उस साँवरी को देख कर उत्कल बसाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में रच मुस्कुराता है हृदय।।
तन पुष्प सी मन है कली
मधुपर्क सी माधुर्य लब।
रिसने लगे जब प्रेममय
होकर नयन के बाँध सब।।
ऐ! जग समझ लेना रसिक हो गुनगुनाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......
सुकुमार बनके फिर रहा
गुलफ़ाम उसके ही नगर।
संपर्क में भौमिक रहे
नित सींचता उसका डगर।।
लघु बोनसाई बन उन्हीं के चित्त छाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......
मैं कर्बला मैदान
तुझमें ताजिए देखूँ सकल।
कुरुक्षेत्र लड़ने को चला
मैं जीतने सुंदर महल।।
भावित छुपा दुनिया से' हरदम मय जमाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......
मनहंस गुलशन का
उसी के दर खड़ा टेढ़ा सही।
ऋजुकाय शोभन बालिके
देती जगह उर में रही।।
संचार अपना जोड़ने नवगीत गाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......
प्राचीर चढ़ आसित युवक
नित ताकता द्रुत राह है।
आयी मिलन को जब शुभे
लवलीन प्रिय मुख आह! है।
आकाश भर अनुराग कोमल सुख लुटाता है हृदय।
उसके नयन के कोर में......
©-राजन-सिंह