धकार को।

(3)

केशव और अनुपमा उस दिन बहुत खुश थे। अमन ने कह दिया था कि पापा को अब और काम करने की जरुरत नहीं है। केशव का जमा-जमाया धंधा था पर अमन की जिद के आगे उसकी एक न चली। लिहाज़ा सबकुछ बेचबाच कर और बचा-खुचा बाँट-बूँटकर आज दिल्ली जाने की तैयारी चल रही थी। सारा सामान ट्रक पर चढ़ चुका था और केशव का स्कूटर ही ट्रक पर चढ़ाना रह गया था। सारे अड़ोस-पड़ोस में अमन की प्रशंसा हो रही थी जिससे केशव और अनुपमा फूले नहीं समा रहे थे। भाई केशव! भले ही तुम्हारा एक लड़का है लेकिन यह एक लड़का ही हमारे चार से अच्छा है। केशव ने अपने घर की चाबी मिश्रा जी के हाथों में थमा कर कहा कि मेरे घर का ध्यान रखियेगा। इसे इसलिए नहीं बेचा क्योंकि यह घर मेरे बाबूजी की निशानी है। इसके बहाने मेरे तार भी जुड़े रहेंगे इस शहर से।  आप चिंता मत करिए और कोशिश करना कि जल्दी-जल्दी आते-जाते रहो, तबतक ऊपर वाले हिस्से के लिए कोई किराएदार ढूँढ़ता हूँ। मिश्रा जी ने केशव को दिलासा दी। ट्रक पर सारा सामान लड़ चुका था और टैक्सी आ चुकी थी। बचपन से जिस घर-मोहल्ले में रहते रहे केशव, उसे छोड़ते समय बहुत ही भरी मन हो आया था उनका। सारे पड़ोसियों की आँखे भी नम हो चुकीं थी। ट्रक के जाते ही टैक्सी भी रेलवे-स्टेशन की ओर दौड़ पड़ी।

(4)

अमन का चयन पंजाब नेशनल बैंक में बतौर प्रोबेशनरी ऑफिसर हुआ था। बैंक की तरफ से एक अच्छा सा घर भी मिल गया था। पहली पोस्टिंग ही दिल्ली की आई थी। अमन, केशव और अनुपमा तीनों का वक़्त हँसी-ख़ुशी बीत रहा था। अमन के लिए सुयोग्य कन्या की तलाश चालू हो चुकी थी। और फिर एक दिन ये तलाश पूरी हुई। अमन की इच्छा थी कि विवाह दिल्ली के ही एक फार्महाउस से संपन्न हो। एक तो वो वेन्यू बहुत शानदार था दूसरा दिल्ली में समारोह होगा तो उसको ज्यादा छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी। लेकिन केशव का कहना था कि शादी की सारी रस्में तो भटनागर भवन से ही होंगी। अनुपमा भी केशव के पक्ष में थी। हारकर अमन को अपनी जिद छोडनी पड़ गई। विवाह पूर्व की तैयारियों के लिए केशव और अनुपमा पहले ही कानपुर को चले गए थे। केशव को पन्द्रह दिन बाद शादी से एक सप्ताह पहले ही पहुँचना था। भटनागर भवन में उत्सव जैसा माहौल हो गया था। अड़ोस-पड़ोस के लोगों ने भी अपनी सक्रिय सहभागिता से खुशियों को चौगुना कर दिया था। केशव और अनुपमा बहुत खुश थे। पड़ोस के एस०टी०डी० बूथ से अनुपमा ने अमन को फोन मिलाया कि इस शनिवार एक दिन की छुट्टी लेकर आ जाये जिससे टेलर को उसके कपड़ों की नाप दी जा सके। पर रेलवे का रिजर्वेशन नहीं है तो कैसे आ पाऊँगा। अमन के इस जबाब पर अनुपमा ने कहा मुझे नहीं पता, अगर नहीं आये तो शादी का सूट कैसे तैयार होगा। अच्छा ठीक है मैं बस से आता हूँ, करता हूँ कुछ छुट्टी का जुगाड़। आगे जो होने वाला था उसका अंदाजा न अमन को था, न अनुपमा को, न केशव को और न भटनागर भवन को। शनिवार की शाम को अमन की बस दिल्ली के बस अड्डे से कुछ कदम ही आगे ही बढ़ी थी कि एक जोरदार बिस्फोट हुआ। बस के साथ अमन के भी चीथड़े उड़ चुके थे। पुलिस प्रशासन ने पहुँचकर स्थिति का आँकलन किया और बताया गया कि ये एक आतंकवादी घटना थी। मृतकों की पहचान उनके बचे-खुचे सामान से हुई। अमन के सामान में उन लोगों को अमन का बैंक से जारी पहचान-पत्र और उसकी शादी के निमंत्रण पत्र मिले। ये निमंत्रण पत्र दिल्ली में अमन ने अपने मित्रों के बीच बाँटने के बाद बच जाने पर अपने बैग में रख लिए थे। रविवार के समाचारपत्र इस आतंकी घटना के समाचारों से भरे हुए थे। केशव चाय पीते-पीते अखबार भी पढ़ रह रहे थे। उन्हें अमन की चिंता हुई परन्तु केशव ने सोचा की उसे तो अभी एक सप्ताह बाद आना है, लिहाज़ा वो फिर चाय पीने लगा और समाचार को विस्तार से पढने लगा। तभी पड़ोस के मिश्राजी ने केशव को आवाज दी कि उनका फोन आया है। केशव ने अख़बार को एक किनारे रखकर जल्दी से बची हुई चाय को सुड़का और मिश्राजी के घर को चल दिए। ये फोन एक क़यामत लेकर आया था। विवाह के निमंत्रण पत्र पर मिश्राजी का फोन नम्बर दे दिया गया था कि अगर पते को लेकर किसी को कोई दिक्कत हो फोन करके समझ सकेगा, ये मिश्राजी की ही सलाह थी। पर अमन आज कैसे आ सकता है उसे तो अगले सप्ताह आना था। अनुपमा ने बोला कि उसने बुलाया था कपड़ों की नाप देने के लिए। “हाय क्यों बुलाया। मेरा बच्चा, मैंने उसका खून कर दिया”, अनुपमा अपने को कोसते हुए रोने लगी और फिर पता नहीं उसे कौन सा दौरा पड़ा कि बेहोश हो गई। केशव के बदन में तो जैसे कोई दम ही नहीं बचा था। पड़ोसियों ने आनन-फानन में डॉक्टर बुलाकर अनुपमा का उपचार करवाया। भटनागर भवन में खुशियों की स्वर-लहरियों की जगह रूदन की काली अमावस ने ले ली थी। अनुपमा को उस दिन पड़ा वो दौर आज भी अमन की याद आने पर फिर से पड़ जाता है। उस दिन के बाद से केशव और अनुपमा के जीवन में कुछ भी शेष नहीं बचा था। लेकिन जब तक शरीर मौजूद है, तब तक उसे उसकी खुराक पानी चाहिए। वो दोनों जीवित तो थे पर दो ज़िन्दा लाशों से अधिक कुछ नहीं थे। कोई उम्मीद नहीं, कोई आस नहीं, बस जीने की मजबूरी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह क्यों जी रहे हैं।

