मर्यादा
*सबकी अपनी मर्यादा है*
एक नहीं सबकी अलग-अलग,कुछ की कम,कुछ की ज्यादा है।
कर्म के बंधन में बंधे हुए सबकी अपनी मर्यादा है।।
जीवन,मृत्यु,असत्य,सत्य पर समय चक्र आमादा है।
वसुंधरा,नभ,सागर,पर्वत, सबकी अपनी मर्यादा है।।
निशा,दिवस शुभ घड़ी,मुहूरत सब ईश्वर का इरादा है।
कर्तव्य का भान रहे नित ही,सबकी अपनी मर्यादा है।।
वर्तमान में नहीं चेत रहा,मानव ही उन्मादा है।
जबकि मुनि,देव,दनुज,पशु,पक्षी भी सबकी अपनी मर्यादा है।।
आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक"
ग्राम व पोस्ट खखैचा प्रतापपुर हंडिया प्रयागराज उत्तर प्रदेश।
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