कर्म रूप को साध में रख कर,
कर्मभूमि में निहित मेरे हनुमान जी!
ऐश्वर्य छोड़ हरि भक्तन को भागे,
भक्तों में निहित मेरे हनुमान जी!
अहम मिथ्य छोड़ भक्ति में खोए,
भक्ति की शक्ति मेरे हनुमान जी!
कर्म,धर्म,सब उनके सिया राम जी
ऐसे महाबली हैं, मेरे हनुमान जी!!