(5)

सुबह केशव को अनुपमा ने हिलाकर जगाया। अब कैसी तबियत है तुम्हारी। केशव ने अनुपमा से पूछा। अनुपमा ने उसके प्रश्न को अनसुना कर पूछा। कल रात तुमने खाना नहीं खाया। नहीं खाया, केशव का जबाब था, तुमने भी तो नहीं खाया। तुम्हें तो पता है कि दौरा पड़ने के बाद मुझे जबतक नींद नहीं आ जाती तबतक मेरी तबियत सही नहीं होती। और सुनो क्या नाम बताया तुमने उस बच्चे का जिसने तुम्हारी साइकिल में हवा भरने के लिए पम्प दिया था। उसके लिए कुछ बना दूँ क्या? अनुपमा ने केशव से पूछा। हाँ, उन्हें तो बड़ा पसंद आएगा हमारे यहाँ का खाना, केशव का जबाब था। तो फिर उसके लिए थोड़ी टाफियाँ लेते जाना, अनुपमा बोली। केशव ने सहमति में सर हिलाया। केशव तैयार होकर अपनी दुकान के लिए निकल लिया। कल जहाँ उसकी साइकिल की हवा निकल जाने पर वो बच्चा मिला था वह वहीँ खड़ा हो गया। काफ़ी देर तक जब वह बच्चा कहीं दिखाई नहीं दिया तो केशव अपनी साइकिल पर बैठ कर जाने को तैयार हो रहा था कि तभी उस बच्चे की आवाज आई। “मैं इधर हूँ अंकल, आपने मुझे ढूँढ नहीं पाया”। केशव ने देखा कि वह बच्चा झाड़ियों के पीछे से निकल रहा था। अरे वहाँ क्यों छुपे थे तुम, वहाँ पर तो साँप होते हैं। केशव ने कहा। हाँ अंकल सब लोग यही कहते कि यहाँ पर बहुत सारे साँप हैं, पर मैं तो यहीं पर रोज छिप जाता हूँ चाईजी को तंग करने के लिए। लेकिन अंकल मुझे आजतक एक भी साँप नहीं दिखा। कोई मुझे यहाँ पर कभी ढूँढनें नहीं आता। नहीं बेटा ऐसा अपने बड़ों को तंग नहीं किया करते। क्यों अंकल आपका बेटा आपको तंग नहीं करता है क्या। केशव की आँखों में आँसू आ गए जिसे देखकर बच्चा सकपका गया। सॉरी अंकल अब मैं चाईजी को तंग नहीं करूँगा। केशव ने झुककर उस बच्चे के माथे को चूम लिया। टॉफ़ी खायेगा। अपने हाथ में रखी टाफियों को दिखाते हुए केशव ने पूछा। हाँ अंकल, खाऊंगा। चल पहले अपना नाम बता। अंकल मेरा नाम तो नवदीप है, सबको पता है, आपको नहीं पता। नवदीप ने केशव के हाथ से सारी टाफियाँ लीं और भाग गया। उस दिन के बाद से हर सुबह का यह जैसे सिलसिला ही बन गया था। केशव रोज नवदीप के लिए टाफियाँ लाता और नवदीप उनको लेकर सीधे अपने घर रँगा हाउस में भाग कर घुस जाता। अनुपमा भी केशव से रोज नवदीप का पूरा किस्सा विस्तार से बताने को कहती और फिर दोनों उसके बचपन की बाल-सुलभ हरकतों पर खूब खुश होते। नवदीप ने उन दोनों के जीवन में कुछ तो जरूर बदल दिया था।

