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उत्कल बसाता है हृदय

6 सितम्बर 2021

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उस साँवरी को देख कर उत्कल बसाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में रच मुस्कुराता है हृदय।।

तन पुष्प सी मन है कली
मधुपर्क सी माधुर्य लब।
रिसने लगे जब प्रेममय
होकर नयन के बाँध सब।।
ऐ! जग समझ लेना रसिक हो गुनगुनाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......

सुकुमार बनके फिर रहा
गुलफ़ाम उसके ही नगर।
संपर्क में भौमिक रहे
नित सींचता उसका डगर।।
लघु बोनसाई बन उन्हीं के चित्त छाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......

मैं कर्बला मैदान
तुझमें ताजिए देखूँ सकल।
कुरुक्षेत्र लड़ने को चला
मैं जीतने सुंदर महल।।
भावित छुपा दुनिया से' हरदम मय जमाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......

मनहंस गुलशन का
उसी के दर खड़ा टेढ़ा सही।
ऋजुकाय शोभन बालिके
देती जगह उर में रही।।
संचार अपना जोड़ने नवगीत गाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......

प्राचीर चढ़ आसित युवक
नित ताकता द्रुत राह है।
आयी मिलन को जब शुभे
लवलीन प्रिय मुख आह! है।
आकाश भर अनुराग कोमल सुख लुटाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......

©-राजन-सिंह
रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

अद्भुत 👏 👏 👏

1 जनवरी 2022

Jyoti

Jyoti

बढ़िया

31 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बहुत सुन्दर

30 दिसम्बर 2021

Pragya pandey

Pragya pandey

बहुत खूबसूरत लाइन है ❤️❤️❤️

7 सितम्बर 2021

Rajan

Rajan

स्नेह बनाए रखियेगा सादर!🙏🙏

6 सितम्बर 2021

Reeta Gupta

Reeta Gupta

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

6 सितम्बर 2021

Rajan

Rajan

6 सितम्बर 2021

स्नेह बनाए रखियेगा सादर!🙏🙏

Avi Goel

Avi Goel

बढ़िया एकदम

6 सितम्बर 2021

Rajan

Rajan

6 सितम्बर 2021

स्नेह बनाए रखियेगा सादर!🙏🙏

Poonam kaparwan

Poonam kaparwan

शानदार शब्दावली ।

6 सितम्बर 2021

Rajan

Rajan

6 सितम्बर 2021

स्नेह बनाए रखियेगा सादर!🙏🙏

Shivansh Shukla

Shivansh Shukla

अद्भुत रचना मैं कर्बला मैदान तुझमें ताजिए देखूँ सकल। कुरुक्षेत्र लड़ने को चला मैं जीतने सुंदर महल।। भावित छुपा दुनिया से' हरदम मय जमाता है हृदय। उसके नयन के कोर में...... शानदार लाइने है 👌👌🙏🙏

6 सितम्बर 2021

Rajan

Rajan

6 सितम्बर 2021

🙏🙏 स्नेह बनाएं रखियेगा सादर!

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रचनाएँ
गीत-स्मिता
4.2
मैं शून्य हूँ तुम श्वाँस हो मेरे दशा की न्यास हो। तुम ज़िंदगी तुम बंदगी सुरभित समर उछ्वास हो।। मेरे दशा की न्यास हो।। उल्लास तुमसे आजकल कंचन धनक में रंग है। औचक महक कर देह संदल कर रहा हिय दंग है। मुश्किल बहुत है प्रेम में लेकिन सुगम मलमास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। मैं अनवरत ही ताकता हूँ अनगिनत इच्छा लिये। तुमसे कहूँ क्या? सोचता हूँ पत्य जो तुमने दिये। संचय अनय जब कर लिया तब निर्जला उपवास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। नेपथ्य में सब तथ्य तेरे है हमारा कुछ नहीं। मंजूर मुझको शर्त सब अभिसार तेरा हो वहीं। बन शृंखला भव प्रेम की चंचल हृदय में वास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। तुम मेघ सी तन स्वेद सी बौछार बन बैरिन ढ़रे। उथला हुआ मन ले बढ़ा दृग माधुरी आश्विन भरे। अनुपात में मछली जलज पर रीझती उर रास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। नव पांखुरी सी ओष्ठ सिंदूरी झलक झिलमिल नथा। चढ़ना क्षितिज सोपान है गढ़ने युगल परिणय कथा।। अधिकार है तुम पे मुझे प्रतिपाल पर विश्वास हो। मेरे दशा की न्यास हो।। ©- राजन सिंह
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मन के शीशमहल में

5 सितम्बर 2021
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उत्कल बसाता है हृदय

6 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">उस साँवरी को देख कर उत्कल बसाता है हृदय।</span></div><div><span

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तुम याद आयी

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<div><span style="font-size: 16px;">झूलती झूला सखी सब देख कर तुम याद आयी।</span></div><div><span sty

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मैं सन्यासी प्रेम गणित का

8 सितम्बर 2021
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सो रहा बदरी में' चंदा

10 सितम्बर 2021
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उत्तर देना संभव ना था

11 सितम्बर 2021
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बैठी साइकिल पर थी तुम

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<p>याद तुम्हें तो होगा प्रिय! दिल से अस्सी घाट, शरद ऋतु का.</p> <p>गाये थे जो नगमें मिलके, बैठी' साइ

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ताप ओढ़े भाप बढ़ता

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<div>किस अगम ने</div><div>किस निगम का</div><div>ताप ओढ़े भाप बढ़ता।</div><div><br></div><div>हम विलग

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