मिल जाए जो तेरा साथ, हालात-ए ज़िन्दगी में।
वरना ज़नाज़े अक्सर यहाँ, हर पल निकलते हैं1
शख़्सियत में जो लोग, सराबोर हैं तेरे।
वो हर शख़्स मिलने की, तमन्ना दिल में रखता है।।2
वफ़ा का नाम लेते हो,सफ़ा न मुँह से कहते हो।
तुम तो ऐसे वन्दे हो,जो फ़िजूल बदनाम करते हो।।3
मर रहे हैं जो लोग, फुटपाथ पर ऐसे।
जैसे चीटियां हर पल,यूँ पैरों से मसलती हैं।।4
राजनीति का तो तुम, यहां न हाल ही पूछो।
यहाँ हर खेल चलता है, प्यादे उठते-गिरते हैं।।5
तिरंगे की शान ही ऐसी, जहाँ से गुल बरसते हैं।
बहादुर इसकी ख़ातिर ही, फ़ना हम जान करते हैं।।6
अब तो आवाज़ आती हैं, इन सूने से पल में भी।
अचानक से आकर के, दरवाज़े खट- खट
खटकते हैं।।7
जवां जब लोग होते हैं, जवानी झूम कर गाए ।
पर तगाज़ा वक़्त का ऐसा, जो जाता है गँवाने में।।8
यहाँ आबरू तो आज चहुंदिश, हर पल-पल उतरती हैं।
जो अबला लाज़ के मारे, रोती औ बिलखतीं हैं।।9
ख़ुदा महफ़ूज़ रखता है, यह ऐसा लोग कहते हैं।
फ़िर क्यों आबरु यहाँ पर, बता दे बेलाज़ होतीं हैं।।10
शख़्स हैं मरते; भ्रष्टाचार, महंगाई औ बेरोज़गारी से।
जहाँ मुट्ठी में पैसे हैं, और सौदा छोटी सी चुटकी में।।11
ग्लोबल पी के झूमा है, औ लगा ख़ुद को बढ़ाने में।
बताओ क़सूर है किसका, इस कलयुगी ज़माने में।।12
पर्यावरण हुआ दूषित,और फ़ैली काली छाया है।
जहाँ हर कोई फंसता, मिला कुछ ऐसा तोहफ़ा है।।13
कुछ लोग ऐसे जो, मातृभूमि को व्यर्थ बदनाम करते हैं।
जो पत्थर, दंगो, विस्फ़ोटो से; यहाँ क़त्ल-ए-आम करते हैं।।14
भरा मंदिरों में ख़ज़ाना है, और लोग भूखे मरते बिलखते हैं।
यहाँ के लोग ही ऐसे, फ़िर भरोसा ईश्वर पर रखते हैं।।15
कुछ क़िस्मत से मरते हैं, और कुछ को सरकार ने मारा।
लोग बेचैन हैं बैठे, और सिर्फ़ वायदों पर ही जीते हैं।।16
किसान का हाल न पूछो, बस खेतों को देख जीते हैं।
अनाज का दाम इतना कम, कि बस व्यर्थ सड़ता है।।17
चावलों को देख अंदाज़ा लगा लेते, कि ये कच्चे हैं या पक्के हैं।
पर इस ज़माने को देखकर लोग, आज हर पल अटकते हैं।।18
कहाँ से शुरूआत होती है, और कहाँ पर ख़त्म होती है।
इस ज़िन्दगी की भी, अज़ब टेढ़ी-मेढ़ी कहानी है ।।19
शख़्सियत मर रहीं यहाँ पर, खौफ़ खा-खा कर के।
यहाँ पर मंज़र ही ऐसे हैं, जो आते हैं बवंडर बनकर के।।20
सर्वेश कुमार मारूत