(6)

नवदीप तुम। केशव ने आश्चर्य के साथ कहा। उसने एकबारगी इधर-उधर देखा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं फिर जल्दी से उसको झाड़ियों के ओट कर दिया और ताकीद किया कि जबतक वो न कहे नवदीप वहीँ छुपा रहे। नवदीप की आँखों के सामने ही उसके घर के सामने भीड़ ने इकठ्ठा होकर पत्थरबाजी करना चालू किया था। अपनी चाईजी को सताने के लिए वह आज फिर से झाड़ियों में आकर छिप गया था। चाईजी की नवदीप को पुकारने की आवाज लगातार उसके घर रँगा हाउस से आ रही थी परन्तु वह अभी प्रकट होने के मूड में नहीं था। तभी उसको चाईजी की जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। हाय मार डाला। मार डाला। एक बड़ा सा पत्थर सीधे उनके सिर पर लगा था जाकर जिससे खून की एक पतली धार फूट पड़ी थी। पलक झपकने से पहले ही किसी ने चाईजी को कमरे के अन्दर खींच लिया था। दरवाजा बंद करते ही हजारों पत्थरों की बरसात होने लगी रँगा हाउस पर। पुलिस को फोन मिलाया जाने लगा। चाईजी नवदीप नवदीप चिल्लाती रह गईं पर उस घर के लोगों को सामने खड़ी मुसीबत का अंदाजा था। घर की महिलाएँ नवदीप को उस बड़े घर में हर तरफ ढूँढने लगीं और मर्द जल्दी-जल्दी घर के सभी दरवाजों को बंद करने लगे। रँगा हाउस के बाहर सैकड़ों लोगों की उत्तेजित भीड़ खड़ी थी। बाहर जाकर नवदीप को खोजने का कोई अवसर नहीं जान पड़ रहा था। घर के मर्दों ने अपने हथियार इकट्ठे किये और जीने के दरवाजे को बंद करके ऊपर की मन्जिल पर सबको ले गए। एकबारगी हवाई फायर किये गए कि भीड़ डरकर भाग जाए। परन्तु भीड़ का उस दिन का जुनून किस स्तर का था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हवाई फायर से डरने के उलट उन लोगों ने पत्थरबाजी और तेज कर दी और कुछ दंगाई तो बंगले की बाउंड्रीवाल पर चढ़ गए। जब उस घर के एक मर्द से सहन नहीं हुआ तो उसने ठीक सामने गोली चलानी शुरू कर दीं। किसी की टांग पर, किसी के हाथ पर या उँगलियों पर गोलियाँ लगीं जाकर। परन्तु वो साधारण भीड़ होती तो डरकर भागती। उस भीड़ में तो एक से बढ़कर एक प्रोफेशनल गुण्डे बदमाश शामिल थे जो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में हमेशा रहते थे। भीड़ के आगे कौन टिका है। यह बात उस परिवार को भी पता थी। उस परिवार के लोग समझ चुके थे कि आज उनका आख़िरी दिन है। लिहाज़ा अब घर के मर्दों ने अपने सिर पर कफ़न बाँध लिया था और उन्होंने भीड़ के सम्मुख सीधा मोर्चा खोल दिया। राइफल से चली एक गोली सीधे उसकी छाती में लगी जाकर और समीर वहीँ लुढ़क गया था। अब तो भीड़ का जुनून और भी बढ़ गया था। उस घर के लोग कितनी देर फायरिंग करते। भीड़ मेनगेट को तोड़कर नीचे की मन्जिल पर थी और लगातार नीचे के कमरों के बाहरी दरवाजों पर धक्के मार रही थी। घर के दरवाजे टूटने के साथ ही लूटपाट होने लगी थी। नवदीप सहमा हुआ झाड़ियों के पीछे से सब देख रहा था परन्तु तभी हुए धमाके के साथ तो उसकी जैसे साँस ही रुक गई। वह समझ गया था कि उसके परिवार में अब कोई नहीं बचा होगा। अपनी उम्र के लिहाज से वह छोटा सा बच्चा बहुत हिम्मत और धैर्य का परिचय दे रहा था। नवदीप को झाड़ी के पीछे छुपाकर जैसे ही केशव पलटा, वैसे ही एक धमाका और हुआ और फिर चार-पाँच और धमाके और हुए। शायद सिलेंडरों में आग लगाये जाने के कारण वो एक-एक करके फट रहे थे और बम बिस्फोट जैसी आवाजें कर रहे थे। पूरे घर में आग लग चुकी थी। लपटें ऊपर की मन्जिल को भी पार कर रहीं थीं और फिर एक धमाका और हुआ जिसके साथ ही धूल का एक बहुत बड़ा गुबार उठा। घर की छत ढह चुकी थी। अब उस घर में किसी के भी जीवित बचने की एकदम क्षीण सम्भावना थी। भीड़ को अब किसी सामान के बचने की भी कोई उम्मीद नहीं बची थी। भीड़ अपना काम कर चुकी थी और किसी और रँगा हाउस की तलाश में आगे बढ़ चुकी थी। अब तो पुलिस के आने से भी कोई लाभ नहीं था। और पुलिस के पास तो आज शहर के हर छोर से जाने कितने फोन आ रहे होंगे। सभी जगह एक-साथ पहुँच पाना पुलिस के लिए भी सम्भव कहाँ था। केशव ने अपने आस-पास बची-खुची भीड़ का निरीक्षण किया। उसके होठों पर एक अदृश्य मुस्कान फ़ैल कर गायब हो गई। उसने उधर देखा जिधर नवदीप झाड़ियों में छुपा हुआ था। किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए केशव अँधेरे के गाढ़े होने की प्रतीक्षा करने लगा।

