प्रश्न अनोखे थे लेकिन क्यों?
उत्तर देना संभव ना था।
घड़ी-घड़ी मन उचट रहा प्रिय
भेद हृदय के खुल ना जाए।
घड़ी-घड़ी दृग भटक रहा प्रिय
प्रेमी जन मिलजुल ना जाए॥
प्रश्न उचित होकर भी भौतिक
उत्तर का कुछ अनुभव ना था॥
प्रश्न अनोखे थे लेकिन........
अर्चन कितने राहों में है
कुछ काँटे, कुछ कंकर-पत्थर।
बाधाओं के बाँध तोड़ने
आएंगे प्रेमी उसी डगर॥
प्रश्न जटिल हो तर्क करें नित
उत्तर लौकिक उत्सव ना था।
प्रश्न अनोखे थे लेकिन.......
प्रेम प्रतिज्ञा लेकर 'राजन'
चले मिलन को अपनी प्रियतम।
मधुर-मृदुल बातें करें अधर
हर ले सारे के सारे गम॥
प्रश्न अद्धभुत अनुपम सारे
उत्तर गंधक नीरव ना था॥
प्रश्न अनोखे थे लेकिन......
©-राजन सिंह