मन के शीशमहल में अष्टक
शुभ मूरत स्थापित कर ली।
तुमको प्रेम किया है जबसे हौले हौले नींद उड़े।
धड़कन मंद हुई हैं लेकिन रक्त देह से तीक्ष्ण लड़े।
है श्वेतांशु सी नयन प्याले
वहीं स्याह काजल ज़र ली।
मन के शीशमहल में......
रौनक बहुत था संग तेरे आतिश नयन के चाह में।
मध्य पयोधी मोती ढ़ूढ़े फिसला मीन की आह में।।
बनके चकोर नित्य पुकारे
जल तृष्णा अपने स्वर ली।
मन के शीशमहल में.....
तीव्रतम प्रेम तरंगदैर्ध्य में बह न जाये कहीं हृदय।
सागर सीप शगुन अश्लेषा नक्षत्र जल से मृदुल प्रणय।।
राशिचक्र जबसे उचराई
तबसे मुद आसन धर ली।।
मन के शीशमहल में अष्टक
शुभ मूरत स्थापित कर ली।।
©-राजन-सिंह