झूलती झूला सखी सब देख कर तुम याद आयी।
झिलमिलाते धुंधली रसमय डगर तुम याद आयी।।
खलबली से बाग रहता
देखिये चहुँओर जगमग।
डाल पर झूला चढ़ा कर,
झूमता सरदार डगमग।।
है हृदय हलचल अटल सी, नग प'त्थर तुम याद आती।
झिलमिलाते धुंधली रसमय........
चित्त झंझावत प्रवल है
नीम फल मुखपान जैसा।
आम सा अनुभव है' मीठा
लग रहा मुलतान जैसा।।
देखता रंगीन चुनरी तब समर तुम याद आती।
झिलमिलाते धुंधली रसमय........
एक कतरा मेघ पागल
प्रेम पौखर भर विकल था।
शुभ समय के भाल रचता
प्रीति का अनुपम ग़ज़ल था।।
जब हवन वेदी सजी माधुर्य सदर तुम याद आयी।
झिलमिलाते घुंधली रसमय.......
©-राजन-सिंह