मारुत नन्दन पवनसुत अपनी भक्ति में रहकर अन्य कर्म रूप को एक सौम्य रूप द्वारा पूर्ण करते हैं जो कर्म में भी भक्ति को एक रूप प्रदान करते हैं।।
0.0(0)
5 फ़ॉलोअर्स
3 किताबें
<p>कर्म रूप को साध में रख कर,</p> <p>कर्मभूमि में निहित मेरे हनुमान जी!</p> <p><br></p> <p>ऐश्वर्
<div><img style="background: gray;" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/61913fba4