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बैठी साइकिल पर थी तुम

22 नवम्बर 2021

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याद तुम्हें तो होगा प्रिय! दिल से अस्सी घाट, शरद ऋतु का.

गाये थे जो नगमें मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम. 


भावनाओं के सिगरेट की तुम सुलगती धुआँ  थी. 

या पानामा के कश से तुम, चोटिल धुँधली कुआँ थी. 

सुराहीदार गर्दन के तिल, रखती कुर्ती के शर थी तुम. 

गाये थे जो नगमें मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम.     

 

कभी कचौड़ी गली गुजरता, तो कहती रंगबाज़ है. 

अगर तुम्हारे काँधों पे सर रखता पूछती क्या राज़ है. 

मेरे सीनें पर जो घूमें, अंगुली सी सहचर थी तुम. 

गाये थे जो नगमें मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम. 


रोटी के पर्थन हाथों में, लगा खोलती दरवाज़ा. 

दाँत दिखा कर कह देती थी,  चल जल्दी अंदर आ जा. 

चाक  चढ़ी कोई मूर्तित थी, या मिट्टी आखर थी तुम. 

गाये थे जो नग़में मिलके,  बैठी' साइकिल पर थी तुम.


खाली कमरा, खाली बोतल, पर नशा तुम्हारा सर पर.

गांजा, अफीम फीका था पर,  झूम रहा था गिर-गिर कर.

जाम काँच से छलक रहा या बहती लब निर्झर थी तुम.

गाये थे जो नगमें मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम.


बैठ अटारी के मुँडेर पर, ताक रही थी जो रस्ता. 

चुटकी भर सिन्दूर चाह थी, मिला नहीं वह भी सस्ता.

गेरूआ साँकल साँझ चढ़ा, पहुँचा जैसे दर थी तुम.

गाये थे जो नगमें मिलके,  बैठी' साइकिल पर थी तुम.



©-राजन-सिंह

Jyoti

Jyoti

👍

31 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

गज़ब लिखते है आप

30 दिसम्बर 2021

ममता

ममता

सुंदर रचना

22 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
गीत-स्मिता
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मैं शून्य हूँ तुम श्वाँस हो मेरे दशा की न्यास हो। तुम ज़िंदगी तुम बंदगी सुरभित समर उछ्वास हो।। मेरे दशा की न्यास हो।। उल्लास तुमसे आजकल कंचन धनक में रंग है। औचक महक कर देह संदल कर रहा हिय दंग है। मुश्किल बहुत है प्रेम में लेकिन सुगम मलमास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। मैं अनवरत ही ताकता हूँ अनगिनत इच्छा लिये। तुमसे कहूँ क्या? सोचता हूँ पत्य जो तुमने दिये। संचय अनय जब कर लिया तब निर्जला उपवास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। नेपथ्य में सब तथ्य तेरे है हमारा कुछ नहीं। मंजूर मुझको शर्त सब अभिसार तेरा हो वहीं। बन शृंखला भव प्रेम की चंचल हृदय में वास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। तुम मेघ सी तन स्वेद सी बौछार बन बैरिन ढ़रे। उथला हुआ मन ले बढ़ा दृग माधुरी आश्विन भरे। अनुपात में मछली जलज पर रीझती उर रास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। नव पांखुरी सी ओष्ठ सिंदूरी झलक झिलमिल नथा। चढ़ना क्षितिज सोपान है गढ़ने युगल परिणय कथा।। अधिकार है तुम पे मुझे प्रतिपाल पर विश्वास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। ©- राजन सिंह
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