मैं सन्यासी प्रेम गणित दर, प्रतियोगी मन सार दिया।
नितदिन ढ़ूँढ़ें दिल पुस्तक में
तुमने कितना प्यार दिया।।
कोण, त्रिकोण बना ज्यामिति के, उसमें ढ़ूँढ़ु वक्र रेखा।
नित उलझ पाइथागोरस से, सूत्रों में प्रिय छवि देखा।।
नव जीवन में भौतिक होगा, अच्छा तुने विचार दिया।
नितदिन ढ़ूँढ़ें दिल पुस्तक में
तुमने कितना प्यार दिया।।
बीजगणित के सूत्र अनोखे, लघु ब्रैकेट दीर्घ, मध्यम।
लॉगैरिथम्स के पाई पर, चढ़ रोता है दिल हरदम।।
ऐसे कैसे? नियम बिसारें, जिसपर जीवन वार दिया।
नितदिन ढ़ूँढ़ें दिल पुस्तक में
तुमने कितना प्यार दिया।।
अल्फा, बीटा, गामा जाने कैसे? हल हो त्रिकोणमिति।
क्षेत्रफल, आयतन के चैप्टर में खोकर करता दिल इति।।
सांख्यिकी, द्वघात, वलय, बहुपद सबने मिल तन ज्वार दिया।
नितदिन ढ़ूँढ़ें दिल पुस्तक में
तुमने कितना प्यार दिया।।
कला, रसायन, भूगोल भौतिकी भूल गया सब पढ़ना।
जबसे जीवन गणित पढ़ा है, प्रेम पुनित आगे बढ़ना।।
बहुलक जैसे डोल रहा मन, तुने प्रेम बौछार दिया।
नितदिन ढ़ूँढ़े दिल पुस्तक में
तुमने कितना प्यार दिया।।
©- राजन सिंह