(7)

केशव को रह-रहकर अपने 22 वर्षीय बेटे की याद आ रही थी। किसी की घटिया सोच की परिणिति ही थी कि उसके बेटे को असमय काल का ग्रास बनना पड़ा। केशव इस घटिया सोच को जड़ से मिटा देना चाहता था पर वह जानता था कि ये उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात है। परन्तु किसी भी तरह उसे मौका मिलता तो वह उस आतंकी सोच का पुरजोर विरोध करता। वह खुलेआम कहता फिरता कि आतंकी सोच की तो पीढ़ी यहीं समाप्त हो जानी चाहिए। इतनी मानवता की विरोधी पीढ़ी को जीने का कोई हक़ नहीं बनता या कम से कम इस पीढ़ी की सोच को तो यहीं समाप्त हो जाना चाहिए। लोग कहते थे कि केशव को ऐसा कभी कोई मिल गया तो वह तो जान ही ले लेगा। किसी आतंकवादी की मौत की खबर छपती तो वह उस समाचार की जीरोक्स करा के कई प्रतियाँ बना लेता और पूरे मोहल्ले में उस खबर को लोगों के दरवाजों पर चिपका देता। लोगों में मिठाई बाँटता और बच्चों को टाफियाँ बाँटता, पटाखे चलाता। तेज आवाज में टेपरिकॉर्डर पर भांगड़ा की धुन बजाता और हर्ष-ध्वनि के साथ जोर-जोर चिल्लाता।  किसी आतंकी घटना की खबर छपती तो दिन भर रोता रहता। उस दिन वह अपने काम पर भी नहीं जाता था। अनुपमा को तो ऐसी खबर पढ़ते ही दौरा पड़ जाता। उस दिन वो दोनों ही मातम मनाते और अपने होनहार जवान बच्चे की याद में रोते रहते। लेकिन आज की घटना से वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे रोना चाहिए या फिर ख़ुशी मनानी चाहिए। उसने उस झाड़ी की ओर देखा। नवदीप अभी भी उस झाड़ी के पीछे ही छिपा था। केशव के कदम उस झाड़ी की तरफ बढ़ चले।

(8)

