"मानव " ( मात्रिक छंद ) रे माँ तेरे चरणों में सगरो तीरथ सुरधामा करुणाकारी आँचल में मोहक ममता अभिरामा॥ सुख की सरिता लहराती तेरे नैनों की धारादुख के बादल दूर रहें पानी चाहे हो खारा॥ पीकर उसको जी लेता तेरा लाल निराला है अमृत बूंदे मिल जाती सम्यक स्वाद निवाला है॥ खाकर म