घनाक्षरी
राजनीति युद्ध नीति भेदनीति में प्रवीण
ध्रुव के समान धीरवान होना चाहिए
भारती के भारत का रथ हाँकने के हेतु
कृष्ण सम सुधी कोचवान होना चाहिए
जिसके हिये में बसा राम अभिराम रहे
ऐसा मतिमान हनुमान होना चाहिए
स्वर्ण लंका ऐसी ढह जाँयें बार बार किन्तु
जामवान जैसा रायवान होना चाहिए
बेटे नहीं कुल मान बेटियाँ बढ़ाने लगीं
अरमान वरदान आन हुईं बेटियाँ ।
अनजान मेहमान मान खान पान दिया
किन्तु अब आन बान शान हुईं बेटियाँ ।।
पैदा कहीं और किन्तु रोपण किसी के खेत
लगता है फसलों में धान हुईं बेटियाँ
आशा लता बनीं हुईं स्वर कोकिला का गान
शाहिनी सुनीता सी उड़ान हुईं बेटियाँ ।।
वसुधा पै ऐसा कोई काज ही बना नहीं कि,
जिसे मनुपुत्र पूर्ण कर सकता नहीं ।
कितने ही संकट पै संकट अपार आयें,
"शुक्ल" पग पीछे कभी धर सकता नहीं ।।
त्रिकुटी में जिसके निवास शिवशंकर का,
ऐसा तो परशुराम डर सकता नहीं ।
पक्का जो इरादा कर लिया मन वाणी से तो,
सीता बिना राम लौट घर सकता नहीं ।
ऊषा है किरन बेदी,कल्पना सी नभ भेदी
देश के लिये तो उपहार हुई बिटिया ।
साक्षी पीवी संधू दीपा साइना हुई है आज
मैडलों का स्वप्न हर बार हुई बिटिया ।।
कभी लता आशा नीती श्रेया सी अवाज बनी
रानी झाँसी बनी तलवार हुई बिटिया ।।
मारते नहीं जो कोख, काश वो जनम लेती
जानते कि कुल का उद्धार हुई बिटिया ।।
*डा० मनोज शुक्ल अर्णव*