नवदीप केशव को देखकर यकाएक सहम गया। इतना अँधेरा हो गया था कि नवदीप को चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। केशव झुका और नवदीप को उठा लिया। “अंकल मुझे बहुत डर लग रहा है”, इतना कहकर नवदीप ने केशव की गर्दन के गिर्द अपने छोटे-छोटे हाथों का एक घेरा बनाकर कस लिया। ये इतना कसा हुआ घेरा था कि केशव को अपनी गर्दन दबती हुई लगी। नवदीप रोये जा रहा था और उसके आँसू ढलककर केशव के गाल को भी गीला कर रहे थे। केशव की आँखों से भी आँसू वह निकले। उसे अपना बेटा फिर याद आ गया था। अनुपमा के डाँटने या पीट देने पर वह इसी तरह उसकी गर्दन के साथ लिपट कर रोता था और इसी तरह उसके आँसू केशव के गालों तक लुढ़ककर पहुँच जाते थे। केशव की आँखों के आगे धुंधलका सा छाने लगा। नफरत के बादलों ने केशव के जेहन पर तेजाबी बारिश कर दी थी। फिर यकाएक केशव ने नवदीप को अपनी बाँहों के धेरे में कस लिया। केशव की बाहों के घेरे का कसाव इतना ज्यादा था कि नवदीप को लगा कि उसका दम ही घुटने वाला है। “तुझे कुछ नहीं होगा मेरे बच्चे, दोबारा तुझे कुछ नहीं होने दूंगा मेरे रहते”, केशव बड़बड़ाते हुए कह रहा था और अब वह नवदीप को लगातार चूमे जा रहा था।  तभी गली के छोर पर किसी गाड़ी की हेडलाइट दिखाई दी जो उनकी ओर ही आ रही थी। केशव ने आनन-फानन नवदीप को फिर से झाड़ियों में छुपाया और अपनी साइकिल को भी उस खाली प्लाट की झाड़ियों के बीच छुपाकर खुद भी छुप गया। वो एक मोटरसाइकिल थी जिस पर दो लोग डंडे लेकर सवार थे। मोटरसाइकिल रँगा हाउस और खाली प्लाट के बीच सड़क पर रुक गई। एक मोटरसाइकिल सवार मोटरसाइकिल से उतरकर कुछ जायजा लेने लगा।

(9)

केशव अपनी हथेली से नवदीप का मुँह दबाकर साँस रोके पड़ा रहा। सड़क पर टहल रहे आदमी को मोटरसाइकिल सवार ने आवाज दी, “आजा, यहाँ सबकुछ ख़त्म हो चुका है”। सड़क पर टहल रहा आदमी मोटरसाइकिल पर बैठा और वो दोनों अपनी मोटरसाइकिल से वहाँ से रवाना हो चुके थे। अब केशव ने देर करना उचित नहीं समझा। नवदीप को साइकिल के डंडे पर बिठाकर अपना गमछा उसके सिर से ओढ़ा दिया और जल्दी-जल्दी पैडल मारना शुरू कर दिया। वह शीघ्रताशीघ्र अपने घर पहुँच जाना चाहता था। उस सर्दी के मौसम में भी केशव पसीने से नहा गया था। साइकिल खड़ी करके उसने नवदीप को उठाया और शीघ्रता से अन्दर वाले कमरे में पड़े बिस्तर पर लिटा दिया जाकर। “चाहे कुछ भी हो जाये तुम इस कमरे से बाहर नहीं निकलना और न ही कोई आवाज निकालना”, केशव ने नवदीप को सावधान करते हुए कहा और कमरे से बाहर आकर कुण्डी लगा दी। अपने माथे के पसीने को पोंछकर अब उसने कुछ राहत की साँस ली। अनुपमा भी बाहर से अन्दर आई। वह शायद केशव को ढूँढने के लिए गई थी।  आते ही केशव को देखकर अनुपमा ने चीखना शुरू कर दिया, “कहाँ रह गए थे तुम? कैसी-कैसी खबरें आ रहीं थीं लगातार। तुम्हें कुछ पता नहीं चला क्या? तुम्हारे दूकान के पास वाले एस०टी०डी० का फोन भी नहीं उठ रहा था। केशव ने अनुपमा को शांत रहने का दिलासा दिया और पूरी घटना कह सुनाई। अनुपमा दौड़ती हुई अंदर वाले कमरे में गई और नवदीप को अपनी बाँहों में कस लिया। दोबारा तुम्हें मैं अपने से दूर नहीं जाने दूँगी। केशव ने झट से बाहर के सभी दरवाजे बंद करके खिडकियों के परदे खींच दिए। बेचारा नवदीप तो एकदम गुमसुम हो गया था। उसकी आँखों में भय का इतना असर था कि आँसुओं ने भी बहना बंद कर दिया था।

(10)

