मस्त-मस्त सी आँखें प्रिय, मस्त-मस्त से होंठ प्रिय।
मध्यम-मध्यम धड़कन तेरी,नयन कंटीले विशाल प्रिय।
पलकें तेरी विजय पताका, और भौंह तेरा अभिमान प्रिय।
मस्त-मस्त से कन्दुक कपोल, अति काली घटा से केश प्रिय।
हैं अद्भुत तेरे वक्ष हिमालय, और मध्यम-मध्यम स्वास प्रिय।
ग्रीवा तेरी शंख नाद है, कंठक है तेरा प्रिय गान प्रिय।
तुम ही मेरी मृग नयनी, तुम हृदय की सघन उपवन हे प्रिय।
तुम ही मेरी सखी-सहेली, मैं तेरा वृहत वरदान प्रिय।
तुम ही हो साकार हे प्रिय, मैं कंकाल सा मारुत हे प्रिय।।
-सर्वेश कुमार मारुत