दंगे अब समाप्त हो चुके थे। दंगे में इतनी लूट-पाट हुई थी कि एक-एक घर की तलाशी ली जा रही थी। लोग गिरफ़्तारी से बचने के लिए रातों-रात लुटे गए सामान को सड़कों पर फेंक रहे थे। हालाँकि कुछ ढीठ लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया। फ्रिज, टेलीविजन, रेडियो सब सड़कों पर पड़े थे और अब उन्हें कोई उठा भी नहीं रहा था। केशव के दरवाजे पर दस्तक हुई।  दरवाजा खोलते ही पुलिस का दारोगा अन्दर घुस गया। मकान तो बहुत बड़ा है पर है जर्जर। कितने लोग रहते हैं यहाँ पर? दरोगा ने कड़कदार आवाज में केशव से पूँछा। जी हम तो सिर्फ दो हैं। मैं और अनुपमा मेरी पत्नी। सुनते हैं कि इस गली के लोगों ने रँगा हाउस में बहुत लूट-पाट की है। तुम क्या लाये हो लूटकर वहां से, देख सच बोलना मुझे सब पता है। दरोगा ने फिर से कड़कते हुए कहा। केशव को लगा कि दरोगा को सब पता चल गया है। अनुपमा भी सब कुछ सुन चुकी थी। दरोगा को इतना कहते सुनकर वह अन्दर वाले कमरे की ओर भागी। केशव को लगा कि दरोगा ने अवश्य अनुपमा को देख लिया होगा। उसने सोचा कि अब बता ही देना उचित होगा। वैसे ही अनुपमा को भागते देखकर दरोगा की चढ़ी हुई भ्रकुटियों को देख लिया था उसने। परन्तु इससे पहले कि केशव कुछ बोलता एक आवाज आई। अरे दरोगा जी, काहे फ़ालतू में उधर अपना वक़्त जाया कर रहे हैं। अरे ये तो शरीफों का सरदार है। केशव और दरोगा, दोनों ने एकसाथ उधर देखा जिधर से आवाज आई थी। अरे ये तो वही आदमी है जो रँगा हाउस के सामने अपने हाथों में जेवर और नकदी लेकर तेजी से भाग रहा था और उसकी साइकिल से टकरा गया था। बहुत शरीफ हैं ये भाई, मैं बता रहा हूँ आपको। एक बेहतरीन इंसान हैं ये। उस आदमी की आवाज फिर से आई। उस दिन जब सब लूट रहे थे तो ये जनाब सड़क के दूसरी तरफ खड़े हुए थे। पुलिस जिप्सी में हथकड़ियों से बंधे उस आदमी ने फिर से कहा। तब तक मिश्रा जी भी वहाँ पहुँच चुके थे। दरोगा शायद मिश्रा जी के परिचय का था क्योंकि उनको देखते ही दरोगा ने अभिवादन किया था। ये भाई साहब सही कह रहे हैं, केशव जी तो हमारे मोहल्ले के बहुत ही संभ्रांत व्यक्ति हैं। पिछली तीन पीढ़ी से हमारा और इनका परिवार यहीं रह रहा है, तबसे जबसे ये शहर बसना शुरू ही हुआ था। मिश्रा जी दरोगा को समझा रहे थे। परन्तु  आपको लग रहा होगा कि अभी-अभी इनकी पत्नी बड़ी ही हड़बड़ी में अन्दर को भागीं थीं। उसका कारण मैं बताता हूँ। आप मेरे साथ चलिए। मिश्रा जी ने अमन के साथ हादसे के बारे में दरोगा को बताया। कैसी बिडम्बना है। इस परिवार का बच्चा नहीं रहा और रँगा हाउस में सभी की लाशें मिलीं थी पर एक चार-पाँच साल के बच्चे का कुछ पता नहीं चला। पता नहीं क्या हुआ उस अबोध बालक का। बेचारे ने इतनी छोटी सी उम्र में क्या-क्या नहीं देख लिया। दरोगा बोल रहा था। केशव का दिल धक्क से रह गया। कहीं वो बच्चा दिखे तो सूचना देना। उसे बाल-भवन में भेजना है। दरोगा ने मिश्रा जी से कहा और फिर केशव की ओर मुखातिब होकर बोला, “आप भी ध्यान रखना भटनागर साहब”। केशव को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। दरोगा जिप्सी में बैठकर आगे बढ़ गया। मिश्रा जी ने धीरे से केशव के कंधे पर हाथ रखा परन्तु कोई दिलासा नहीं दी। मिश्रा जी जानते थे कि अमन का जिक्र आ जाने के बाद केशव और अनुपमा की क्या स्थिति हो जाती थी।

(11)

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ऑटोरिक्शा पकड़कर करोलबाग पहुँचे मिश्रा जी ने पर्ची से मकान नंबर मिला कर देखा। ये लग तो वही पता रहा है। मिश्रा जी ने दरवाजे पर लगी बेल दबा दी। एक बाईस-तेईस वर्ष की नवयौवना ने दरवाजा खोला। आप क्या कानपुर से आये हैं? उस नवयौवना का सवाल था। आईये-आईये आप अन्दर बैठिये आकर, आपका ही इंतजार हो रहा था। मिश्रा जी उस बड़े से हॉल के अन्दर पड़े एक सोफे पर बैठ गए और चारों ओर मुआयना करने लगे। तभी एक अत्यंत वृद्ध सज्जन उपस्थित हुए। मिश्रा जी और उस वृद्ध की आँखों से अश्रुधार फूट पड़ीं थीं। कैसे हैं भटनागर साहब और अनुपमा कहाँ है? बहुत अच्छे हैं मिश्रा जी। मिश्रा जी की आँखें कुछ सवालिया निगाह से केशव भटनागर को देखे जा रहीं थीं। आप बैठिये मिश्रा जी। अमन अभी अनुपमा के साथ पास ही डॉक्टर के क्लीनिक पर गया है आता ही होगा। तुम मान्या से तो मिल ही चुके हो, अरे वही जिसने आपके चरण स्पर्श किये थे। हाँ-हाँ, वो क्या अमन की.. । जी, मिश्रा जी वो अमन की पत्नी है। अभी पिछले महीने ही इनका विवाह हुआ था। आपने कानपुर से किसी भी तरह का संपर्क रखने से रोक रखा था, नहीं तो अमन की तो बहुत इच्छा थी कि आपको जरुर बुलाया जाये। मुझे, अनुपमा को और अमन सभी   को आपका उपकार हमेशा याद रहता है। और इसे हम कभी भी नहीं भूलेंगे।

(12)

दरोगा के जाने के बाद अनुपमा की हालत और बिगड़ गई थी और उसे हमेशा की तरह दौरे पड़ने लगे थे। उस दिन मिश्रा जी केशव के घर पहुँचे और अनुपमा की हालत के बारे में पूँछा। गोली दे दी है, केशव ने कहा, ठीक हो जाएगी। पता नहीं ज़िंदगी हमसे किन जन्मों का हिसाब-किताब कर रही है। पता नहीं क्या अपराध हुआ हमसे, किस बात का बदला ले रही है ज़िंदगी। इतना कहकर केशव मिश्रा जी के समक्ष ही रोने लगा था। लाख प्रयास के वावजूद भी उस दिन संभल नहीं पाया। केशव एक बात कहूँ, यदि बुरा न मानो तो। केशव को कुछ आशँका हुई तो उसका रोना थम गया। देखो केशव, मिश्रा जी ने कहा। रँगा हाउस पर दंगे वाले दिन जब तुम साइकिल से आ रहे थे तो मैंने सबकुछ देख लिया था। केशव को कुछ बेचैनी से हुई। क्या देखा आपने? वही जिसे आप अपनी साइकिल के डंडे पर ओढ़ाकर बिठाये हुए थे। मिश्रा जी ने कहा। केशव समझ गया कि उसकी चोरी पकड़ी गई है। केशव ने हाथ जोड़कर मिश्रा जी से निवेदन किया, “मिश्रा जी थोड़े दिन रुक जाइए, फिर मैं खुद उसके किसी रिश्तेदार को ढूँढ़कर उसे वापस कर आऊँगा। पर अभी कुछ दिन हमारे पास ही रह जाने दीजिये। मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ। अनुपमा को लगता है कि नवदीप के रूप में भगवान् ने उसके पास उसका अमन वापस भेज दिया है। नवदीप को वापस करने की बात करते ही उसकी तबियत बहुत बुरी तरह बिगड़ जाती है। थोड़ा वक़्त बीतते मैं उसे समझा लूँगा पर अभी रुक जाइए। मैं खुद उसके रिश्तेदारों को ढूँढ़कर उन्हें नवदीप सौंप दूँगा। केशव के जुड़े हुए हाथों को मिश्रा जी ने अपने दोनों हाथेलियों के बीच में थाम लिया। क्यों परेशान हो रहे हो केशव? मैंने किसी को कुछ नहीं बताया। उस दरोगा को देखकर स्थिति सँभालने के लिए ही मैं आ गया था। पुलिस ने नवदीप को भी ढूँढा और रँगा हाउस के अन्य रिश्तेदारों को भी पर उन्हें सफलता नहीं मिली। अगर पुलिस को नवदीप मिल भी गया तो बाल भवन के अनाथालय में रखने के अलावा कोई और चारा नहीं है उनके पास। वहां उसकी क्या स्थिति होगी यह कहने की बात नहीं है। तुमने सही कहा कि ज़िन्दगी हिसाब-किताब कर रही है, बदला ले रही है। इसीलिए नवदीप को तुम्हारे पास भेज दिया है। केशव तुमसे और अनुपमा से अच्छी परवरिश और प्यार नवदीप को कोई और नहीं दे सकता।  थोड़ी देर में मिश्रा जी की एम्बेसडर कार से केशव, अनुपमा और नवदीप स्टेशन की ओर जा रहे थे। अपना पता टेलीफ़ोन पर बता देना और भटनागर भवन की फ़िक्र मत करो। इसको किराये पर चढ़ा दूँगा और हर तीसरे महीने तुम्हें किराया पहुँचाता रहूँगा, उन तीनों को विदा करते हुए मिश्रा जी ने कहा। नवदीप अनुपमा की गोद में सो चुका था। नवदीप को देखकर मिश्रा जी ने कहा, “अमन का ध्यान रखना”। दिल्ली जाने वाली ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रेंगने लगी थी। मिश्रा जी की आँखों में आँसू थे परन्तु चेहरे पर एक अदृश्य मुस्कुराहट भी बिखरी हुई थी।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

माहौल सही नहीं है। आप जल्दी से घर पहुँचो। उस गुण्डे ने केशव को चेताया। पर, क्या हुआ है भईया यहाँ। तुम शरीफ लोग साला, साला ऊपर के माले की लाइट हमेशा डिम करके क्यों रखते हो? ....................................................................... इसी कहानी से

15 नवम्बर 2023

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर मौलिक लेखन 👌🙏 मेरी कहानी प्रतिउतर पढ़कर समीक्षा जरूर दें 🙏

8 अक्टूबर 2023

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

9 अक्टूबर 2023

धन्यवाद आदरणीया आपका आभार 🙏🙏

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

20 अक्टूबर 2023

मैंने आपकी कहानी पर समीक्षा लिखी है ....

7
रचनाएँ
नील पदम् की कहानियाँ
5.0
अभागा, निशानी, हाथ का बुना स्वेटर, लूट का माल एवं नील पदम् लिखित अन्य कहानियाँ
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अभागा

20 अगस्त 2023
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माँजी ने आवाज़ दी, “तुम्हारा फोन है बबलू”।  “मेरा फोन!, तुम्हारे फोन पर कैसे”, अमोल ने माँ से कहा। फिर याद आया कि पहले ये नंबर उसके मोबाइल में था, बाद में माँ जी के फोन में बी०एस०एन०एल० का ये सिम

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10 सितम्बर 2023
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आकाश एक बच्चे के नीले ब्लेजर को बड़ी ही हसरत से देख रहा था।  “पापा मुझे भी ऐसा ही एक ब्लेजर दिला दो”, आकाश ने पराग के हाथ को धीरे से खींचकर कहा। “अरे क्या करेगा उसे लेकर”, पराग ने कहा, “देख न कैसे ठण

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21 सितम्बर 2023
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एक हैसियत सागर किसी तरह अपने कपड़े झाड़कर खड़ा हुआ। उसने महसूस किया कि उसके घुटने मोड़ने या सीधे करने पर दर्द का चनका उठता था। पास में ही एक चक्की के टूटे हुए दो पाट एक के ऊपर एक रखकर बैठने लायक ऊंचाई

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लूट का माल

6 अक्टूबर 2023
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लूट का माल (1) सर्द मौसम था परन्तु एक ख़ुशगवार शाम थी वो। लेकिन शहर में गर्म अफवाहों ने फिज़ा में इतना तनाव भर दिया था कि किसी का ध्यान मौसम की ओर नहीं था। साइकिल के पैडल पर जोर-जोर से पैर मारकर वो

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निशानी

24 सितम्बर 2023
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“सुना है तुम छुआछूत की समस्या पर कटाक्ष करता हुआ कोई नाटक करने वाले हो इस बार अपने स्कूल में”, संतोष भईया ने मुझसे शाम को खेलते समय पूछा, “और उस नाटक की स्क्रिप्ट भी तुमने ही लिखी है, बहुत बढ़िया”।

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मनी-प्लांट

20 अक्टूबर 2023
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मनी-प्लांट (1) क्या कर रही हो दादी? इस पौधे को क्यों तोड़ रही हो? क्या दिक्कत हो रही है इनसे तुमको? बोलती क्यों नहीं दादी? अपने पोते के एक के बाद एक प्रश्नों को अनसुना कर मिथलेश कुमारी अपने काम में

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समर की अमर दोस्ती

24 सितम्बर 2023
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डोरबेल की कर्कश आवाज से उन दोनों की नींद खुल गई। हड़बड़ाते हुए मिश्रा जी और उनकी पत्नी उठे। मिश्रा जी ने तुरंत लाइट जलाकर घड़ी पर नज़र डाली। “अरे! बाप रे बाप, पाँच बज गए, तुमने उठाया क्यों नहीं”, मिश्रा

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